आचार्य श्रीराम शर्मा >> ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान-धारणा ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान-धारणाश्रीराम शर्मा आचार्य
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ब्रह्मवर्चस् की ध्यान धारणा....
२. सविता अवतरण का ध्यान
विज्ञानमय कोश की ध्यान-धारणा में हृदय चक्र के माध्यम से सविता देव के प्रवेश-समावेश की भावना की जाती है और अनुभव किया जाता है कि विज्ञानमय कोश सविता शक्ति से ओत-प्रोत हो रहा है। सविता को प्रकाश और शक्ति का केंद्र माना गया है। जहाँ उनका प्रवेश होगा, वहाँ ये दोनों ही क्षमताएँ उभरी हुई अनुभव में आएँगी। विज्ञानमय कोश प्रकाशवान हो रहा है और उसमें पहले की अपेक्षा अधिक सशक्तता उभर रही है, ऐसा प्रतीत होगा। विज्ञानमय कोश को इस धारणा के समय इसी प्रकार प्रकाश एवं दिव्य बल से भरा-पूरा अनुभव करना चाहिए।
विज्ञानमय कोश में सविता प्रकाश रूप 'दीप्ति' माना गया है। दीप्ति प्रकाश की वह दिव्य-धारा है जिसमें प्रेरणा एवं आगे बढ़ाने की शक्ति भी भरी रहती है। ऐसी क्षमता को 'वर्चस्' कहते हैं। ब्रह्मवर्चस् ब्रह्मबल को कहते हैं और आत्मवर्चस् आत्मबल को। दीप्ति सविता वर्चस् है। जो प्रकाश युक्त होने के साथ-साथ धकेलने का काम भी करती है। साधारणतया इसे प्रेरणा कहा जा सकता है। यद्यपि वह प्रेरणा से ऊँची चीज है। प्रेरणा से दिशा प्रोत्साहन देने जैसा भाव टपकता है, किंतु वर्चस् में यह चमक है जो धकेलने, घसीटने, फेंकने, उछालने की भी सामर्थ्य रखती है। विज्ञानमय कोश को सविता पिंड, सविता पुंज के रूप में अनुभव करने के अतिरिक्त नस-नस में, कण-कण में, रोम-रोम में, दीप्ति का संचार होने की अनुभूति के रूप में हृदयंगम किया जाता है।
दीप्ति का प्रभाव विज्ञानमय कोश में दो प्रकार होता है- एक दिव्य भाव संवेदनाओं के रूप में, दूसरा अतींद्रिय ज्ञान के रूप में।
अतींद्रिय ज्ञान को दिव्य दृष्टि और दिव्य भाव संवेदना को सहृदयता कह सकते हैं। दीप्ति की प्रेरणा से सद्भावनाओं का अभिवर्धन होता है और सहृदयता जैसी सत्प्रवृत्तियाँ उभर कर आती हैं, ऐसी आस्था अंत:करण में सुदृढ़ की जानी चाहिए। दूसरों के दुःख में दुःखी, दूसरों के सुख से सुखी होने की, आत्मवत् सर्वभूतेषु की, संवेदनाएँ उभरने से 'सब हमारे-हम सबके' होने की मान्यता परिपुष्ट होती हैं। फलतः संकीर्ण स्वार्थपरता उदात्त परमार्थपरायणता में बदल जाती है। इस प्रकार की आस्था का सुदृढ़ होना आत्मविकास का प्रत्यक्ष प्रमाण माना जा सकता है।
ध्यान-धारणा के अवसर पर यह मान्यता सुदृढ़ करनी चाहिए कि विज्ञानमय कोश वाली आत्मसत्ता सूक्ष्म जगत की नागरिक है। उस देश में उसे निवास करने, व्यापार चलाने एवं आदान-प्रदान का अधिकार प्राप्त है। हर देश के नागरिक अपने देश की स्थिति का लाभ उठाते और उसे सुविकसित बनाने में योगदान करते हैं। इसी प्रकार विज्ञानमय कोश के जागरण के अनुपात से सूक्ष्म जगत की नागरिकता का स्तर बढ़ता चला जाता है। उस प्रगति के आधार पर सूक्ष्म जगत में हलके अथवा भारी दायित्व उठा सकने की स्थिति बनती चली जाती है। अतींद्रिय ज्ञान किन्हीं-किन्हीं को पूर्वजन्मों के संचित संस्कारों से अनायास ही बिना किसी प्रयत्न के भी जगता देखा गया है। ऐसे लोग भी देखे गए हैं जिनमें बिना विशेष साधना के भी अतींद्रिय क्षमता विकसित पाई गई है। यह अपवाद है। प्रयत्नपूर्वक कोई भी आत्मविकास की साधना करते हुए विज्ञानमय कोश को दिव्यशक्ति से, सविता शक्ति से भरा-पूरा बना सकता है और मनुष्यों के बीच, देवलोक के निवासियों की तरह अपनी विशेष स्थिति बनाए रह सकता है।
ध्यान करें-सविता शक्ति के किरण पुंज का हृदय चक्र में प्रवेश, चक्र- वर की आभा बढ़ती है। दिव्य
संवेदनाओं का संचरण सारे अंतःकरण में होता है। सूक्ष्म जगत की तरंगों का हृदय चक्र से सीधा संपर्क-दोनों का आदान-प्रदान होता हुआ अनुभव करें। स्वयं को असीम सत्ता में व्याप्त, फैला हुआ अनुभव करें। सहृदयता, श्रद्धा, दिव्य-ज्ञान का विकास हो रहा है। स्नेह, करुणा जैसी संवेदनाओं के रोमांच का शरीर में बोध होता है।
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- ब्रह्मवर्चस् साधना का उपक्रम
- पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
- गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
- साधना की क्रम व्यवस्था
- पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा
- कुंडलिनी जागरण की ध्यान धारणा
- ध्यान-धारणा का आधार और प्रतिफल
- दिव्य-दर्शन का उपाय-अभ्यास
- ध्यान भूमिका में प्रवेश
- पंचकोशों का स्वरूप
- (क) अन्नमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ख) प्राणमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ग) मनोमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (घ) विज्ञानमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ङ) आनन्दमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- कुंडलिनी के पाँच नाम पाँच स्तर
- कुंडलिनी ध्यान-धारणा के पाँच चरण
- जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
- चक्र श्रृंखला का वेधन जागरण
- आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
- अंतिम चरण-परिवर्तन
- समापन शांति पाठ