आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
इससे भिन्न यदि कोई व्यक्ति भावनापूर्वक श्रेष्ठ साधनों तथा उत्कृष्ट उद्देश्य के साथ आधे घंटे भी भजन-पूजन कर लेता है, छोटा-सा अनुष्ठान पूरा कर लेता है तो निश्चित रूप से वह आध्यात्मिक माना जायेगा और उसका अध्यात्म-परक प्रयोजन भी पूरा हो जायेगा। अध्यात्म का संबंध क्रियाओं की अधिकता से नहीं, उनकी श्रेष्ठता तथा उत्कृष्टता से है।
अधिकता का लोभ छोड़कर उत्कृष्टता की ओर अग्रसर होने में आत्म-कल्याण की बड़ी गहरी संभावनाएँ सन्निहित हैं। आधिक्यवादी व्यक्ति बहुधा संसार-लोलुप होते हैं, उनकी इच्छा रहती है कि वे संसार-भोगों को अधिकाधिक मात्रा में भोगें। संसार की संपत्ति का अधिक से अधिक भाग उनके अधिकार में आ जाये। संसार-लोलुप जब व्यवसाय की कामना करता है तो उसकी असीमता में बह जाता है, किसी संख्या अथवा मात्रा में उसे संतोष नहीं होता। सौ के बाद हजार, हजार के बाद लाख—इसी तरह उसकी वित्त-वितृष्णा प्रसार पाती चली जाती है। जब वह मकान की कामना करता है, तो वह चाहता है-हो सके तो हर शहर और हर मोहल्ले में उसकी कोठियाँ और हवेलियाँ हों। सवारियों की कल्पना करता है तो बग्घी से लेकर स्थल, जल और वायु में चलने वाली हर सवारी चाहा करता है। भोजन और वस्त्रों के विषय में हर प्रकार और मूल्य की ओर उसकी जिज्ञासा दौड़ जाती है। संतानों से तो उसका जी भरता ही नहीं। तात्पर्य यह कि भौतिक अथवा संसार-लोलुप का विस्तारवाद किसी क्षेत्र में अपनी सीमा निर्धारित नहीं करना चाहता। वह संसार का सब कुछ अपने पक्ष में अधिकाधिक चाहा करता है।
यह बात ठीक है कि उपलब्धियों की एक निश्चित सीमा नहीं बाँधी जा सकती और न बाँधना ही चाहिए। इससे उन्नति, विकास और प्रगति में व्यवधान पड़ता है। अधिकाधिक उन्नति करना मनुष्य का लक्ष्य होना ही चाहिये, तथापि उसे अपने इस विस्तार अथवा आधिक्यवाद पर कुछ प्रतिबंध लगाने ही होंगे। ऐसा किये बिना वह अपने शस्त्र से आप घायल हो जायेगा, अपनी उन्नति से आप पतित हो जायेगा।
उन्नति और प्रगति पर लगाने योग्य प्रतिबंध है 'उत्कृष्टता। मनुष्य जिस सीमा तक चाहे उन्नति और विस्तार करता चले किंतु इस बात का ध्यान रखे कि उसकी उस विस्तारगति में उत्कृष्टता का सन्निवेश बना रहे। आर्थिक विस्तार में उसे चाहिए कि वह कोई ऐसा व्यवसाय न करे, जो निम्नकोटि का हो। लाभ के लिए असत्य, अशुद्धता व विश्वासघात का सहारा न ले। धोखा, ठगी, मक्कारी और कपट से अपने कार्य-कलापों को बचाये रहे। व्यापार में सच्चाई का व्यवहार करे, वस्तुओं की शुद्धता सुरक्षित रखे। उचित मुनाफा और लोभ कमाये। अपने व्यवसाय की उन्नति तथा प्रगति के लिए न तो अनुचित साधनों का प्रयोग करे और न गर्हित उपायों का अवलंबन ले। साथ ही इस बात का ध्यान रखे कि उसका विस्तार किसी के हृास का कारण न बने और न शोषण अथवा परपीड़न का आधार लेकर ही आगे बढ़ें। इस प्रकार की पवित्रता रखकर जो और जितना भी विस्तार किया जाएगा, वह श्लाघ्य ही होगा। इसके विपरीत जिस विस्तार अथवा विकास का आधार असत्य, अशुद्धता, शोषण और परपीड़न होगा, वह गर्हित तथा अवांछनीय माना जायेगा। इस प्रकार का निकृष्ट और अवांछनीय विस्तार मनुष्य के पतन का कारण बनता है। लोक-परलोक का कल्याण नष्ट कर देता है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न