आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
आज संसार में अमेरिका भोगवाद तथा भौतिक साधनों का सर्वोच्च निदर्शन बना हुआ है। उस देश में प्रचुर धन-संपत्ति है। अगणित उद्योग, विशालकाय कल-कारखाने तथा वैभव की असीम चकाचौंध है। आदमी का सब काम यंत्र करते है और हर द्वार पर एक मोटर कार खड़ी रहती है। होटल, रेस्तराँ, सिनेमा, पार्क, नाचघर, नाटकशाला तथा प्रमोद स्थलों की भरमार है। हर व्यक्ति की आय व्यय से कहीं अधिक है। ऐसा लगता है कि संसार के सारे साधन, सारी सामग्री और संसारी लक्ष्मी अमेरिका में ही सिमटकर आ गई है। किंतु इस संपन्नता की स्थिति में वहाँ का जन-जीवन कितना अतृप्त, कितना अशांत, कितना व्यग्र, कितना व्यस्त और कितना बोझिल है, इसका अनुमान वहाँ प्रतिवर्ष होने वाली आत्महत्याओं की रोमांचकारी संख्या से लगाया जा सकता है।
अमेरिका के प्रसिद्ध समाचार पत्र 'न्यूयार्क टाइम्स' में प्रकाशित कुछ दिन पहले की एक रिपोर्ट से पता चला है कि अमेरिका में लगभग बीस हजार व्यक्ति प्रति वर्ष आत्महत्या करते हैं। आत्महत्याओं की यह भयानक संख्या ही वहाँ के अशांत एवं असफल जन-जीवन को स्पष्ट कर देने के लिए पर्याप्त है। इसके अतिरिक्त न जाने कितने लोग रोग-शोक से पीड़ित होकर, अशांति एवं असफलता से दुःखी होकर, अतृप्ति तथा लालसाओं में घुल-घुल कर मरते होंगे और न जाने कितनी आत्महत्यायें ऐसी होती होंगी, जिनका या तो पता न चलता होगा अथवा उन पर पर्दा डालकर स्वाभाविक मृत्यु घोषित कर दिया जाता होगा।
इन आत्महत्याओं के अनेक कारण हो सकते हैं, किंतु विशेष कारणों में निराशा, पारिवारिक कलह, आर्थिक कठिनाई, शराब तथा अनीश्वरवाद की गणना की जाती है।
कहना होगा कि यह सब कारण भौतिक भोगवाद की ही देन है। इतने कारोबारी तथा शक्तिसंपन्न देश में निराशा का क्या कारण? भोगवाद का अंत निराशा में ही होता है। भोगवादी शीघ्र ही मिथ्या एवं नश्वर सुखों में अपनी सारी शक्तियाँ नष्ट कर डाला करते हैं, जिससे अकाल ही में खोखले होकर निर्जीव हो जाते हैं। ऐसी दशा में न तो उनके लिए किसी वस्तु में रस रहता है और न जीवन में अभिरुचि। स्वाभाविक है उन्हें एक ऐसी भयानक निराशा आ घेरे, जिसके बीच जी सकना मृत्यु से भी कष्टकर हो जाये। पर मुसीबत यह कि उनके आस-पास का भोगपूर्ण वातावरण उन्हें अधिकाधिक ईर्ष्यालु, चिंतित तथा उपेक्षित बनाकर जीने योग्य ही नहीं रखता और वे अनीश्वरवादी होने से, आत्मा-परमात्मा को भूले हुए कोई आधार न पाकर आत्महत्या के जघन्य पाप का ही सहारा लेते हैं।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न