आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
वर्तमान पीढी की विलासी प्रवृत्ति आने वाली संतानों के लिए किस तरह घातक बनती जा रही है, उस पर दृष्टि दौड़ायें तो स्थिति कुछ ऐसी विस्फोटक और चौंकाने वाली दिखेगी कि हर व्यक्ति यही सोचेगा कि १०० वर्ष के बाद इस संसार में पाये जाने वाले सभी मनुष्य शंकर जी की बारात की तरह टेढे, काने, कूबड़े, अंधे, लूले, लँगड़े, किसी का पेट निकला हुआ, किसी का आवश्यकता से अधिक पिचका हुआ हो तो कोई आश्चर्य नहीं। करोड़ों में कोई एक पूर्ण स्वस्थ हुआ करेगा, तो वह सिद्ध-महात्माओं की तरह पूज्य और सबका नेता हुआ करेगा। यदि आज का संसार अपनी तथाकथित प्रगति के पाँव रोकता नहीं तो क्या अमेरिका, क्या भारत इस प्रगति के लिए सबको तैयार रहना चाहिए।
विलासिता का एक दुर्गुण यह भी है कि वह भोग से बढ़ती है, शांत नहीं होती। वासना की भूख न केवल अनैतिक आचरण करने को बाध्य करती है, वरन् शरीर को विषैले पदार्थों से उत्तेजित कर और अधिक भोग का आनंद लूटने को दिग्भ्रांत करती है। अमेरिका में आज १५०००000 व्यक्ति चरस, गाँजा, कोकीन आदि में से किसी न किसी का नशा अवश्य करते हैं। फ्रांस में अब गणना उल्टी है अर्थात् यह पूछा जाता है कि कितने प्रतिशत लोग नशा नहीं करते। यह औसत ५ से अधिक नहीं बढ़ता। पश्चिम जर्मनी में स्त्री-पुरुषों में होड़ है, कौन अधिक चरस पिये? वहाँ के ४ लाख पुरुष नशेबाज हैं तो स्त्रियाँ २ लाख। रूस के लोग प्रतिवर्ष कम से कम ६० अरब रुपये की शराब पी जाते हैं।
इसका उनके स्वास्थ्य पर पड़ा प्रभाव उतना घातक नहीं, जितना आने वाली पीढ़ी पर पड़ता है। मनुष्य शरीर में प्रजनन कोष (जनेटिक सेल्स) सबसे अधिक कोमल होते हैं, इन्हीं में बच्चों के शरीर निर्धारित करने वाले क्रोमोसोम (संस्कार कोश) पाये जाते हैं। नशों के कारण यह गुण सूत्र अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। उसी का कारण होता है कि बच्चे काने, कूबड़े, लूले, लँगड़े पैदा होते हैं। इंग्लैंड में ४० बच्चों के पीछे १ बच्चा अनिवार्य रूप से कुरूप होता है। आस्ट्रेलिया में ५० में १, स्पेन में ७० के पीछे १ और हांगकांग में ८५ में से १ बच्चा लँगड़ा-अपाहिज पैदा होता है। अमेरिका में प्रतिवर्ष २५०००० बच्चे ऐसे पैदा होते हैं, जिनके शरीर का कोई न कोई अंग विकृत अवश्य होता है। इस समय वहाँ के विभिन्न अस्पतालों तथा घरों में ११००0000 बच्चे ऐसे पैदा होते हैं, जिन्हें किसी न किसी रूप में विकलांग कहा जा सकता है। वह न तो किसी मोटर दुर्घटना का परिणाम होगा, न चोट या मोच का। स्पष्ट है कि यह सब लोगों के आहार-विहार और जीवन पद्धति का दोष है, जो आगामी पीढ़ी को यों दोषी बना रहा है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न