लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> सुनसान के सहचर

सुनसान के सहचर

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4257
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

271 पाठक हैं

सुनसान के सहचर....

20

तपोवन का मुख्य दर्शन


भगवती भागीरथी के मूल उद्गम गोमुख के दर्शन करके अपने को धन्य माना। यों देखनेमें एक विशाल चट्टान में फंसी हुई दरार में से दूध जैसे स्वच्छ जल का उछलता हुआ झरना बस यही गोमुख है। पानी का प्रवाह अत्यन्त वेग वाला होने सेबीच में पड़े हुए पत्थरों से टकरा कर वह ऐसा उछलता है कि बहुत ऊपर तक छींटे उड़ते हैं। इन जल कणों पर जब सूर्य की सुनहरी किरणें पड़ती हैं, तोवे रंगीन इन्द्र धनुष जैसी बहुत ही सुन्दर दीखती हैं। 

इस पुनीत निर्झर से निकली हुई माता गंगा वर्षों से मानव जाति को जो तरण-तारणका संदेश देती रही है, जिस महान् संस्कृति को प्रवाहित करती रही है, उनके स्मरण मात्र से आत्मा पवित्र हो जाती है। इस दृश्य को आँखों में बसा लेनेको जी चाहता है। 

चलना इससे आगे था। गंगा, वामक, नन्दनवन, भागीरथी शिखर, शिवलिंग पर्वत से घिराहुआ तपोवन यही हिमालय का हृदय है। इस हृदय में अज्ञात रूप में अवस्थित कितनी ही ऊँची आत्माएँ संसार के तरण-तारण के लिए आवश्यक शक्ति भण्डार जमाकरने में लगी हुई हैं। उसकी चर्चा न तो उचित है न आवश्यक। असामयिक होंगी, इसलिए उन पर प्रकाश न डालना ही ठीक है। 

यहाँ से हमारे मार्गदर्शक ने आगे का पथ-प्रदर्शन किया। कई मील की विकट चढ़ाई कोपार कर तपोवन के दर्शन हुए। चारों ओर हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएँ अपने सौन्दर्य की अलौकिक छटा बिखेरे हुए थीं, सामने वाला शिवलिंग पर्वत कादृश्य बिल्कुल ऐसा था मानों कोई विशालकाय सर्प फन फैलाये बैठा हो। भावना की आँखें जिन्हें प्राप्त हों, वह भुजंगधारी शिव का दर्शन अपनेचर्म-चक्षुओं से ही यहाँ कर सकता है। दाहिनी ओर लालिमा लिए हुए सुमेरु हिमपर्वत है। कई और नीली आभा वाली चोटियाँ ब्रह्मपुरी कहलाती हैं, इससेथोड़ा और पीछे हटकर बॉई तरफ भागीरथ पर्वत है। कहते हैं कि यहीं बैठकर भगीरथ जी ने तप किया था, जिससे गंगावतरण सम्भव हुआ। 

यों गंगोत्री में गौरी कुण्ड के पास एक भागीरथ शिला है, इसके बारे में भीभगीरथजी के तप की बात कही जाती है। वस्तुत: यह स्थान हिमाच्छादित भागीरथ पर्वत ही है, इन्जीनियर लोग इसी पर्वत में गंगा का उद्गम मानते हैं। 

भागीरथ पर्वत के पीछे नीलगिरि पर्वत है, जहाँ से नीले जल वाली नील नदी प्रवाहितहोती है। यह सब रंग-बिरंगे पर्वतों का स्वर्गीय दृश्य एक ऊँचे स्थान पर देखा जा सकता है। जब बर्फ पिघलती है तो भागीरथ पर्वत का विस्तृत फैला हुआमैदान दुर्गम हो जाता है। बर्फ फटने से बड़ी-बड़ी चौड़ी खाई जैसी दरार पड़ जाती है। उनके मुख में कोई चला जाय, तो फिर उसके लौटने की कोई आशा नहीं कीजा सकती। श्रावण, भाद्रपद महीने में जब बर्फ पिघल चुकी होती है, तो यह सचमुच ही

नन्दनवन जैसा लगता है। केवल नाम ही इसका नन्दनवन नहीं है, वरन् वातावरण भी वैसा ही है।उन दिनों केवल मखमल जैसी घास उगती है। और दुर्लभ जड़ी-बूटियों की महक से सारा प्रदेश सुगन्धित हो उठता है। फूलों से यह धरती लद-सी जाती है। ऐसीसौन्दर्य स्रोत भूमि में यदि देवता निवास करते हों तो इसमें आश्चर्य ही क्या है? पाण्डव सशरीर स्वर्गारोहण के लिए यहाँ आये होंगे, इसमें कुछ भीअत्युक्ति मालूम नहीं होती। 

हिमालय का यह हृदय तपोवन जितना मनोरम है, उतना ही दुर्गम भी है। शून्य से भी नीचेजमने लायक बिन्दु पर जब सर्दी पड़ती है, तब इस सौन्दर्य को देखने के लिए कोई बिरला ही ठहरने में समर्थ हो सकता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ इस तीर्थतपोवन की परिधि में आते हैं। यों वर्तमान रास्ते से जाने पर गोमुख से बद्रीनाथ लगभग ढाई सौ मील है, पर यहाँ तपोवन से माणा घाटी होकर केवल बीसमील ही है। इस प्रकार केदारनाथ यहाँ से बारह मील है, पर हिमाच्छादित रास्ते सबके लिए सुगम नहीं है। 

इस तपोवन को स्वर्ग कहा जाता है, उसमें पहुँचकर मैंने यही अनुभव किया, मानोसचमुच स्वर्ग में ही खड़ा हूँ। यह सब उस परमशक्ति की कृपा का ही फल है, जिनके आदेश पर यह शरीर निमित्त मात्र बनकर कठपुतली की तरह चलता जा रहाहै। 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book