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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


जिस प्रकार शरीर की आवारागर्दी अपराध है, वैसे ही विश्वास की अस्थिरता मानसिक जुर्म है। जिस आदमी का अपना कोई सिद्धांत नहीं, उद्देश्य नहीं, कार्यक्रम नहीं, आधार नहीं, वह निश्चय ही शैतानी चमक-दमक की ओर आकर्षित होगा और कुमार्ग पर लगेगा। स्थिरता के अभाव में हवा के झोंकों के साथ टूटे पत्ते की तरह इधर-उधर उड़ता फिरेगा। कब कहाँ जा पहुँचे यह अनिश्चितता पत्ते के बारे में सहन की जा सकती है, पर डाँवाडोल मनुष्य असह्य है। आज आपका विश्वास है कि देशभक्ति कर्तव्य है, कल ही देशद्रोह पर उतर आयें। आज हिंदू हैं, कल मुसलमान हो जायें, परसों ईसाई। आज टोपी लगाते हैं, कल टोप पहनें, परसों साफा बाँधे, तरसों पगड़ी लपेटें। आज विवाह करके दुलहिन लाये हैं, कल तलाक दे दें। आज दान दिया है, कल छीन लें। इस तरह विचार 'और विश्वासों की अस्थिरता मनुष्य को एक प्रकार का मानसिक अपराधी ठहरा देती है। उसका विश्वास उठ जाता है, लोग संदिग्ध और सशंकित दृष्टि से उसे देखते हैं। विश्वास के अभाव में वह दूसरों के सहयोग से वंचित हो जाता है। ऐसा मनुष्य न तो स्वयं अपने लिए ही अच्छा रहता है और न दूसरों को कुछ सहयोग दे सकता है।

अस्थिर विचार और डांवाडोल सिद्धांतों के मनुष्य इस संसार में कम नहीं हैं। चोरी न करने का उपदेश करने वाले, अस्तेय की महिमा गाते-गाते न थकने वाले लोगों में से कितने ही ऐसे मिलते हैं, जो मौका पाते हैं तो चोरी करने में नहीं चूकते। ब्रह्मचर्य के समर्थक होते हुए भी व्यभिचाररत, ईश्वर की सर्वव्यापकता का बखान करते-करते न थकने वाले मंदिरों में बैठकर गजब ढाते हमने देखे हैं। धर्म का महत्त्व मानने वालों को झूठी गवाही देते हुए, अपहरण करते हुए, अनीति में प्रवृत्त होते हुए हमने देखा है। गीता का पाठ करके आत्मा की अमरता को सौ-सौ बार दुहराने वाले जब मौका पड़ता है तो मरने की जोखिम उठाना तो दूर मामूली चोट खाने से भी बुरी तरह डरते हैं। हमारे परिचित एक पंडित जी १७ वर्ष से गीता की कथा कहने का पेशा करते थे, कथा से उन्हें काफी धन मिलता था। अच्छी खासी पूँजी उनके पास जमा हो गई थी। एक बार उनके घर डाकू चढ़ आये रुपया लूटने के साथ उन्होंने पंडित जी की धर्मपत्नी और सयानी लड़की के साथ बलात्कार भी किया। पंडित जी डाकुओं की आँख बचाकर एक चारपाई की आड़ में छिपे बैठे थे और यह सब दृश्य देख रहे थे। शारीरिक कष्ट के भय से डाकुओं का विरोध करने की हिम्मत न पड़ी और उन खून खौला देने वाले दृश्यों को चुपचाप देखते रहे।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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