आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
महाराणा प्रताप का जंगलों में रहते फिरना, भामाशाह का दान, हकीकत राय का दीवार में चुना जाना, बंदा-बैरागी का खौलते तेल के कढ़ाव में उबलना, राम का वनवास, हरिश्चंद्र का स्त्री-पुत्रों को बेचना, दधीचि का अस्थिदान, मोरध्वज का पुत्र बलिदान, रानी पद्मिनी का अग्नि-दाह, सुकरात का विषपान, ईसा का क्रुसारोहण, यह सब गाथाएँ निष्ठा के ऊपर अवलंबित हैं। अपने विश्वासों की रक्षा करने के लिए सर्वस्व की बाजी लगा देना श्रद्धालु आत्माओं का ही काम है। आज के अस्थिर विश्वास वाले लोगों के सामने ऐसे अवसर आयें तो वे चट बदल जायें। बालक हकीकत राय ने दीवार में चुना जाना पसंद किया, पर हिंदू धर्म छोड़ने पर तैयार न हुआ, आज का कोई चालाक लड़का होता तो सोचता-जान गँवाने की बजाय तो मुसलमान हो जाना ही ठीक है—वह चट मुसलमान हो जाता। प्राचीन समय में लोग अपने वचन का पालन के लिए, धर्म- रक्षा के लिए, सिद्धांतों की पुष्टि के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी करने को तैयार रहते थे। आज कूटनीति का, चालबाजी का, अधिक लाभ का व्यापार है। फैशन की तरह विचारों को धारण करते हैं और हजामत की तरह जब तक रुचता है उन्हें पाले रहते हैं और जब चाहते हैं सफाचट करा देते हैं। बड़े-बड़े जोरदार व्याख्यान देकर साम्यवाद का महत्त्व समझाने वाले स्वयं पूँजीवाद के केंद्र बने हुए हैं, धर्म-धर्म पुकारने वाले स्वयं अधर्म के संचालक हैं। यह उदाहरण बताते हैं कि उन लोगों ने विचारों को फैशन से अधिक महत्त्व नहीं दिया है।
आज वे शंकराचार्य कहाँ है? जो वैदिक धर्म की रक्षा के लिए प्राण हथेली पर धरकर निकल पड़ें और नन्ही-सी जान को विरोधी अपार जनसंख्या के सामने खड़ा करें? आज वे दयानंद कहाँ हैं? जो मेवाड़ की रत्नजटित महंती को अस्वीकार करके दर-दर अपमान सहते फिरें और अंत में विषपान करके प्राण त्यागें? आज का प्रोफेसर मोटी तनख्वाह के बदले कुछ घंटे लेक्चर देकर छुटटी पा जाता है, उन दिनों ऋषि रूखा-सूखा अन्न खाकर अपनी असाधारण विद्या, शिष्यों को घोंट-घोंट कर पिलाते थे। यदि चाहते तो वे ऋषि लोग भी अपनी विद्या के बदले में पैसा कमा सकते थे; परंतु उनके सामने अपने कर्तव्य धर्म का सिद्धांत था, जिसे पालन करने के लिए गरीबी का जीवन स्वीकार करना मामूली सी बात थी।
अध्यात्मवाद के आचार्यों ने सदैव इस बात पर जोर दिया है कि मनुष्य श्रद्धालु बने। काफी सोच-समझकर, पर्याप्त छानबीन कर, किन्हीं सिद्धांतों को स्वीकार किया जाए और स्वीकार करने के बाद उनका दृढ़ता के साथ पालन किया जाए। वह विश्वास इतने दृढ़ होने चाहिए कि परीक्षा और कठिनाई के समय भी ठहर सकें, उनके लिए कुछ त्याग और बलिदान भी किया जा सके।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न