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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


मार्च 1944 की बात है। गाँधीजी आगा ख़ाँ महल में नज़रबन्द थे और 'बा' की मृत्यु हो चुकी थी। 'बा' की मृत्यु पर भारत सरकार के गृहमन्त्री ने जो वक्तव्य केन्द्रीय असेम्बली में दिया, उससे गाँधीजी सहमत नहीं थे, वे उसका प्रतिवाद करना आवश्यक समझते थे।

उन्होंने प्यारेलाल भाई से पत्र लिखने को कहा, पर उनका लिखा पत्र गाँधीजी को पसन्द नहीं आया। गाँधीजी ने स्वयं पत्र लिखा। फिर उसमें सुधार किया। तब साथियों ने उसे देखा। बहुत-से और बहुत बार सुधार के बाद गाँधीजी ने उसे फिर लिखाया।

इस तरह पाँच बार सुधार के बाद डॉ. गिल्डर ने उसे देखा और उसमें छठी बार सुधार किया और उसके अनुसार सुशीला नायर ने फिर से एक पत्र तैयार किया। तब तक गाँधीजी भी अपने पत्र में काफ़ी काट-छाँट कर चुके थे। इस तरह दो पत्र हो गये। इन दोनों को मिलाकर एक तीसरा पत्र तैयार हुआ। गाँधीजी को यह अच्छा लगा, पर स्नान-गृह में नहाते-नहाते उसे उन्होंने फिर सना और कछ सधार किये। भोजन करते समय गाँधीजी ने उस पत्र में कुछ और सुधार कराये और तब वह टाइप होकर डाक में गया।

अप्रैल 1944 में वायसराय वेवल का एक पत्र उसी नज़रबन्दी में गाँधीजी को मिला। पत्र पढ़कर गाँधीजी का रोम-रोम गरम हो गया और उसी गरमी में उन्होंने पत्र का उत्तर लिखा।

साथियों को यह पत्र 'तीखा' लगा, पर गाँधीजी पूरी गरमी में थे। बोले, “वह तीखा है ही नहीं !"

कहा गया कि, “इस तरह का पत्र न लिखें तो क्या हर्ज है?"

गाँधीजी गरमी से भरे थे। बोले, “लिखना तो चाहिए। न लिखूँ तो मैं नीचे उतरता हूँ और लिखू तो ऐसा ही लिख सकता हूँ।"
 
रात में डॉ. गिल्डर ने कहा, “यह पत्र लिखने का हेतु क्या है? क्या आगे के लिए पत्र-व्यवहार बन्द करने का?"

प्रश्न में बरसात थी, पर गाँधीजी की गरमी उससे न बुझी। बोले, "जैसा उसका पत्र है, वैसा ही जवाब होना चाहिए, ताकि वह समझ ले कि मैं उसका अर्थ समझ गया हूँ।"

प्यारेलाल भाई ने एक नया पत्र लिखा। गाँधीजी ने उसे पढ़ा और तब नया पत्र लिखाया।

इसमें साथियों ने अपने सुधार सुझाये और तब गाँधीजी ने एक और पत्र लिखाया, लिखाते-लिखाते भी इसमें सधार वे कराते रहे।

रात में डॉ. गिल्डर को यह पत्र दिया गया। दूसरे दिन उन्होंने अपने सुझाव दिये। गाँधीजी ने लिखा था कि हाकिम और रैयत एक होकर काम नहीं कर सकते और गिल्डर इससे भी सहमत नहीं थे। गाँधीजी अपनी बात पर जमे रहे।

शाम को घूमते समय उनका मत बदला कि साँप मालिक और नौकर पर एक साथ हमला करे तो दोनों उसे मारने में सहयोगी हो जाएँगे ! तब वे बोले, “अगर मेरा यह पत्र ज्यों-का-त्यों चला जाता तो मेरी हँसी होती।"

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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