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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

पाँच


अब्राहम लिंकन अमेरिका के प्रेजीडेंट और अपने समय की दुनिया के बड़े आदमी, जिनके चारों ओर काम-ही-काम।

कार्यालय से लौटकर अपने मकान में थे कि उनका रक्षा-सचिव उनसे मिलने को आया। प्रेजीडेण्ट ने कहलाया, "इस समय राज्य की, राजनीति की बात मुझे पसन्द नहीं, मैं अपनी घरेलू ज़िन्दगी के वातावरण में हूँ।"

रक्षा-सचिव को देश के एक नाजुक मामले में उनका आदेश लेना है, इस आदेश के मिलने में विलम्ब हो तो देश की हानि हो सकती है, यह अनुरोध उन तक पहुँचा तो उन्होंने रक्षा-सचिव को भीतर ही बुलवा लिया।

प्रेजीडेण्ट अपने भीतर के बरामदे में एक निकर और स्वेटर-सा पहने घुटनों और पंजों के बल घोड़ा बने हुए घूम रहे थे और एक सवार के रूप में उनका बच्चा उनकी पीठ पर बैठा उन्हें हाँक रहा था।

सचिव से उन्होंने कहा, “देखते हैं आप कि यह राज्य का नहीं, मेरे बच्चों का समय है और इस समय मैं किसी देश का शासक नहीं, इनकी एक सवारी-भर हूँ। इसलिए आपकी बात सुनने के लिए रुकना तो मेरे बस का नहीं, हाँ, मेरे साथ घूमते-घूमते आप अपनी बात कह सकते हैं और मेरा आदेश सुन सकते हैं।"

विख्यात दार्शनिक काण्ट जिस दिन अपने घर रहते, भोजन पर भिन्न-भिन्न विषयों के दो-तीन विद्वानों को निमन्त्रित करते थे। उनका नियम था कि वे अपने विषय की बात न चलाकर दूसरों की बात सुनते रहते थे।

पोप को जब समाज के लोगों ने अभिवादन किया तो हाथ उठाकर पोप ने उसका जवाब दिया। उन्हें बताया गया कि पोप के लिए अभिवादन का उत्तर देना आवश्यक नहीं है।

उन्होंने कहा, मुझे पोप बने अभी इतना अधिक समय नहीं हुआ कि मैं प्रथाओं का बन्दी हो जाऊँ और मनुष्यता के साधारण नियमों को भुला दूँ।

श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन ने उत्तर प्रदेश की विधान सभा का स्पीकर (अध्यक्ष) चुने जाने पर भी पार्टी की सदस्यता छोड़ने से इनकार किया तो विरोधी दल ने कहा, संसार में यही प्रथा है कि स्पीकर किसी पार्टी का सदस्य नहीं रहता।

टण्डनजी ने कहा, मेरा काम पुरानी प्रथाओं को तोड़ना भी है और नयी प्रथाओं को बनाना भी।

जीवन की स्वतन्त्रता का तकाज़ा है कि हम अपने को ताले में बन्द होने से बचाएँ। यह ताला लोहे-पीतल का ताला हो या वातावरण का या फिर अन्धविश्वास का, झूठी प्रतिष्ठा का या पुरानी प्रथा का।

जीवन का सुख बन्दी होने में नहीं, उन्मुक्त होने में है। तालों से बचिए और लगे तालों को तोड़िए !

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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