कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
|
335 पाठक हैं |
सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
बात हँसकर कही गयी थी पर ठीक थी, क्योंकि 'कल किसी समय' में दिन के दस-बारह घण्टे तो थे ही, रात के चार-पाँच घण्टे भी शामिल थे। इस दशा में कोई किसी से मिलने को कबतक बैठे; और ख़ासकर उस दशा में जबकि उनका आना न आना दोनों सम्भव है !
वे बोले, “दोपहर बाद आऊँगा।"
वही बात कि वे अपने कार्यक्रम में ऐक्जेक्ट नहीं थे। न एक बजे, न टाई बजे, न सवा चार बजे, न पौने पाँच बजे, बस दोपहर बाद !
यहीं सामने आ गया है गाँधीजी और सरदार का एक मज़ेदार संस्मरण। दोनों किसी मसले पर बातें कर रहे थे कि रोककर सरदार ने कहा, “अजी, छोड़िए इन बातों को और यह बात बताइए कि कितनी खजूर भिगोऊँ?"
“पन्द्रह खजूर भिगो दो।" गाँधीजी ने कहा।
“पन्द्रह नहीं, बीस भिगोता हूँ, अन्तर ही क्या है पन्द्रह और बीस में !" सरदार बोले।
“अच्छा, तो दस भिगो दो।' गाँधीजी ने कहा।
“ऐं ! दस ही?" सरदार चौंके तो गाँधीजी ने कहा, “ऐं क्या; जब पन्द्रह और बीस में अन्तर नहीं। तो दस और पन्द्रह में ही क्या अन्तर है?"
दस और पन्द्रह में जो अन्तर है, सो तो है ही, पर सात और आठ में उससे भी बड़ा अन्तर है, यह उस दिन जाना।
“कहो भाई किस गाड़ी से जा रहे हो?” श्री ओमप्रकाश मित्तल ने एक मित्र से पूछा तो बोले, “सात-आठ बजे वाली गाड़ी से जा रहा हूँ।"
मुसकराकर मित्तलजी ने कहा, “आपको गाड़ी अवश्य मिल जाएगी।"
"क्यों, क्या बात है?" उन्होंने पूछा तो उत्तर मिला, “नहीं, कोई ख़ास बात नहीं, सिर्फ यह बात है कि आप सात बजे स्टेशन गये तो आपको दिल्ली जाने वाली गाड़ी मिलेगी और आठ बजे गये तो अम्बाला जाने वाली, पर गाड़ी ज़रूर मिलेगी।"
ओह, एक घण्टे का इतना मूल्य कि पूर्व को जाने वाला यात्री पश्चिम को चल पड़े। फिर घण्टा ही तो समय की सबसे छोटी इकाई नहीं है ! उसका साठवाँ भाग मिनट है और उसका भी साठवाँ भाग है सेकेण्ड ! देखी तो होगी आपने सेकेण्ड की सुई, जो पलक झपकते अपना चक्कर पूरा कर लेती है?
और यह मिनट और सेकेण्ड इतने शक्तिशाली तत्त्व हैं कि मनुष्य का भाग्य बदल सकते हैं, क्योंकि यदि आपके जन्म का समय नोट करने में माता-पिता ज़रा भी चूक गये हों तो फलित ज्योतिष के अनुसार आपका जन्म-लग्न बदल सकता है और उसके कारण आपके भाग्य का पूरा फलादेश भी। इस दशा में आप एक अच्छी दुलहिन पाने से वंचित रह सकते हैं; क्योंकि अब आपकी कुण्डली उसकी कुण्डली से नहीं मिलती !
|
- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में