आचार्य श्रीराम शर्मा >> ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान प्रयोजन और प्रयास ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान प्रयोजन और प्रयासश्रीराम शर्मा आचार्य
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प्रस्तुत है ब्रह्मवर्चस् का प्रयोजन और प्रयास
२- महाप्रज्ञा की चौबीस शक्तियों का संक्षिप्त परिचय
(१) आद्यशक्ति- अर्थात् सृष्टि की मूल चेतना। आदिदेव ॐ कार के रूप में इसे ही
प्रथम और सर्वोपरि पूज्य माना गया है। पुरुषवाचक संबोधन में इसे
परब्रह्म भी कहते है। यह यहाँ का मुख्य मन्दिर है, जिसे ज्ञानमन्दिर के रूप
में विनिर्मित किया गया है। समग्र गायत्री महाविद्या के मर्म को इस एक में भी
समझा जा सकता है।
(२) ब्राह्मी- अर्थात् महाविद्या, सद्ज्ञान, सद्विचार। सृजनात्मक
सत्प्रवृत्तियों के प्रसुप्त बीजों को जगाने-उगाने वाली महाशक्ति।
(३) वैष्णवी- व्यवस्था बुद्धि का पर्याय। संसार की सुव्यवस्था करने वाली,
परिपोषण करने वाली-विश्वम्भर शक्ति।
(४) शाम्भवी- अवांछनीयता का निवारण करने वाली परिवर्तनकारी शक्ति, सृष्टि
संतुलन हेतु अनिवार्य प्रलयंकर शक्ति, जो अपने प्रभाव से व्यक्ति के
जीवन में गुण, कर्म, स्वभाव का परिष्कार करती है।
(५) वेदमाता- ज्ञान-विज्ञान की समस्त ज्ञात-अविज्ञात धाराओं की गंगोत्री,
ज्ञान की जननी वेदगर्भा-वेदविद्या की कुञ्जी।
(६) देवमाता- देवत्व को जन्म देनेवाली देवोपम स्तर की मनः स्थिति बनाने वाली
देवी।
(७) विश्वमाता- सार्वभौम संस्कृति के संविधान का निरूपण करने वाली, वसुधैव
कुटुम्बकम् के दर्शन को सार्थक करने वाली शक्ति।
(८) ऋतम्भरा- सत्य-असत्य, औचित्य-अनौचित्य में ऋत् का वरण करने में साधक
को सहायता देने वाली शक्ति।
(९) मंदाकिनी- अर्थात् गंगा के समान पवित्र, बाह्याभ्यन्तर को शुद्ध करने
वाली देवी।
(१०) अजपा- निश्चल स्थिति-अविचल निष्ठा की सिद्धि देने वाली।
(११) ऋद्धि-आत्मिक विभूतियों से व्यक्ति को असाधारण बना देने वाली शक्ति।
(१२) सिद्धि-वैभव की अधिष्ठात्री, मनुष्य को प्रामाणिक, समृद्ध-सम्पन्न बनाने
वाली देवी।
(१३) सावित्री-अचेतन की रहस्यमयी परतों का अनावरण करने वाली पंचमुखी सावित्री
शक्ति।
(१४) सरस्वती-बुद्धि को प्रखर और परिष्कृत करने वाली सद्विचारणा की देवी।
(१५) लक्ष्मी-अर्थात् सर्वतोमुखी सम्पन्नताप्रदायक शक्ति जो साधक में
''श्री'' तत्त्व बढ़ाने वाले गुणों का विकास करती है।
(१६) महाकाली-असुरता का संहार करने वाली, मुत्यु की प्रतीक,
प्रचण्डता-प्रखरता की पर्याय रौद्र शक्ति।
(१७) कुण्डलिनी-जीवन की सामान्य ऊर्जा क असामान्य में परिष्कृत कर चमत्कारी
सफलताएँ प्रदान करने वाली, तंत्रविद्या की अधिष्ठात्री देवी।
(१८) प्राणाग्नि-साधक को प्राणवान् बनाने वाली, जीवना-शक्ति बढ़ाकर अंत:
सामर्थ्य बढ़ाने वाली शक्ति।
(१९) भुवनेश्वरी-नियम-मर्यादाओं के परिपालन की कसौटी पर विश्व-वैभव का
अधिष्ठाता बना देने वाली शक्ति।
(२०) भवानी-संगठन कौशल का धनी बनाने वाली, व्यक्ति को युग-नेतृत्व सौंपने
वाली दैवी विभूति।
(२१) अन्नपूर्णा-वह चेतना शक्ति जिसकी कृपा से साधक को अभाव नहीं सताने
पाते। अर्थ-सन्तुलन हेतु सद्बुद्धि देने वाली शक्ति।
(२२) महामाया-भ्रान्तिओं का निवारण करनेवाली, भव-बंधनों से मुक्ति दिलाने
