आचार्य श्रीराम शर्मा >> महिला जागृति अभियान महिला जागृति अभियानश्रीराम शर्मा आचार्य
|
1 पाठकों को प्रिय 430 पाठक हैं |
महिला जागृति अभियान...
परिवर्तन का तूफानी प्रवाह
स्रष्टा को औचित्य और संतुलन ही पसंद है। वह उद्दंडता को लंबे समय तक सहन नहीं करता। अवांछनीयतालंबे समय तक फलती-फूलती स्थिति में नहीं रह सकती। संव्याप्त संतुलन-व्यवस्था अपने ढंग से, अपने समय पर, अपने सुधारक्रम का परिचय देतीहै। उसने सदा उलटे को उलटकर सीधा करने एवं सुव्यवस्था को जीवंत रखने के लिए प्रबल प्रयत्न किया है। अनीति की असुरता ने समय-समय पर सिर उठाया है,पर उसका आतंक सदा-सर्वदा स्थिर नहीं रह सकता है-कुकुरमुत्ते लंबी आयुष्य लेकर नहीं जन्मते-अनाड़ी-असंतुलन को कुछ ही समय में औचित्य के सामने हारमाननी पड़ी है।
इन दिनों कुछ ऐसे ही परिवर्तन हो रहे हैं। सामंतशाही धराशायी हो गई। राजमुकुटधूमिल-धूसरित हुए दीख पड़ते हैं। जमींदारी और साहूकारों के प्रचलन समाप्त हो गए। अब दास-दासियों को पकड़े और बेचे-खरीदे जाने का प्रचलन कहाँ है?सैकड़ों रखैल कैद रखने वाले 'हरम' अब मुश्किल से कहीं ढूँढ़े मिलते हैं। सती-प्रथा अब कहाँ है? छूत-अछूत के बीच जैसा भेदभाव कुछ दशाब्दी पहले चलाथा, अब उसमें कितना अधिक परिवर्तन हो गया है। आश्चर्यजनक परिवर्तनों की श्रृंखला में अब एक-एक करके अनेक कड़ियाँ जुड़ती चली जा रही हैं।राजक्रांतियों और सामाजिक क्रांतियों का सिलसिला अभी भी रुका नहीं है। इसमें माननीय पुरुषार्थ का भी अपना महत्त्व जुड़ा रहा है, पर कुछ ही
दिनों में इतने क्षेत्र में इतनी बड़ी उलट-पलट हो जाने के पीछे स्रष्टा के अनुशासन को भीकम महत्त्व नहीं दिया जा सकता। तूफानी अंधड़ों में रेत के टीले उड़कर कही-से-कहीं जा पहुँचते हैं, चक्रवातों के फेर में पड़े पत्ते और तिनकेआकाश चूमते देखे जाते हैं, यह समर्थ के साथ असमर्थ कें जुड़ जाने की प्रत्यक्ष परिणति है।
इक्कीसवीं सदी महापरिवर्तनों की वेला है। इसके पूर्व के बारह वर्ष युगसंधि के नाम सेनिरूपित किए गए हैं। इस अवधि में सूक्ष्मजगत् की विधि-व्यवस्था बहुत बड़े परिवर्तनों की रूपरेखा बना गई है और महत्वाकांक्षी योजनाएँ विनिर्मित करगई है। उसका लक्ष्य सतयुग की वापसी का रहा है। ऋषि-परंपराएँ देव-परंपराएँ और महामानवों द्वारा अपनाए जाते रहे दृष्टिकोण, प्रचलन और निर्धारण अगलेही दिनों क्रियान्वित होने जा रहे हैं। लंबे निशाकाल से सर्वत्र छाया हुआ अंधकार अब अपने समापन के अति निकट है। उषाकाल का उद्भव हो रहा है औरअरुणोदय का परिचय मिल रहा है। इस प्रभातपर्व में बहुत कुछ बदलना, सुधरना और नए सिरे से नया निर्माण होना है। इसी संदर्भ में एक बड़ी योजना यहसंपन्न होने जा रही है कि नारी का खोया वर्चस्व उसे नए सिरे से प्राप्त होकर रहेगा। वह स्वयं उठेगी, अवाछनीयता के बंधनों से मुक्त होगी और ऐसाकुछ कर गुजरने में समर्थ होगी, जिसमें उसके अपने समुदाय, जनसमाज और समस्त संसार को न्याय मिलने की संभावना बने और उज्जल भविष्य की गतिविधियों कोसमुचित प्रोत्साहन मिले। इक्कीसवीं सदी नारी शताब्दी के नाम से प्रख्यात होने जा रही है। उस वर्ग के उभरने से उसे अपने महान कर्त्तव्य का परिचयदेने का अवसर मिलेगा।
भूतकाल के नारीरत्नों का स्मरण करके यह आशा बलवती होती है कि समय की पुनरावृत्तिकितनी सुखद होगी? कुंती ने पाँच देव-पुत्र जन्मे थे। मदालसा ने योगी पुत्रों को व गंगा ने वसुओं को जन्म दिया था। सीता की गोदी मे, लव-कुशखेले थे और शकुंतला ने आश्रम में रहकर चक्रवर्ती भरत का इच्छानुरूप निर्माण किया था। अनुसूया के आँगन में ब्रह्मा, विष्णु, महेश बालक बनकरखेले थे। उन्हीं ने मंदाकिनी को स्वर्ग से चित्रकूट में उतारा था। अरुंधती आदि सप्तऋषियों की धर्मपत्नियाँ उनकी तपश्चर्या को अधिकाधिक सफल-समर्थबनाने में वरिष्ठ साथी की भूमिका निभाती रही थीं। शतरूपा ने मनु की प्रतिभा को विकसित करने में असाधारण योगदान दिया था। इला अपने पिता केआयोजनों में पुरोहित का पद सँभालती थी। वैदिक ऋचाओं के प्रकटीकरण में ऋषियों की तरह ही ऋषिकाओं ने अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया था। दशरथसपत्नीक देवताओं की सहायता के लिए लड़ने गए थे।
मध्यकाल में रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं की विशाल सेना खड़ी करके एक अनुपम उदाहरणप्रस्तुत किया था। स्वतंत्रता संग्राम में महिला वर्ग ने जितना समर्थ योगदान दिया था, उसे देखकर भारत ही नहीं, संसार भर के मूर्धन्यों को चकितरह जाना पड़ा था। उनमें से अनेक प्रतिभाएँ ऐसी थीं, जो किसी भी दिग्गज समझे जाने वाले पुरुष की तुलना में कम नहीं थी। भारत का इतिहास ऐसी महिलाओं केव्यक्तित्व और कर्तृत्व से भरा पड़ा है, जिस पर दृष्टिपात करने से प्रतीत होता है कि उस काल का महिला-समुदाय कितना समर्थ और यशस्वी रहा होगा!
|