आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
वह छोटी-सी प्रगति भी जो श्रेष्ठता और उत्कृष्टता से अलंकृत हो, उस विशाल विस्तार की अपेक्षा कहीं अधिक शुभ, कल्याणकारी, महान् और वांछनीय है, जो निकृष्ट उपायों को आधार बनाकर किया गया हो। 'थोड़ा किंतु उत्कृष्ट' एक ऐसा दिव्य सिद्धांत है, जो लोक से लेकर परलोक तक और भौतिकता से लेकर आत्मा तक सारे क्षेत्रों में होने वाली क्रियाओं और उनके फलों को आध्यात्मिक बना देता है।
अधिकता का ध्येय लेकर चलने वाले कई लोग यदि उत्कृष्टता की रक्षा कर लेते हैं तो यह नियम नहीं बल्कि एक अपवाद होगा। वैसे विस्तारवाद अथवा आधिक्यवाद में निकृष्टता की संभावना स्वाभाविक है। यही कारण है कि ज्ञानियों, विद्वानों और मनीषियों ने मनुष्यों को संतोष की शिक्षा दी है और तृष्णा, एषणा और लोभ का निषेध किया है। अन्यथा वे व्यक्ति और समाज के उत्थान के समर्थक विद्वान् अप्रगति अथवा सीमाबद्धता के कांक्षी नहीं हो सकते। उन्होंने मनुष्य की अतिवादी और विस्तारवादी नीति का निषेध उनकी प्रगति अवरुद्ध करने के मंतव्य से नहीं बल्कि इसलिए किया है कि लोभ और वितृष्णाओं के वशीभूत विस्तारवाद में पड़ने वाला व्यक्ति जीवन में उत्कृष्टता की रक्षा नहीं कर पाता। यह स्खलन मनुष्य की उस आत्मा के लिए बड़ा अहितकर होता है, जो जीवन का सर्वश्रेष्ठ सार और व्यक्ति की सबसे बड़ी संपदा मानी गई है। वह वैभव, वह संपत्ति, वह ऐश्वर्य, वह प्रतिष्ठा, वह महानता और वह विस्तार आदि सारी उपलब्धियाँ, जिनका आधार आत्मघातिनी निकृष्टता रही हो उन्नति के रूप में महान पतन ही होती है। जिसकी आत्मा गिर गई, मलीन और निस्तेज हो गई, वह इंद्र पद पाकर भी दरिद्र ही रहेगा, सर्वस्ववान् होकर भी निकृष्ट बना रहेगा। वही उन्नति-उन्नति है, जो अस्तित्व के साथ व्यक्तित्व की भी संशोधिका हो, अन्यथा वह उस सोने के समान ही अग्राह्य है, जिसे पहनने से कान ही कट जायें।
ऐसा समझना कि भौतिकवाद कोई अपशब्द है अथवा भौतिकवादी कोई पापी लोग होते हैं—ठीक नहीं। मानव-जीवन में भौतिकवाद भी आवश्यक है। हमारे मनुष्य शरीर का जन्म ही पंच-भौतिकता से हुआ है। उसकी आवश्यकतायें भी भौतिक हैं, जिनकी पूर्ति भी भौतिक आधार पर ही हो सकती है। कोरा अध्यात्मवाद शरीर यात्रा को पूरा नहीं कर सकता। संसार में भौतिकता की भी आवश्यकता है, किंतु उसी सीमा तक जहाँ तक आत्मा का क्षेत्र प्रभावित न कर सके। भौतिकता की आवश्यकता शरीर निर्वाह तक है, उसके आगे जब उसमें अतिशयता, आधिक्य अथवा विस्तार का दोष आ जाता है, तो यही शरीर निर्वाह की आवश्यकता अनुचित बन जाती है। शरीर के उस निर्वाह के लिए वस्तुतः जितने की आवश्यकता है, मनुष्य को कोई भी ऐसा काम करने की आवश्यकता नहीं है, जिसका प्रभाव आत्मा पर कलुष फेंकने वाला हो।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न