कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
और तब दूसरे दिन उन्होंने एक नया पत्र लिखवाया और वही वेवल को भेजा गया। जब गाँधीजी को एक ख़त के लिए इतनी सावधानी और श्रम की आवश्यकता थी तो मुझे-आपको कितनी ज़रूरत है?
आदमी गरम ख़त कब लिखता है? जब वह किसी बात से गुस्से में आ जाए। गुस्सा दिमाग पर सवार है तो क़लम में ठण्डक कहाँ से आएगी?
क्या आप चाहते हैं कि किसी को गरम ख़त न लिखें? हाँ, तो उस समय कोई ख़त न लिखिए जब आपको गुस्सा चढ़ा है और लिखने का आवेग इतना प्रबल हो कि बिना लिखे रहा ही न जाए तो अवश्य लिखिए, पर उसे लिखकर रख लीजिए, तुरत डाक में न डालिए। दूसरे-तीसरे दिन जब आप उसे शान्ति में पढ़ेंगे तो आपको वह मक्खियों-भरा दूध दिखाई देगा और आपे उसे फाड़कर दूसरा ख़त लिखेंगे, जिसमें ताना-तनाज़ा एक नहीं, सिर्फ काम की बात होगी।
क्या आपके पास किसी का गरम ख़त आया है और आप गुस्से से भर उठे हैं? हाँ, तो आप भी ठहरिए और अभी खत न लिखिए। ठहरना सम्भव न हो तो फिर लिख लीजिए ख़त और फोड़ लीजिए उसमें दिल के छाले, पर उसे डाक में न डालिए।
सौ बातों की एक बात यह है कि गुस्सा आदमी को सोचने लायक़ नहीं छोड़ता। अब आप अगर गुस्से से ख़त लिखते हैं तो वह इस लायक़ कहाँ है कि उस पर कोई विचार करे? इसी तरह जब आप किसी का गरम ख़त पढ़कर गरमा गये और तभी लिख बैठे उसका जवाब तो वह इस लायक़ कहाँ होगा कि उस पर कोई विचार करे।
हमेशा ठण्डा ख़त लिखिए, गरम ख़त का ठण्डा जवाब लिखिए और साफ़ बात यह है कि ठण्डे होकर ख़त लिखिए।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में