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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


संतोष रखने का तात्पर्य यह है कि जब प्रयत्न करते हुए भी किसी कारणवश सफलता न मिले या अल्प मात्रा में मिले तो उस समय मानसिक विक्षेप के ऊपर काबू रखा जाए, निराशा और दुःख से बचने के लिए ईश्वरेच्छा समझकर संतोष किया जाए। उन्नति करना एक ईश्वरीय आज्ञा है, जिसका पालन करना हर विवेकशील व्यक्ति को अपना कर्तव्य समझना चाहिए। यह संसार कर्मभूमि है, कर्तव्य करने के लिए आप अवतीर्ण हुए हैं, अपने इच्छित उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करके विजयी और वैभवशाली बनने की इच्छा कीजिये और उस इच्छा को पूर्ण करने में उत्साह के साथ प्रवृत्त हो जाइए।

पिता अपने उस बच्चे को अधिक प्यार करता है, जो अधिक उद्योगी होता है। कमाऊ पूत का घर में स्वागत-सत्कार किया जाता है। पिता को उसकी कमाई नहीं चाहिए, पर उन्नति देखकर उसे संतोष होता है। एक लड़का कलेक्टर हो जाए और दूसरा भीख माँगे तो पिता जगह-जगह अपने उस लड़के की प्रशंसा करेगा, जो कलेक्टर हो गया है। भले ही उस उच्च पद का भौतिक लाभ उस लड़के को ही मिलता है तो भी पिता इसमें गर्व करता है कि मेरी एक रचना प्रशंसा के योग्य सिद्ध हुई। भिखारी लड़के के बारे में पिता मन ही मन खिन्न रहता है, उसके कार्यों से स्वयं भी लज्जित होता है, किसी से उसके बारे में चर्चा नहीं करता और अपरिचितों में यह प्रकट नहीं करता कि यह मेरा ही लड़का है। निरुद्योगी संतान पर भला कौन अभिभावक गर्व कर सकते हैं? किन्हें उस पर प्यार हो सकता है?

जब बालक खेल में जीतकर आता है, परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आता है, प्रतियोगिता में पुरस्कार लेकर आता है तो पिता के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएँ दौड़ जाती हैं। वह बच्चे को उठाकर छाती से लगा लेता है। दूसरा मरियल लड़का जो घर बैठा-बैठा मक्खी मारा करता है, उतना प्यारा नहीं हो सकता, भले ही वह सारे दिन पिता के पैर दबाया करे या पंखा झला करे। अपने ऊपर पंखा झला जाने की अपेक्षा पिता यह पसंद करता है कि बालक चाहे उसके कुछ भी काम न आने पर स्वयं उन्नति करे, आगे बढ़े, विजय प्राप्त करे। ईश्वर भी हमसे ऐसी ही आशा करता है, वह आपको पराक्रमी, पुरुषार्थी, उन्नतिशील, विजयी, महान्, वैभवयुक्त, विद्वान्, गुणवान् देखकर बहुत प्रसन्न होता है और अनायास ही उठाकर छाती से लगा लेता है। उसे इस बात की इच्छा नहीं कि आप तिलक लगाते हैं या नहीं, पूजा-पत्री करते हैं या नहीं, भोग-आरती करते हैं या नहीं, क्योंकि उस सर्वशक्तिमान् प्रभु का कुछ भी काम इन सबके बिना रुका हुआ नहीं है। वह इन बातों से प्रसन्न नहीं होता, उसकी प्रसन्नता तब प्रस्फुटित होती है, जब अपने पुत्रों को ऊँचा चढ़ते, उन्नति करते देखता है, अपनी रचना की सार्थकता अनुभव करता है।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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