लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


प्रगति की जड़ व्यक्तित्व को विकसित करने वाले सद्गुणों की मात्रा पर निर्भर रहती है। वह जितनी ही अधिक होगी उतना ही व्यक्ति सुदृढ़ या उपयोगी हो सकेगा। ऐसे व्यक्ति जहाँ भी, जिस परिस्थिति में भी रहते हैं, वहीं अपनी उपयोगिता और आवश्यकता देखते हैं। हर स्थिति में उनका स्वागत और सम्मान होता है। अंधे, अपाहिज और दरिद्रों में भी कितने लोग ऐसे होते हैं, जिनकी समीपता को लोग अपना सौभाग्य समझते हैं। इसके विपरीत कितने ही साधनसंपन्न लोगों से वे भी मन ही मन घोर घृणा करते हैं, जो उनत निरंतर लाभ उठाते रहते हैं। सद्गुण तो वह जादू है, जिसकी प्रशंसा शत्रु को भी करनी पड़ती है।

किसने, कितनी उन्नति की, इसकी सच्ची कसौटी यह है कि उस मनुष्य के दृष्टिकोण और स्वभाव का कितना परिष्कार हुआ? किसी बाह्य स्थिति को देखते हुए उसकी उन्नति-अवनति का अंदाज नहीं किया जा सकता। कितने ही बेवकूफ और बदतमीज आदमी परिस्थितियों के कारण शहंशाह बने होते हैं, कितने ही लुच्चे-लफंगे षड्यंत्रों के बल पर सम्मान के स्थानों पर अधिकार जमाये बैठे होते हैं। कई ऐसे लोग जिन्हें लोग धर्म का क, ख, ग, घ सीखना बाकी है, धर्मगुरु के पद पर पुजते देखे जाते हैं। यह संसार विडंबनाओं से भरा है। कितने ही व्यक्ति अनुचित रीति से सफलता प्राप्त करते हैं और अयोग्यताओं से भरे रहते हुए भी सुयोग्यों पर हुकूमत चलाते हैं। इस विडंबना के रहते हुए भी व्यक्तित्व के विकास का, सुसंस्कारिता और श्रेष्ठता का मूल्य किसी भी प्रकार कम नहीं होता। वह जहाँ कहीं भी होगा-अपना प्रकाश फैला रहा होगा, अपनी मनोरम सुगंध फैला रहा होगा। गई-गुजरी परिस्थितियों में भी उसने अपने उत्कृष्ट दृष्टिकोण के कारण उस छोटे से क्षेत्र में नये स्वर्ग की रचना कर रखी होगी। मानवीय स्वभाव की श्रेष्ठता गुलाब के फूल की तरह महकती है, उसे मनुष्य ही नहीं, भौंरे, तितली और छोटे-छोटे नासमझ कीड़े तक पसंद कर रहे होते हैं।

बाहरी उन्नति की जितनी चिंता की जाती है, उतनी ही भीतरी, उन्नति के बारे में की जाए तो मनुष्य दुहरा लाभ उठा सकता है। आध्यात्मिक दृष्टि से तो वह ऊँचा उठेगा ही, लौकिक सम्मान एवं भौतिक सफलताओं की दृष्टि से भी वह किसी से पीछे न रहेगा। किंतु यदि आंतरिक स्थिति को गया बीता रखा गया और बाहरी उन्नति के लिए ही निरंतर दौड़-धूप होती रही तो कुछ साधन-सामग्री भले ही इकट्ठी कर ली जाए, पर उसमें भी उसे शांति न मिलेगी। कई धनी-मानी और बड़े कारोबारी व्यक्ति सामान्य स्तर के लोगों की अपेक्षा भी अधिक चिंतित और दुःखी देखे जाते हैं। कारण यही है कि कार्य विस्तार के साथ उनकी उलझनें तो बढ़ती हैं, पर उन्हें सुलझाने का उचित दृष्टिकोण न होने से उन्हें अधिक उद्विग्न रहना पड़ता है। ऐसे लोग आमतौर से निरंतर उद्विग्न रहते, कुढ़ते और झुंझलाते देखे जाते हैं। संपन्नता का सुख भी केवल उन्हें मिलता है, जिन्होंने अपना आंतरिक परिष्कार कर लिया होता है। धन का सदुपयोग करके तथा पद एवं मान द्वारा उपलब्ध प्रभाव को परमार्थ में लगाकर, ऐसे ही लोग ईश्वर-प्रदत्त सुविधाओं का समुचित लाभ उठाया करते हैं। दूसरे लोग तो सर्प की तरह चौकीदारी करते हुए निरंतर उद्विग्न रहने का उलटा भार वहन करते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book