आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
यदि सचमुच पंडित जी को गीता की शिक्षा का ज्ञान होता और आत्मा की अमरता पर सच्चे हृदय से विश्वास करते होते तो कर्तव्य की पुकार को इस प्रकार न दबा देते। मृत्यु से इतना न डरते। हम यह नहीं कहते कि वे गीता को झूठा मानते हैं या अमरता की बात किसी छल से कहते हैं, जहाँ तक विचारों का ताल्लुक है, वे अपने विचारों के प्रति सच्चे हैं; परंतु विचारों के साथ वह दृढ़ विश्वास नहीं था, जिसको 'श्रद्धा' कहा जाता है। विचारणा ऐसा तत्त्व है, जो जरा-सा दबाव पड़ने पर आसानी से बदल जाता है। कोई विद्वान या बुद्धिमान् मनुष्य तर्क, प्रमाण और बहस के आधार पर हरा सकते हैं, उसकी युक्तियाँ और प्रमाण किसी को भी शैली ऐसी जोरदार हो सकती है कि आप निरुत्तर हो जायें, हार मान लें और ऐसा अनुभव करने लगें कि शायद मैं गलती पर हूँ। तब यह बहुत सरल है कि अपने विचार बदल दें, यदि दुर्भाग्य से परस्पर विरोधी विचार वाले बहुत से विद्वानों के बीच में रहने का प्रसंग आ पड़े और परस्पर विरोधी तर्कों को सुनें तो आपको रोज विचार बदलने के लिए विवश होना पड़ सकता है। उस स्थिति में किसी निश्चित नतीजे पर पहुँचना कठिन होगा, बुद्धि-भ्रम की अस्थिरता बढ़ जायेगी। इसी प्रकार यदि कोई भारी कष्ट, पीड़ा, आघात, व्यथा, वेदना सामने आए तो उनके दबाव से विचारों को पलट सकते हैं। चोरों का विचार होता है कि पकड़े जाने पर हम अपने साथियों का नाम प्रकट न करेंगे, पर राजदंड की यंत्रणा से घबराकर कइयों को अपना विचार बदलना पड़ता है और वे अपने साथियों का नाम प्रकट कर देते हैं। लोभ का दबाव भी कुछ ऐसा ही है, रुपये का लालच, रूप-सौंदर्य का लालच, मनोरंजन का लालच बड़े-बड़े विचारवानों को डिगा देता है। अपनी पत्नी और पुत्री का अपमान देखते हुए भी शरीर कष्ट के भय से यदि पंडित जी के अमरता के विचार क्षण भर में विलीन हो गये हों तो कुछ आश्चर्य की बात नहीं है।
किसी प्रकार के विचार रखना ही इसके लिए पर्याप्त नहीं है कि यह व्यक्ति इस प्रकार के कार्य भी करेगा। बहुत से मनुष्य एक प्रकार के काम में लगे हुए हैं, पर विचार उसके विपरीत दूसरे प्रकार के रखते हैं। बाहर से आचरण कुछ और करते हैं, भीतर से विचार कुछ रखते हैं। कार्य और विचारों का एक न होना इस बात का प्रमाण है कि विचार बहुत ही उथले, निर्बल एवं अपूर्ण हैं, दिमाग तक ही उनकी प्रगति है, अंतःकरण तक ये प्रवेश नहीं पा सके हैं। ऐसे लँगड़े, लूले आधे-अधकचरे विचार, विश्वासों को लोग मन में भरे फिरते हैं। जब मौका पड़ता है, परीक्षा का अवसर आता है तो झट फिसल जाते हैं, जैसी हवा चलती है वैसी ही पीठ कर लेते हैं।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न