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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महिला जागृति अभियान

महिला जागृति अभियान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4231
आईएसबीएन :0000

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महिला जागृति अभियान...

एकता और समता का सुयोग बने


पति और पत्नी में से कोई किसी का दास और स्वामी नहीं। दोनों की स्थिति भाई-भाई के बीच अथवा बहन-बहनके बीच चलने वाली सद्भावना और सहकारिता की रहनी चाहिए। मैत्री इसी आधार पर स्थिर रहती और फलती-फूलती है कि अपने लाभ का ध्यान कम और साथी के हित सधनेका ध्यान ज्यादा रखा जाए। इतना भर परिवर्तन कर लेने से हमारी पारिवारिक और सामाजिक स्थिति में इतना बड़ा परिवर्तन उभर आएगा, जिसकी सराहना करते-करतेसौभाग्य का अनायास अवतरण होने जैसा उल्लास अनुभव किया जा सके।

अमृत के बीच विष घोलने वाली कामुकता की कुदृष्टि को हटाया-मिटाया जा सके, तो हमारेशारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक स्वास्थ्य में इतना बड़ा अंतर हो सकता है, जिसे नवजीवन के पुनरुत्थान की संज्ञा दी जा सके। इन दिनों संध्याकालहै। इस पुण्य वेला में यौनाचार जैसे हेय कार्य निषिद्ध हैं। सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण की घड़ियों में सभी विवेकशील संयम बरतते और उन घड़ियों कोश्रेष्ठ पुण्य कृत्य के लिए सुरक्षित रखते हैं। युगसंधि का यह समय भी ऐसा ही है, जिसमें प्रजनन-कृत्य को तो विराम मिलना ही चाहिए। कुसमय केगर्भधारण जब फलित होकर धरती पर आते हैं, तो उनमें अनेक विकृतियाँ पाई जाती हैं। युगसंध्या की वेला नारी के पुनरुत्थान के लिए भाव भरे व्रत करने केलिए है। इसी समय में प्रजनन का उत्साह ठंडा न होने दिया गया तो उसके अनावश्यक ताम-झाम में बहुत कुछ जलेगा-सुलगेगा, जबकि इन दिनों संसार काप्रमुख संकट बहुप्रजनन ही बना हुआ है। यदि इन दिनों उसे रोक दिया जाए तो वह स्थिति फिर वापस आ सकती है, जिसमें सतयुग में समस्त धरती पर मात्र कुछकरोड़ मनुष्य रहते और दैवी जीवन जीते थे।

नर और नारी, जितना भारी दायित्व यौनाचार में निरत होकर वहन करते हैं, वह सामान्य नहींअसामान्य है। नारी अपना स्वास्थ्य और अवकाश पूरी तरह गँवा बैठती है। नर को इस दुष्प्रवृत्ति के लिए प्रायः बीस वर्ष की सजा झेलनी पड़ती है। इतनेदिनों उसे मात्र बड़े हुए परिवार की अनेकानेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपना समस्त कौशल विसर्जित करना पड़ता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुएजिन्हें जीवन में कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य करने हैं, वे नए उत्पादन से बचते हैं और विश्व-परिवार के वर्तमान सदस्यों को ही अपना समझकर उनके अभ्युदयहेतु ठीक वैसे ही प्रयत्न निष्ठापूर्वक करते रहते हैं, जैसे कि विरासत छोड़कर अपने प्रजनन की जिम्मेदारी निभाने में खरचना पड़ता है।

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