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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


स्कूली शिक्षा के मूल्य पर कई व्यक्तियों को ऊँची नौकरी मिल जाती है। पूँजी होने पर ब्याज-भाड़े से या किसी ढर्रे के व्यापार को अपनाये रहने से धन कमाते रहना भी सरल हो जाता है। शरीर और मस्तिष्क की अच्छा बनावट होने से सुंदरता, चतुरता एवं कला-कौशल में निपुणता मिल जाती है। संयोग एवं परिस्थितियाँ भी किसी को सम्मानास्पद स्थिति पर ले जाकर बिठा देती हैं। इन माध्यमों से कितने ही लोग बड़े बन जाते हैं और सफलता का गर्व-गौरव अनुभव करते रहते हैं। पर यह सारे आधार बाहरी दिखावा मात्र है। संयोगवश या दुर्भाग्य से किसी कारण यह परिस्थितियाँ बदल जाएँ और सम्मान-सौभाग्य छिन जाए तो ऐसे व्यक्ति सर्वदा निस्तेज और दीन-हीन दिखाई पड़ते हैं। अपने निज के सदगुण न होने के कारण परिस्थितियों के आधार पर बड़े बने रहने वाले व्यक्तियों को ही राजा से रंक और अमीर से भिखारी होते देखा जाता है। जिसमें अपने गुण होंगे वह गई-गुजरी परिस्थिति में से भी अपने लिए रास्ता निकालेगा और नरक में जायेगा तो वहाँ भी जमादार बनकर रहेगा।

सरकारी ऊँचे पदों पर काम करने वाले व्यक्ति जब सेवानिवृत्त होते हैं तो उनमें से कितने ही मौत के दिन पूरे करते हुए शेष जीवन नीरस, निस्तेज और निकम्मा ही व्यतीत करते हैं। पद ने इन्हें जो गौरव दिया था वह पद छिनते ही चला गया। व्यक्तिगत सद्गुणों के अभाव में अब वे एक निकम्मे-निरर्थक मनुष्य की तरह ही बने हुए रहते हैं, जिनकी कहीं कोई पूछ नहीं। किंतु यदि उनमें वैयक्तिक सद्गुण रहे होते हैं तो सेवानिवृत्त होकर अपनी स्वतंत्र प्रतिभा के आधार पर जहाँ भी रहते हैं वहीं नवीन चेतना उत्पन्न करते हैं।

प्राचीनकाल में वानप्रस्थी और संन्यासी लोग गृह-त्याग देने के पश्चात् भी समाज की असाधारण सेवा करते थे, पर आज लाखों साधू महात्मा समाज के लिए भारभूत होकर निरर्थक जीवन बिताते हैं। इसका एकमात्र कारण इतना ही होता है कि उनमें अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं हुआ होता। गुण-कर्म-स्वभाव की दृष्टि से वे पिछड़े हुए या अविकसित होते हैं। ऐसी दशा में जब तक वे गृहस्थ या उद्योग के किसी ढर्रे में फिट थे, तब तक कुछ काम कर भी सकते थे। पर वे साधन न रहने पर एकाकी-विरक्त जीवन में उन्हें शून्यता के अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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