आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
इस प्रकार भौतिकता की भयानक लिप्साएँ ईश्वरीय निष्ठा को इस सीमा तक नष्ट कर देती हैं कि मनुष्य अनजाने में ही पूरा नास्तिक बन जाता है। एक बार यदि वह शाब्दिक रूप में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार भी करता रहे, भले ही इनकार न करे, तब भी वह आस्तिक नहीं रह पाता। उसका अनुभूति से रहित हो जाना, उसका सर्वशक्तिमत्ता के प्रति विनम्र न होना, उसका सहारा छोड़ देना अथवा उसके निर्दिष्ट गुणों से परांग-मुख हो जाना विशुद्ध नास्तिकता ही है। सच्ची आस्तिकता की पहचान गुण-अवगुण ही हैं। ईश्वर के अस्तित्व में 'हाँ' अथवा 'ना' नहीं।
'खाओ, पियो और मौज करो' का सिद्धांत हर पदार्थ तथा हर अवसर का रस चखने की प्रेरणा करता है, जिससे बहुत बार खाद्य-अखाद्य तथा कार्य-अकार्य की मर्यादा के प्रति आस्था उठ जाती है, जिससे मनुष्य न जाने कितने अखाद्यों का भक्षण करने लगता है और न जाने कितने दुर्व्यसन अपने पीछे लगा लेता है। सुरा-सुंदरी भोगवादियों के दो ऐसे उपकरण हैं, जिनसे कदाचित् ही कोई भाग्यवान् बचा रह सके। अमर्यादित जीवन जीने के जो दुष्परिणाम शोक, संताप, असंतोष एवं अशांति के रूप में सामने आते हैं, उन्हें बहुधा भोगवादियों को भोगना पड़ता है।
जो देश जिस अनुपात से भौतिकवादी एवं भोग-परायण है और जिस अनुपात से उसको साधन-सामग्री की सुविधा है, वह उसी अनुपात में असंतुष्ट एवं अशांत है। आशंका, संदेह, तनाव, भय तथा युद्धोन्माद उनकी चितनधारा का अंग बन गये हैं। वे जो कुछ सोच पाते हैं, विनाश को सामने रखकर और जो कुछ कर पाते हैं स्वार्थ को सामने रखकर। परोपकार के नाम से किया हुआ उनका प्रवर्तन किसी निहित स्वार्थ से मुक्त नहीं होता। आज जब शांति तथा निःशस्त्रीकरण की कल्याणकारी बात उनके सामने आती है तो उनका अस्तित्व सिहर उठता है कि शांति अथवा निःशस्त्रीकरण की अवस्था में हम कहीं इतने कमजोर न हो जायें कि कोई दूसरे हमारे भोग-उपभोगों को छीन लें। भौतिक भोगों के रोगियों के पास आत्मबल अथवा आत्मविश्वास कहाँ? और कहाँ होती है उनके पास वह निःस्पृहता, वह तत्त्व दृष्टि जिसके आधार पर भोग-साधनों की निःसारता को देख-समझ सकें। वे भौतिक भोगों की अचिरंतनता को पशु बल से चिरंतनता में बदलने की कोशिश में लगे रहते हैं और चाहते हैं कि शेष सारा संसार विनष्ट हो जाता तो हमारे भोग साधन निरापद एवं निष्कंटक हो जाते और तब हम उन्हें आँख मूंदकर इस प्रकार भोगते जैसा कि अब तक भोग नहीं पाये हैं; और इसी निश्चितता अथवा निष्कंटकता को वे विश्व शांति की संज्ञा देना चाहते हैं किंतु आध्यात्मिकता का मीठा फल 'शांति' इन विचारों एवं कार्यों में कहाँ?
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न