आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
अभी यह कहते हैं, अभी वह कहने लगते हैं। यह अस्थिरता मनुष्य की मानसिक आवारागर्दी प्रकट करती है, ठीक वैसी ही जैसी शारीरिक स्थिति के कारण दफा १०६ ताजीरात-ए-हिंद के अनुसार जेलखाने की हवा खानी पड़ती है।
यदि मनुष्य का अपना कोई निजी विश्वास न हो, निजी आधार न हो तो हवा के रुख के साथ इधर-उधर उड़ता फिरेगा और जीवन में कोई कहने लायक उन्नति न कर सकेगा। एक मील पूरब को चले-फिर लौट पड़े-आधा मील पश्चिम को आये—फिर विचार बदला, दो मील उत्तर को बढ़े-फिर समझ में आया कि पश्चिम को चलें, डेढ़ मील चलकर वहाँ पर भी रुक गये, फिर किसी तरफ चलने की सोचने लगे। इस पद्धति से महीनों चलते रहने वाला निश्चित मंजिल तय न कर सकेगा, किंतु जो लगातार एक ही दिशा में चलता रहता है, वह एक ही महीने में काफी मंजिल पार कर लेगा। जिसके सुदृढ़ विश्वास हैं, परिपक्व निश्चय हैं, अपने स्थिर सिद्धांतों पर आरूढ़ रहता है, वह समाज में अपना एक नियत स्थान बना लेता है। मजबूती का आदर होता है। जो जिन विश्वासों पर मजबूती के साथ डटा हुआ है, उसे उनके द्वारा ही पर्याप्त लाभ हो सकता है। दृढ़ता से शक्तिशाली पुरुष वीरों की तरह सम्मानित होता है।
महापुरुषों में एक सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे अपने विचारों पर पूरी तरह से निष्ठा के साथ दृढ़ रहते हैं, अपने उददेश्यों के प्रति उन्हें पूरी श्रद्धा होती है। उस श्रद्धा से, निष्ठा से प्रेरित होकर कार्य करते हैं और कितने ही बड़े कष्ट एवं प्रलोभन सामने आने पर भी विचलित नहीं होते। अपनी निष्ठा के लिए सर्वस्व की बाजी लगा देते हैं. प्राणों की भेंट चढा देते हैं. परंत निश्चय से जरा भी नहीं डिगते। यह दृढ़ता ही किसी मनुष्य की सबसे बड़ी प्रामाणिकता है। इस प्रामाणिकता के कारण लोग उस पर विश्वास करते हैं। जिसके ऊपर विश्वास किया जाता है, वह सचमुच महान् है, उसकी महानता चिरकाल तक स्थिर रहेगी। कद्र दानी का संसार में से लोप नहीं हो गया है। दृढ़ता का बहुमूल्य रत्न सदैव उपेक्षित नहीं पड़ा रहता, उसे पहचानने वाले, कद्र करने वाले जौहरी मिल ही जाते हैं। कई महापुरुषों के विचार कुछ त्रुटि पूर्ण थे, तो भी उनकी निष्ठा, श्रद्धा और दृढ़ता ने उन्हें प्रातःस्मरणीय और पूजनीय बना दिया।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न