आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
उच्चस्तरीय सूक्ष्म-साधना का फल आकर्षक, चमत्कारी एवं आश्चर्यजनक तो अवश्य है, पर उसकी साधना भी उसी अनुपात से समयसाध्य और कष्टसाध्य है। बाल-बुद्धि के लोग यह आशा किया करते हैं कि कुछ ही दिन छोटा-मोटा कर्मकांड करके उस स्थिति की सफलता प्राप्त कर लेंगे। बरगद का पेड़ बड़ा समृद्धिशाली और चिरस्थायी माना गया है, पर उसके उगने-बढ़ने और फलने-फूलने की स्थिति तक पहुंचने में देर लगती है। उतावली में हथेली पर सरसों जमाने की बालक्रीड़ा उपहासास्पद ही सिद्ध होती है। योगाभ्यास की साधन विधियाँ भले ही बहुत कठिन न हों, पर उनके फलित होने लायक साधक की पूर्व भूमिका तो शुद्ध होनी ही चाहिए। यदि साधक का बाह्य जीवन दूषित, कलुषित, निकृष्ट एवं अस्त-व्यस्त रहा होगा तो उसे लौकिक समृद्धि, सफलता एवं सुख-शांति भी प्राप्त न हो सकेगी, ऐसी दशा में आत्मबल एवं उच्च विभूतियों की उपलब्धि की आशा तो की ही कैसे जा सकती है?
नियम यह है कि पहले बाह्य जीवन में अध्यात्म तत्त्वज्ञान का समावेश करके उसे सुख-शांतिमय बनाया जाए। इस प्रकरण में जितनी उपासना अभीष्ट है, उतनी करते रहा जाए पर अधिक जोर बाह्य जीवन को सुसंगत बनाने के लिए ही दिया जाए। लौकिक-जीवन को सुविकसित एवं सुसंस्कृत बना लेना भी एक आध्यात्मिक साधना ही है। उसका प्रतिफल भी लौकिक सफलताओं एवं सुसंबद्धताओं के रूप में ही उलब्ध होता है। इस सफलता के बाद उच्चस्तरीय आध्यात्मिक साधना सरल हो जाती है और उनकी सफलता में भी कठिनाई नहीं आती। जो साधक जप-तप तो बहुत करते हैं किंतु लौकिक जीवन निकृष्ट बनाये रहते हैं उनको प्रायः निराश ही रहना पड़ता है।
कई व्यक्ति अपनी पात्रता बढ़ाने पर ध्यान न देकर समर्थ शक्तियों के उपहार स्वरूप विविध-विधि वरदान प्राप्त करने के फेर में पड़े रहते हैं। देवताओं की पूजा वे इसी उद्देश्य से करते हैं कि कम समय, कम श्रम, कम खर्च करके बड़ा लाभ प्राप्त कर लें। लाटरी लगाने वालों एवं जुआ खेलने वालों का भी यही उद्देश्य रहता है। ऐसे लोग थोड़ा खर्च करके बिना श्रम एवं क्षमता के ही विपुल धनराशि प्राप्त करने के सपने देखते हैं। इनमें से किसी बिरले की ही कामनापूर्ण होती है, अधिकांश तो निराश ही रहते हैं। देवताओं का वरदान वस्तुतः इतना सस्ता नहीं है जितना लोगों ने समझ रखा है। वे 'दर्शन' करने मात्र से प्रसन्न हो जायेंगे या अक्षत, पुष्प जैसी छोटी चीजें पाकर अपना अनुग्रह हमारे ऊपर उड़ेल देंगे, ऐसा सोचना उचित नहीं। पूजा का भी अपना महत्त्व है, उसका भी लाभ होता है। पर मूल तथ्य पात्रता है। अनधिकारी की, कुपात्र की प्रार्थना भी सफल नहीं होती। देवता या भगवान् को प्रसन्न करने का, उनका अनुग्रह उपलब्ध करने का सुनिश्चित मार्ग अपनी पात्रता बढ़ाना ही हो सकता है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न