आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
अब मन के क्षेत्र में आइये। मनुष्य का मन शरीर से भी अधिक शक्तिशाली साधन है। इसके निर्द्वद्व रहने पर मनुष्य आश्चर्यजनक उन्नति कर सकता है, किंतु खेद है कि आज लोगों की मनोभूमियाँ बुरी तरह विकारग्रस्त बनी हुई हैं। चिंता, भय, निराशा, क्षोभ, लोभ और आवेगों का भूकंप उसे अस्त-व्यस्त बनाये रहता है। स्थिरता, प्रसन्नता और सदाशयता का कोई लक्षण दृष्टिगोचर नहीं होता। ईर्ष्या, द्वेष और रोष-क्रोध की नष्टकारी चिताएँ जलती और जलाती ही रहती हैं। ऐसे कितने लोग मिलेंगे, जिनकी मनोभूमि इन प्रकोपों से सुरक्षित हो और जिसमें आत्म-गौरव, धर्मपरायणता और कर्तव्यपालन की सद्भावनायें फलती-फूलती हों? अन्यथा लोग मानसिक विकारों, आवेगों और असद्विचारों से अर्धविक्षिप्त से बने घूम रहे हैं। इस प्रचंड मानसिक पवित्रता, उदार भावनाओं और मनःशांति का महत्त्व समझें और निःस्वार्थ, निर्लोभ एवं निर्विकारिता द्वारा उसको सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते चलें तो मानसिक विकास के क्षेत्र में बहुत दूर तक आगे बढ़ सकते हैं।
क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? किस प्रकार करना चाहिए और कौन-सी गतिविधि नहीं अपनानी चाहिए? इस बात का उचित न्याय सामने रखकर चलने वाले आध्यात्मिक लोग बहुधा मानसिक समस्याओं से सुरक्षित बने रहते हैं। अपनी उन्नति करते चलें और दूसरों की उन्नति में सहायक होते चलें, अपनी स्थिति और दूसरों की स्थिति के बीच अंतर से न तो ईर्ष्यालु बने और न हीनभावी। इसी प्रकार असफलता में निराशा को और सफलता में अभिमान को पास न आने दें। मनःशांति का महत्त्व समझते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों और विरोधों में भी उद्विग्न और क्रुद्ध न हों। सहिष्णुता, सहनशीलता, क्षमा, दया और प्रेम का प्रश्रय लेते चलें। मनःक्षेत्र में इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण का समावेश कर लेने पर मानसिक समस्याओं के उत्पन्न होने का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता।
आर्थिक क्षेत्र में तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण का महत्त्व और भी अधिक है। इस क्षेत्र में ही लोग अधिक अनात्मिक और अनियमित हो जाया करते हैं। आर्थिक क्षेत्र के आध्यात्मिक सिद्धांत हैं—मितव्ययिता, संतोष, निरालस्य और ईमानदारी। मितव्ययी व्यक्ति को आर्थिक संकट कभी नहीं सताता। ऐसा व्यक्ति जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं के सिवाय कृत्रिमता को कभी भी प्रश्रय नहीं देता। विलास, भोग और अनावश्यक सुख-सुविधा के साधनों से उसका कोई लगाव नहीं होता और न वह प्रदर्शन की ओछी वृत्ति को ही अपनाया करता है। संतोषी आर्थिक क्षेत्र में ईर्ष्या-द्वेष. प्रतिस्पर्धा, लोभ और स्वार्थपरता के पापों से बचा रहता है। आर्थिक क्षेत्र में आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति निरालस्य होकर भरपूर परिश्रम करता है। ईमानदारी के पारिश्रमिक द्वारा मितव्ययिता और संतोषपूर्वक जीवनयापन करता हुआ सदा प्रसन्न रहता है। न तो उसे स्वार्थ की अधिकता सताती है, न ईर्ष्या जलाती है और न ऐसे व्यक्ति के विरोध में कोई अन्य लोग ही खड़े होते हैं।
इस प्रकार तन, मन और धन के शक्तिशाली साधनों को उपयोगी बनाकर व्यवहार जगत् और आर्थिक जगत् में समान रूप से आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखकर चला जाए तो मनुष्य की सारी समस्याओं का एक साथ ही समाधान हो जाए और तब वह लौकिक और आत्मिक दोनों जीवनों में समान रूप से प्रगति कर सकता है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न