वाली।
(२३) पयस्विनी-भूलोक की कामधेनु, जिसकी कृपा से साधक में ब्रह्मतेज बढ़ता है,
कोई अभाव नहीं रहता।
(२४) त्रिपुरा-ओजस् तेजस् और वर्चस् बढ़ाने वाली, पापों से उबार कर महान्
बनाने वाली सामर्थ्य वाली देवी।
गायत्री महाशक्ति के चौबीस रूपों के अपने वाहन, वस्त्राभूषण, साज-सज्जा और
उपकरणों की अपनी-अपनी विशेषता है। इनकी व्याख्या स्वयंसेवी मार्गदर्शक
दर्शनार्थियों के समक्ष कर प्रत्येक का शास्त्र-सम्मत एवं विज्ञान-सम्मत
माहात्म्य समझाते हैं। प्रत्येक मन्दिर में हर मूर्ति के साथ एक बीज
मंत्र, उनका मंत्राक्षर एवं बीजाक्षर तथा उसकी व्यावहारिक विवेचना प्रस्तुत
की गई है।
गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं। ''ण्यम्'' पद का ''णियम्'' उच्चारण दो
मात्राओं के बराबर णि और यम् के रूप में होता है और चौबीस अक्षरों की
गणना पूरी हो जाती है। इस मंत्र का शब्द-गुंफन विशेष प्रकार का है।
प्रत्येक अक्षर एक-एक विशिष्ट देवी-शक्तिधारा का, देवता का, ऋषि का,
शक्ति बीज का, यंत्र चक्र एवं विभूति का प्रतीक है। इनमें से प्रत्येक के
अपने-अपने रहस्य, प्रयोग और प्रतिफल हैं।
ॐकार परब्रह्म है। उसे शब्दब्रह्म-नादब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है। ॐकार
के तीन अक्षरों से तीन व्याहृतियाँ उत्पन्न हुईं। ''ॐ भू: भुव: स्व:''
यह गायत्री मंत्र का शीर्ष भाग है। पृथक् होते हुए भी इसका मंत्र के
आदि में नियोजन होता है।
''तत्'' अक्षर की देवी ''आद्यशक्ति'', देवता 'परब्रह्म', बीज 'ॐ', ऋषि
विश्वामित्र, यंत्र 'गायत्री यंत्र', विभूति प्रज्ञा एवं दीक्षा तथा प्रतिफल
आप्तकाम एवं सुसंस्कारिता हैं।
''स'' अक्षर की देवी ''ब्राह्मी'', देवता 'ब्रह्मा' बीज 'हीं', ऋषि वशिष्ट,
यंत्र 'ब्राह्मी यंत्रम्' विभूति श्रद्धा एवं युक्ता तथा प्रतिफल सृजन शक्ति
एवं सुसंतति हैं।
''वि'' अक्षर की देवी ''वैष्णवी'', देवता 'विष्णु', बीज 'णं', ऋचि नारद,
यंत्र 'वैष्णवी यंत्रम्', विभूति निष्ठा एवं क्षेमा और प्रतिफल वर्चस्
एवं दिव्य वैभव हैं।
''तु:'' अक्षर की देवी ''शाम्भवी'', देवता 'शिव', बीज 'शं', ऋषि अत्रि, यंत्र
'शाम्भवी यंत्रम्', विभूति मुक्ता एवं शिवा तथा प्रतिफल हैं मुक्ति
प्राप्ति एवं अनिष्ट निवारण।
''व'' अक्षर की देवी ''वेदमाता'', देवता 'आदित्य', बीज 'ओं', ऋषि वेदव्यास,
यंत्र 'विद्या यंत्रम्', विभूति स्मृति एवं विद्या और प्रतिफल दिव्य
स्फुरणा एवं सद्ज्ञान हैं।
''रे'' अक्षर की देवी ''देवमाता'', देवता 'इन्द्र', बीज 'लृं', ऋषि भृगु,
यंत्र 'देवेश यंत्रम्', विभूति दिव्या एवं देवयानी तथा प्रतिफल देवत्व
एवं सद्चरित्रता हैं।
''णि'' अक्षर की देवी ''विश्वमाता'', देवता 'विश्वकर्मा', बीज 'स्रीं' ऋषि
अंगिरा, यंत्र 'मातृ यंत्रम्', विभूति विराटा एवं ध्येया और प्रतिफल
विराटानुभूति एवं सहयोग सिद्धि हैं।
''यं'' अक्षर की देवी ''ऋतम्भरा'', देवता 'हिरण्यगर्भ', बीज 'ऋं', ऋषि
भारद्वाज, यंत्र 'ऋत यंत्रम्', विभूति सत्या एवं सुमुखी तथा प्रतिफल
स्थितप्रज्ञता एवं न्यायप्राप्ति हैं।
''भ'' अक्षर की देवी ''मंदाकिनी'', देवता 'वसु', बीज 'उं', ऋषि गौतम, यंत्र
'निर्मला यंत्रम्', विभूति निर्मला एवं विरजा और प्रतिफल निर्मलता एवं
पाप नाश हैं।
