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आचार्य श्रीराम शर्मा >> क्या धर्म ? क्या अधर्म ?

क्या धर्म ? क्या अधर्म ?

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4258
आईएसबीएन :00000

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धर्म और अधर्म पर आधारित पुस्तक....


आप बुद्धि बेचकर पिछले कल की हर बात के अन्धविश्वासी मत बन जाइए अन्यथा अपने जीवन को दारुण दुःखोंमें फँसा लेंगे। बन्द गड्ढे का पानी सड़ जाता है। कहीं ऐसा न हो कि रूढ़ियों के पौंगा पन्थी के गड्ढे में बन्द पड़ी हुई आपकी बुद्धि सड़ जाय और उसकीदुर्गन्धि से पास-पड़ोसियों का सिर फटने लगे। सदैव अपनी चेतना को स्वच्छता की ओर रखिए। घर के कूड़े को जैसे रोज-रोज साफ किया जाता है वैसे हीधर्म-साधना के लिए अनुपयोगी रीति-रिवाजों की सदैव सफाई करते रहा कीजिए। उनके स्थान पर वर्तमान समय के लिए जिन प्रथाओं की आवश्यकता है उनकीआधारशिला आरोपित करने के लिए साहसपूर्वक आगे कदम बढ़ाया कीजिए।

आपको नाना जंजालों से भरे हुए मत-मतान्तरों की ओर मुड़कर देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनमें सेबहुत-सी वस्तुऐं समय से पीछे की हो जाने के कारण निरुपयोगी हो गई हैं, उनसे चिपके रहने का अर्थ यह होगा कि अपने हाथ-पाँव बाँधकर अपने को अँधेरीकोठरी में पटक लिया जाय। आप किसी भी धर्म ग्रन्थ, सम्प्रदाय या अवतार का अनादर मत करिए, क्योंकि भले ही आज उनके कई अंश अनुपयोगी हो गये हैं, पर एकसमय उन्होंने सामाजिक सन्तुलन ठीक रखने के लिए सराहनीय कार्य किए थे। आप सभी धर्म ग्रन्थों, सम्प्रदायों और अवतारों का आदर करिए और उनमें जो बातेंऐसी प्रतीत हों जिनकी उपयोगिता अब भी बनी हुई है उन्हें ग्रहण करके शेष को अस्वीकार कीजिए। हंस की वृत्ति ग्रहण करके दूध को ले लेना और पानी को छोड़देना चाहिए।

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