आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
कृषि, रसायन, शिल्प, चिकित्सा, व्यापार, संगीत आदि सामान्य कार्यों के लिए उनकी निर्धारित पद्धति को अपनाना पड़ता है। राज्य व्यवस्था संविधान एवं कानून पद्धति के अनुसार चलती हैं। उन व्यवस्थाओं के प्रति अज्ञानता एवं उपेक्षा रखने वाले व्यक्ति मनमानी करते हुए चलने लगें तो उन्हें असफलता एवं निराशा का ही मुँह देखना पड़ेगा। मानव-जीवन तो एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान् प्रक्रिया है, उसका विज्ञान एवं विधान जाने बिना या जानकर उस पर चले बिना वह आनंद एवं श्रेय नहीं मिल सकता, जो मनुष्य जीवन जीने वाले को मिलना ही चाहिए।
मानव-जीवन के दो पहलू हैं—एक आत्मा, दूसरा शरीर। एक आंतरिक, दूसरा बाह्य। दोनों में एक से एक बढ़कर विभूतियाँ एवं समृद्धियाँ भरी पड़ी हैं। आत्मिक क्षेत्र में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार चारों ही क्रमशः एक से एक बढ़कर शक्ति-संस्थान है। पाँच कोश एवं छह चक्र, अपने गर्भ में अगणित ऋद्धि-सिद्धियाँ छिपाये बैठे हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग ब्रह्मरंध्र में अवस्थित शत-दल-कमल, हृदयसंस्थान का सूर्यचक्र, नाभिदेश में प्रतिष्ठित ब्रह्मग्रंथि, मूलाधारवासिनी महासर्पिणी कुंडलिनी का जो विवेचन योग शास्त्रों में मिलता है, उससे स्पष्ट है कि विश्व की अत्यंत महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ बीज के रूप में इन छोटे केंद्रों में भरी पड़ी हैं। योगाभ्यास द्वारा इन्हें जाग्रत् करके साधना मार्ग के पथिक अपने को अलौकिक सामर्यों से सुसंपन्न सिद्ध पुरुषों की श्रेणी में पहुँचा देते हैं। ऋषि-मुनियों ने अध्यात्म विद्या के गृढ रहस्यों का अवगाहन कर प्रकृति की उन विस्मयकारी शक्तियों पर आधिपत्य प्राप्त कर लिया था, जो भौतिक विद्या के वैज्ञानिकों के लिए अभी भी रहस्यमय बनी हुई है।
खेदपूर्वक यह स्वीकार करना होगा कि हमारे आलस्य और प्रमाद ने योग की उन उच्चस्तरीय विद्याओं को गँवा दिया। वैज्ञानिक शोध जैसी निष्ठा में संलग्न होने वाले साधक आज कहाँ हैं? योगी का वेश बनाकर पूजा और आजीविका कमाने वाले रंगे सियार बहुत मिलेंगे, पर सूक्ष्म प्रदेशों को जाग्रत् और परिमार्जित करने के लिए कठोर तपश्चर्या का साहस करने वाले निष्ठावान् पुरुषार्थी नहीं के बराबर दिखाई पड़ते हैं। जो हैं उन्हें बहुत कुछ मिलता भी है। जिनके आशीर्वाद प्राप्त करके मनुष्य अपना जीवन धन्य और सफल बना सकें, ऐसे ऋषिकल्प सत्पुरुष अभी भी मौजूद हैं।
प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों के संरक्षण में सारा विश्व ही स्वर्गीय सुख-शांति का उपभोग कर रहा था। आत्मबल की महत्ता का उच्चस्तरीय प्रकरण रहस्यमय है। कठिन और कष्टसाध्य भी है। उस मार्ग पर कम ही लोग चल पाते हैं, फिर भी यह तथ्य सुनिश्चित ही रहेगा कि आत्मा के सूक्ष्म-संस्थानों की साधना, रहस्यमयी एवं चमत्कारी प्रतिफल उत्पन्न करती है। उसका अवलंबन लेकर मनुष्य अपना जीवनलक्ष्य प्राप्त करने के अतिरिक्त संसार की भी इतनी बड़ी सेवा कर सकता है, जितनी बड़ी से बड़ी भौतिक क्षमता संपन्न व्यक्तियों की सम्मिलित शक्तियों के द्वारा भी संभव नहीं।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न