''गो'' अक्षर की देवी ''अजपा'', देवता 'मरुत', बीज 'यं', ऋषि पातंजलि, यंत्र
'निरंजना यत्रम्', विभूति निरंजना एवं सहजा, प्रतिफल शान्ति एवं भयनाश
हैं।
''दे'' अक्षर की देवी ''ऋद्धि'', देवता 'गणेश', बीज 'गं', ऋषि काणाद, यंत्र
'ऋद्धि यंत्रम्', विभूति तुष्टा एवं भद्रा तथा प्रतिफल तुष्टि एवं
गुणवत्ता हैं।
''व'' अक्षर की देवी ''सिद्धि'', देवता 'क्षेत्रपाल', बीज 'क्षं' ऋषि
अगस्त्य, यंत्र 'सिद्धि यंत्रम्', विभूति सूक्ष्मा एवं योगिनी तथा प्रतिफल
तन्मयता एवं कार्यकुशलता हैं।
''स्य'' अक्षर की देवी ''सावित्री'', देवता 'सविता', बीज 'ज्ञं', ऋषि
पुलस्त्य, यंत्र 'सावित्री यंत्रम्', विभूति कल्याणी एवं इष्टा और
प्रतिफल ब्रह्मविद्या एवं साफल्य हैं।
''धी'' अक्षर की देवी ''सरस्वती'', देवता 'प्रजापति', बीज 'ऐं', ऋषि कश्यप,
यंत्र 'सरस्वती यंत्रम्', विभूति हर्षा एवं प्रभवा तथा प्रतिफल उल्लास एवं
कलात्मकता हैं।
''म'' अक्षर की देवी ''महालक्ष्मी'', देवता 'कुबेर', बीज 'श्रीं', ऋषि
आश्वलायन, यंत्र 'श्री यंत्रम्', विभूति तारिणी एवं श्रीमुखी और
फलश्रुति सदेच्छा एवं सम्पन्नता हैं।
''हि'' अक्षर की देवी ''महाकाली'', देवता 'महाकाल', बीज 'क्लीं' ऋषि
दुर्वासा, यंत्र 'कालिका यंत्रम्, विभूति भर्गा एवं वज्रिणी तथा प्रतिफल
कल्मशनाश एवं शत्रुनाश हैं।
''धि'' अक्षर की देवी ''कुण्डलिनी'', देवता 'भैरव', बीज 'लं', ऋषि कण्व,
यंत्र 'भैरव यंत्रम्', विभूति धृति एवं प्रतिभा तथा प्रतिफल ओजस्विता
एवं उन्नति हैं।
''यो'' अक्षर की देवी ''प्राणाग्नि'', देवता 'जातवेद', बीज 'रं', ऋषि
याज्ञवल्क्य, यंत्र 'ऊर्जा यंत्रम्', विभूति स्वाहा एवं अजरा तथा
प्रतिफल पुष्टि एवं आरोग्य हैं।
''यो'' (य:) अक्षर की देवी ''भुवनेश्वरी'', देवता 'पुरन्दर', बीज 'खं', ऋषि
जमदग्नि, यंत्र 'विभु यंत्रम्', विभूति गौरी एवं विश्वोत्तमा और
प्रतिफल सुयश एवं ऐश्वर्य हैं।
''न:'' अक्षर की देवी ''भवानी'', देवता 'रुद्र', बीज 'हुं', ऋषि वैशम्पायन्,
यंत्र 'दुर्गा यंत्रम', विभूति ध्रुवा एवं अमोघा तथा प्रतिफल संकल्प एवं
अजेयता हैं।
''प्र'' अक्षर की देवी ''अन्नपूर्णा'', देवता 'पूसा', बीज 'अं', ऋषि
पिप्पलाद, यंत्र 'अन्नपूर्णेश्वरी यंत्रम्', विभूति तृप्तता एवं
पूर्णोदरी तथा प्रतिफल तृप्ति एवं अभाव मुक्ति हैं।
''चो'' अक्षर की देवी ''महामाया'', देवता 'महादेव', बीज 'हं', ऋषि कात्यायन,
यंत्र 'योगिनी यंत्रम्', विभूति मेधा एवं पाशिनी तथा प्रतिफल तत्त्वदृष्टि
एवं भ्रममुक्ति हैं।
''द'' अक्षर की देवी ''पयस्विनी'', देवता 'वरुण', बीज 'वं', ऋषि धौम्य, यंत्र
'वरुण यंत्रम्', विभूति स्वधा एवं आर्द्रा तथा प्रतिफल स्नेह एवं सरसता
हैं।
''यात्'' अक्षर की देवी ''त्रिपुरा'', देवता 'त्र्यम्बक', बीज 'त्रीं' ऋषि
मार्कण्डेय, यंत्र 'त्रिधा यंत्रम्', विभूति त्रिधा एवं त्रिशूला तथा
प्रतिफल त्रिगुणाधिकार एवं त्रितापमुक्ति हैं।
समग्र गायत्री मंत्र ''ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न: प्रचोदयात्'' का भावार्थ है-'' उस प्राणस्वरूप दु:खनाशक,
सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा
में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित
करें।''
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