लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


आंतरिक परिष्कार की ओर समुचित ध्यान देना, यही बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता का प्रथम चरण है। अध्यात्म का पहला शिक्षण यही है कि मनुष्य अपने स्वरूप को समझे। यह सोचे कि मैं कौन हूँ? और क्या बना हुआ हूँ? आत्म-चिंतन ही साधना का प्रथम सोपान कहा जाता है। यह चिंतन ईश्वर-जीव-प्रकृति की उच्च भूमिका से आरंभ नहीं किया जा सकता। कदम तो क्रमशः ही उठाये जाते हैं। नीचे की सीढ़ियों को पार करते हुए ही ऊपर को चढ़ा जा सकता है। शिवोऽहम्, शिवोऽहम् की ध्वनि करने से पूर्व, अपने को सच्चिदानंद ब्रह्म मानने से पूर्व हमें साधारण जीवन पर विचार करने की आवश्यकता पड़ेगी और यह देखना पड़ेगा कि ईश्वर का पुत्र-जीव आज कितने दोष-दुर्गुणों से ग्रसित होकर पामरता का उद्विग्न जीवन-यापन कर रहा है। माया के बंधनों ने उसे कितनी बुरी तरह जकड़ रखा है और पग-पग पर कैसा त्रास दे रहे हैं? माया का अर्थ है-वह अज्ञान जिससे ग्रस्त होकर मनुष्य अपने को निर्दोष और सारी परिस्थितियों के लिए दूसरों को उत्तरदायी मानता है। भव-बंधनों से मुक्ति का अर्थ है-कुविचारों-कुसंस्कारों और कुकर्म से छुटकारा पाना। अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता। इसका मूल्य जीवन की असफलता का पश्चात्ताप करते हुए ही चुकाना पड़ता है।

अध्यात्म मार्ग पर पहला कदम बढ़ाते हुए साधक को सबसे पहले आत्म चिंतन की साधना करनी पड़ती है। ब्रह्मचर्य, तप, त्याग, सत्य, अहिंसा आदि उच्चतम आध्यात्मिक तत्त्वों को अपनाने से पहले उसे छोटी-छोटी त्रुटियों को सँभालना होता है। परीक्षार्थी पहले सरल प्रश्नों को हाथ में लेते हैं और कठिन प्रश्नों को अंत के लिए छोड़ रखते हैं। लड़कियाँ गृहस्थ की शिक्षा गुड़ियों के खेल से आरंभ करती हैं। युद्ध में शस्त्र चलाने की निपुणता पहले साधारण खेल के रूप में उसका अभ्यास करके ही की जाती है। सबसे पहले एम० ए० की परीक्षा देने की योजना बनाना गलत है। पहले बाल कक्षा, फिर मिडिल, मैट्रिक, इंटर, बी० ए० पास करते हुए एम० ए० का प्रमाण-पत्र लेने की योजना ही क्रमबद्ध मानी जाती है। सुधार के लिए सबसे पहले सत्य, ब्रह्मचर्य या त्याग को ही हाथ में लेना अनावश्यक है। आरंभ छोटे-छोटे दोष-दुर्गुणों से करना चाहिए। उन्हें ढूँढना और हटाना चाहिए। इस क्रम से आगे बढ़ने वाले को जो छोटी-छोटी सफलताएँ मिलती हैं, उनसे उसका साहस बढ़ता चलता है। उस सुधार के जो प्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं, उन्हें देखते हुए बड़े कदम उठाने का साहस भी होता है और उन्हें पूरा करने का मनोबल भी संचित हो चुका होता है।

जो असंयम, आलस्य, आवेश, अनियमितता और अव्यवस्था की साधारण कमजोरियों को जीत नहीं सका, वह षड् रिपुओं के असुरता के आक्रमणों का मुकाबला क्या करेगा? संत, ऋषि और देवता बनने से पहले हमें मनुष्य बनना चाहिए। जिसने मनुष्यता की शिक्षा पूरी नहीं की, वह महात्मा क्या बनेगा?

जप-तप आवश्यक है। आत्मकल्याण के लिए उनकी भी आवश्यकता है। पर यह ध्यान रखना चाहिए कि गुण, कर्म, स्वभाव में आवश्यक सुधार किये बिना न आत्मा की प्रगति हो सकती है, न परमात्मा की प्राप्ति। इसलिए आत्मकल्याण के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को आत्मचिंतन की साधना भी आरंभ करनी चाहिये और उसका श्रीगणेश तप-त्याग जैसे उच्च आदर्शों से नहीं, गुण-कर्म-स्वभाव का मानवोचित परिष्कार करते हुए व्यक्तित्व को सुविकसित करने में संलग्न होकर करना चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book