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आचार्य श्रीराम शर्मा >> क्या धर्म ? क्या अधर्म ?

क्या धर्म ? क्या अधर्म ?

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4258
आईएसबीएन :00000

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धर्म और अधर्म पर आधारित पुस्तक....


सत् धर्म का सन्देश है कि ईश्वर के प्राणप्रिय राजकुमारो! हे सच्चिदानन्द आत्माओ! हे नवीन युग केनिष्कलंक अग्रदूतो! अपने अन्तःकरण में ज्योति पैदा करो। अपने हृदयों के कषाय-कल्मषों को मथकर निरन्तर धोते रहो। अपने अन्दर पवित्रता, निर्मलता औरस्वच्छता को प्रतिक्षण स्थान देते रहो, इससे तुम्हारे अन्दर ब्रह्मत्व जागृत होगा, ऋषित्व उदय होगा, ईश्वर की वाणी तुम्हारी अन्तरात्मा का स्वयंपथ-प्रदर्शन करेगी और बतावेगी कि इस युग का क्या धर्म है? जब आप अनादि सत् धर्म को स्वीकार करते हैं तो इस नाना प्रकार के जंजालों से भरी हुईपुस्तकों की ओर क्यों ताकें? सृष्टि के आदि में सत् धर्म का उदय हुआ था तो जीवों का पथ-प्रदर्शन उनकी अन्तरात्मा में बैठे हुए परमात्मा ने किया था।इसी को वेद या आकाशवाणी कहा जाता है। आप पुस्तकों की गुलामी छोड़िए और आकाशवाणी की ओर दृष्टिपात कीजिए, आपकी अन्तरात्मा स्वतन्त्र है, ज्ञानवानहै और प्रकाश स्वरूप है। वह आपको आपकी स्थिति के अनुकूल ठीक-ठीक मार्ग बता सकती है। यह मत सोचिए कि आप तुच्छ, अल्प और असहाय प्राणी हैं और आपकोअन्धे की तरह किसी उँगली पकड़कर ले चलने वाले की जरूरत है। ऐसा विचार करना आत्मा के ईश्वरीय अंश का तिरस्कार करना होगा।

धर्म-अधर्म का निर्णय करने के लिए सद्बुद्धि आपको प्राप्त है। उसका निष्पक्ष होकर, निर्भय उपयोगकिया कीजिए। मत कहिए कि हमारी बुद्धि अल्प है हमारा ज्ञान थोड़ा है। हो सकता है कि अक्षर ज्ञान की दृष्टि से आप पीछे हों, परन्तु सद्बुद्धि तोईश्वर ने सबको दी है। वह आपके पास भी कम नहीं है। दीनता की भावना को आश्रय देकर आत्मा का तिरस्कार मत कीजिए। अपनी सद्बुद्धि पर विश्वास करिए और उसीकी सहायता से आज के लिए उपयोगी रीति-रिवाजों को स्वीकार कीजिए यही सच्चा धर्म का मार्ग है।

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