कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
चार
उस दिन देहातों के बीच से होती बस जा रही थी और मैं सोच रहा था कि भारत के विशाल क्षेत्र को, उसके हर ग्राम और क़स्बे को रेल पटरी से जोड़ देना तो शताब्दी के बाद भी असम्भव ही रहेगा, पर हम उसे पक्की सड़क से अवश्य जोड़ सकते हैं और इस तरह हमारे देश में मोटर व्यवसाय और व्यापार, दोनों का ही भविष्य उज्ज्वल है।
तभी एक अड्डे पर मोटर ठहरी। पास का गाँव तो छोटा-सा ही है, पर दो सड़कों का यह जंक्शन है, इसीलिए अड्डा बन गया है। मेरी ही सीट पर एक सरदार जी अपना उर्दू दैनिक पढ़ने के बाद उसे अपनी मोटी रान के नीचे दाबे बैठे थे।
तभी एक देहाती किशोर ने बस में झाँककर देखा और विनय के स्वर में कहा, “सरदारजी, हमारे गाँव में लाइब्रेरी है। उसके लिए अपना अख़बार दे दो।"
“आज हम दे दें तो कल कहाँ से आएगा तुम्हारी लाइब्रेरी में अख़बार?" सरदारजी ने पूछा तो किशोर ने कहा, "कल किसी और भाई से ले लेंगे। हम रोज़ इसी तरह काम चला लेते हैं सरदारजी !"
उचित प्रश्न का उचित उत्तर था, पर इस औचित्य में औद्धत्य का यह दानव सहसा कूद पड़ा, “अख़बार लेना है तो दो आने दो।" लड़के ने हाथ जोड़े, वह गिड़गिड़ाया, पर सरदारजी अटल रहे। बस चली तो आप ही आप बोले, “हम तो ‘बपारी' हैं, यों माल मुफ़्त बाँटने लगें तो हमारा दिवाला खिसक जाए।"
सुनकर सोचा, ‘बपारी' है या नहीं, यह सरदार धनपशु अवश्य है।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में