आचार्य श्रीराम शर्मा >> महिला जागृति अभियान महिला जागृति अभियानश्रीराम शर्मा आचार्य
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महिला जागृति अभियान...
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संत ज्ञानेश्वर अपने बहन-भाइयों के साथ लोकमंगल के लिए कार्य क्षेत्र में उतरे थे। दूरदर्शियोंऔर ऋषियों ने मिल-जुलकर बिना कामुकता के फेर में पड़े इतने अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे कि उनकी संयुक्त क्षमता ने संसार को कृत-कृत्यकर दिया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण, आचार्य कृपलानी एवं जापान के गांधी कागावा जैसे महामानवों ने एक और एक मिलकर ग्यारह बनने की संभावना पूरी तरहजानने के उपरांत ही विवाह किए थे और उसके साथ उच्चस्तरीय आदर्शों को जुड़ा रखकर विवाह शब्द को सार्थक बनाया था। इन दिनों भी ऐसे ही आदर्श विवाहअपनाए जा सकें, तो पारस्परिक सघन सहयोग को जीवंत रखने एवं अनेकानेक कठिनाइयाँ सरल करने और सर्वतोमुखी प्रगति के संदर्भ में एक-से-एक बड़े कामकरने के लिए सामने पड़े हैं। इसे संयोग ही कहना चाहिए कि इन दिनों विकासोन्मुखी सेवा-साधना और अवांछनीयताओं से जूझने वाली संघर्षशीलता केदोहरे पराक्रम दिखाने की अनिवार्य आवश्यकता पड़ रही है। अच्छा हो कि इन दिनों ऐसी युग्म आत्माएँ-पति-पत्नी मिलकर संयुक्त प्रयासों में भागीदारबनकर विवाह-संस्था को सार्थक करें। ध्यान रखने योग्य बात यही है कि संतानोत्पादन में प्रवृत्त होने के उपरांत कोई व्यक्ति यादंपती मात्र लोभ-मोह के निविड़ जंजाल में ऐसी बुरी तरह फँस जाता है कि फिर आदर्शों के निर्वाह में कुछ कहने योग्य पुरुषार्थ कर सकना संभव ही नहींरहता।
यों अतिशय व्यस्त और प्रतिबंधित महिलाएँ भी अपनी शिक्षा, स्वावलंबन तथा योग्यता कीअभिवृद्धि में तथा अपने परिवार में प्रगतिशीलता के बीज बोने-उगाने में कुछ तो कर ही सकती हैं-जिनके साथ निकटवर्ती वास्ता रहता है, उन्हें श्रमशीलता,मितव्ययता, शिष्टता, सुव्यवस्था, उदार सहकारिता जैसे सद्गुणों से संपन्न रहने के लिए उत्साह उत्पन्न कर सकती हैं। परिवार के सदस्यों को एक हद तकसंयम, प्रगतिशीलता का पक्षधर बनाने के लिए प्रयत्नरत रह सकती हैं, कुरीतियों और मूढ़ मान्यताओं को अपने छोटे क्षेत्र में से खर-पतवार की तरहउखाड़ फेंकने के लिए कुछ-न-कुछ तो कर ही सकती हैं; महिला-संगठनों में सम्मिलित होने के लिए उत्कंठा बनाए रह सकती हैं।
जिन नारियों के बंधन ढीले हैं, उत्तरदायित्व हलके हैं और शिक्षा का न्यूनाधिक सौभाग्यप्राप्त है, उनके लिए तो युगधर्म यही बन जाता है कि वे बचे समय में आरामतलबी, खुदगरजी और संबंधियों के मोह-माया से थोड़ा-बहुत उबरें और उस समयकी बचत से अपने संपर्क-क्षेत्र को प्रगति-पथ पर अग्रसर करने के लिए अपने बड़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करें। संपन्न परिवारों में नौकर-चाकरकाम करते हैं। उन्हें समय मिल जाता है। बड़े परिवारों में यदि उदार संवेदना जगाई जा सके, तो परिवार पीछे एक-दो महिलाओं का समयसेवाकार्यों के लिए लगाते रहने का प्रबंध हो सकता है। नौकरी करने वाली महिलाएँ अधिकांश समय घर से बाहर रहती हैं और उनके हिस्से का काम घर केअन्य लोग मिल-जुलकर संपन्न कर लेते हैं। नारी-उत्कर्ष की आवश्यकता को ईश्वर की नौकरी मान लिया जाए और उन्हें उस प्रयोजन के लिएनिश्चिंतता-पूर्वक काम करने के लिए परिवार के अन्य सदस्य योगदान दे सकें, तो इतने भर से बड़ा काम हो सकता है। अध्यापिकाओं जैसी नौकरी जिन्हें उपलब्धहै, वे अपनी छात्राओं और उनके परिवारों के साथ संपर्क साधकर ऐसा बहुत कुछ कर सकती हैं, जो प्रगतिशीलता का पक्षधर हो। सेवानिवृत्त महिलाएँ तो तफरीमें समय काटने की अपेक्षा प्रस्तुत नवजागरण-अभियान में अपनी भागीदारी सम्मिलित कर ही सकती हैं। विधवाएँ व परित्यक्ताएँ तो अपने खाली समय मेंदुर्भाग्य का रोना रोने की अपेक्षा समय की महती माँग को पूरा करने में संलग्न रहकर कुयोग को सुखद संयोग में बदल सकती हैं। कितनीही लड़कियों को भारी दहेज के साधन न जुट पाने के कारण अविवाहित रहने के लिए विवश होना पड़ता है। ऐसी महिलाएँ दिन काटने के लिए नौकरी के लिए भटकें याकिन्हीं संबंधियों की सहायता-अनुकंपा पर आश्रित रहें, उसकी अपेक्षा यह कहीं अच्छा है कि महिला-जागरण की ईश्वरीय माँग की सहयोगिनी बनकर दुर्भाग्यको सौभाग्य में बदलें और समय की माँग पूरी करने में अपने समय व श्रम का नियोजन करके उपलब्ध मानवीय जीवन को अपनी साहसिकता के बल पर सार्थक करें।
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