आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
अज्ञात वस्तु की खोज मजेदार हो सकती है, पर जब तक उस वस्तु के संपूर्ण कारण को न जान लिया जाये, उस वस्तु को जीवन का अंग बनाना घातक ही होगा। मान लीजिये-एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे यह पता नहीं कि अल्कोहल के गुण क्या हैं और हाइड्रोक्लोरिक एसिड के क्या गुण हैं? सल्फर, अमोनिया, क्लोरिन, फास्फेट की कितनी-कितनी मात्रा में मिलकर कौन-सी चीज बनेगी? पर वह जो भरी शीशी मिलती जाती हैं, उनसे दवायें तैयार करता जाता है तो क्या वे दवाएँ किसी मरीज को लाभ पहुंचा सकती हैं? लाभ पहुँचाना तो दूर वह मरीज की जान ही ले सकती हैं। नियंत्रण रहित विज्ञान ऐसी ही दुकान है, जहाँ सीमित ज्ञान के आधार पर औषधियाँ बनती हैं, उनसे एक रोग ठीक होता है, पर वे दो नये रोग और पैदा कर देती हैं।
आकाश के ग्रह-नक्षत्र चक्कर लगाते हैं। पता है, कौन ग्रह पृथ्वी से कितनी दूर है? किस ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में कितनी यात्रा करनी पड़ती है? उनकी आंतरिक रचना के बारे में भी जानकारियाँ मिल रही हैं। पर यह ग्रह-नक्षत्र चक्कर क्यों काट रहे हैं? यह विज्ञान नहीं बता सकता, उसके लिए हमें आध्यात्मिक चेतना की ही शरण लेनी पड़ती है। अध्यात्म में ही वह शक्ति है, जो मनुष्य के आंतरिक रहस्यों का उद्घाटन कर सकती है। विज्ञान उस सीमा तक पहुँचने में समर्थ नहीं है।
अध्यात्म एक स्वयं सिद्ध शक्ति है, उसका वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण (एनालिसिस) नहीं किया जा सकता। मस्तिष्क के गुणों के बारे में विज्ञान चुप है। हमें नई-नई बातों की उत्सुकता क्यों रहती है? हम आजीवन कर्तव्यों से क्यों बँधे रहते हैं? निर्दय कसाई भी अपने बच्चों से प्रेम और ममत्व रखते हैं, हिंसक डकैत भी स्वयं कष्ट सहते पर अपनी धर्मपत्नी, अपने बच्चों के भरण-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध करते हैं। चोर और उठाईगीरों को भी अपने साथियों और मित्रों के साथ सहयोग करना पड़ता है। सहानुभूति, सेवा और सच्चाई यह आत्मा के स्वयं सिद्ध गुण हैं। मानवीय जीवन में उनकी विद्यमानता के बारे में कोई संदेह नहीं है। यह अलग बात है कि किसी में इन गुणों की मात्रा कम है। किसी में कुछ अधिक होती है।
सौंदर्य की अदम्य पिपासा, कलात्मक और नैतिक चेतना को भौतिक नियमों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। इन्हें जिस शक्ति के द्वारा व्यक्त और अनुभव किया जा सकता है, वह अध्यात्म है। हमारा ६६ प्रतिशत जीवन इन्हीं से घिरा हुआ रहता है। १ प्रतिशत आवश्यकतायें भौतिक हैं, किंतु खेद है कि १ प्रतिशत के लिए जीवन के शत-प्रतिशत अंश को न्योछावर कर दिया जाता है। ६६ प्रतिशत भाग अंततोगत्वा उपेक्षित ही बना रहता है, इससे बढ़कर मनुष्य का और क्या दुर्भाग्य हो सकता है? अशांति, असंतोष उसी के परिणाम हैं।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न