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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


फिर मिनट-सेकेण्ड का मामला पुराण-पन्थियों का ही तो प्रश्न नहीं कि हम उन्हें दकियानूस कहकर टाल दें, यह तो एक वैज्ञानिक प्रश्न है। अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन ने अपने डबलिन अधिवेशन में आज के सेकेण्ड को बहुत बड़ा मानकर एक नये छोटे सेकेण्ड की रचना की है। इसके अनुसार साढ़े चौंसठ दिन में मनुष्य को एक सेकेण्ड का, प्रतिवर्ष साढ़े पाँच सेकेण्डों का और प्रति ग्यारह वर्षों में एक मिनट का लाभ होगा। और भी ज़रा आगे बढ़े तो छह सौ पचपन वर्षों में एक घण्टा !

क्या हम उसे उन वैज्ञानिकों की झक मानें? तेनसिंह और हिलैरी एक साथ एवरेस्ट पर चढ़े, पर संसार का यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्न रहा कि दोनों में पहले किसने अपना क़दम ऊपर रखा? ठीक है कि दोनों में बहुत अन्तर नहीं हो सकता, पर इस नगण्य अन्तर के गर्भ में ही एक बड़ा प्रश्न छिपा है, 'संसार के सबसे ऊँचे शिखर का विजेता पूर्व को माना जाए या पश्चिम को?' इस बड़े प्रश्न का एक काल्पनिक प्रश्न है, जो इस पर तेज़ रोशनी डालता है, यदि मंगल लोक के लिए अमेरिका और भारत से एक साथ दो जहाज़ उड़ें और दोनों ही तीन बजकर पैंतीस मिनट पर मंगल में प्रवेश करें तो प्रथम प्रवेश का श्रेय किसे मिलेगा? निश्चय ही उसे, जिसे इस नयी छोटी सेकेण्ड का समर्थन प्राप्त होगा।

फिर जीवन में ऐक्ज़ेक्ट होने के लिए सेकेण्डों, मिनटों, घण्टों या दिनों का ही तो प्रश्न नहीं है, उसके लिए एक शब्द और एक स्पर्श का भी महत्त्व है। दोनों का उदाहरण महादेव भाई की डायरी में सुरक्षित है।

गाँधीजी ने उस समय के भारत-मन्त्री सर सैम्युअल होर को जेल से एक पत्र लिखाया। उसमें एक वाक्य था, “मैं आपका बहुत आभारी हूँ" पर बाद में उन्होंने 'बहत' शब्द निकलवा दिया।

उसी जेल में एक दिन सरदार पटेल गाँधीजी के लिए सोडा और नीबू पानी में घोल रहे थे कि उन पर गाँधीजी की तगड़ी झाड़ पड़ी, “क्या आपको नर्सिंग का एक कोर्स देने की ज़रूरत नहीं है? देखिए तो आपने चम्मच ऊपर पकड़ने के बजाय ठेठ मुँह के पास पकड़ा है। यह सारा चम्मच गिलास में जाएगा, इसलिए उस जगह उसको हाथ से छूना ही नहीं चाहिए। और जिस रूमाल से आपका मुँह पोंछा जाता है, उसी से आपने इस चम्मच को साफ़ किया। आपको मालूम है कि कोई नर्स ऑपरेशन के कमरे में ऐसा करे तो उसे बर्खास्त कर दिया जाए !"

तो जीवन का नाश करने वाले दोष प्रमाद से बचिए, हौलूपन और लूलूपन दोनों से दूर रहिए, व्यवस्था और नियमितता के नियमों का पालन कीजिए और संक्षेप में, ठीक तरह काम कीजिए, ठीक समय काम कीजिए, ठीक काम कीजिए; यानी ऐक्ज़ेक्ट रहिए।


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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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