आचार्य श्रीराम शर्मा >> ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान-धारणा ब्रह्मवर्चस् साधना की ध्यान-धारणाश्रीराम शर्मा आचार्य
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ब्रह्मवर्चस् की ध्यान धारणा....
उच्चस्तरीय गायत्री साधना
कुंडलिनी जागरण की ध्यान धारणा
१. ध्यान भूमिका में प्रवेश-
(क) सावधान-कमर सीधी, दोनों हाथ गोद में, आँखें बंद, स्थिर शरीर,शांत चित्त, ध्यान मुद्रा।
(ख) दिव्य-साधना लोक-गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों का तप स्थान, शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस्, गायत्री तीर्थ, अखंड दीप, नित्य यज्ञ, नियमित जप, ब्रह्मसंदोह, दिव्य वातावरण तीन दिव्य सत्ताओं का संरक्षण, दिव्य-साधना लोक।...
(ग) प्रेरणा सद्गुरु देव की, भावानुभूति अपनी, संगम-गंगायमुना का, संगम आत्मचेतना-ब्रह्म-चेतना का।
(घ) भाव समाधि-वासना शांत, तृष्णा शांत, अहंता शांत, उद्विग्नता शांत।
(ङ) दिव्य-दर्शन-प्रात:काल, पूर्व दिशा, स्वर्णिम सूर्योदय, स्वर्णिम सूर्य-सविता, गायत्री का प्राण सविता। ..
(च) सविता-इष्ट, लक्ष्य, उपास्य, सविता-प्रकाश, ज्ञान, प्रज्ञा, सविता अग्नि, ऊर्जा, ब्रह्म-शक्ति, सविता ब्रह्म, सविता वर्चस्, सविता ब्रह्मवर्चस, सविता उपास्य, ब्रह्मवर्चस् उपास्य।
(छ) एकत्व, अद्वैत, साधक का सविता को समर्पण, समर्पणविसर्जन-विलय, साधक-सविता एक, भक्त-भगवान एक।
२. विशिष्ट ध्यान प्रयोग-
(क) सविता शक्ति का कुंडलिनी क्षेत्र में-मूलाधार में प्रवेश, कुंडलिनी जागरण, कुंडलिनी प्राण विद्युत, जीवनी-शक्ति, योगाग्नि, अंत:ऊर्जा ब्रह्म-ज्योति।
प्रथम चरण-मंथन-
(ख) सविता के सहयोग से, शक्ति क्षेत्र मंथन, मूलाधार मंथन, समुद्र मंथन, जीवन मंथन। मंथन-मंथन-मंथन। मंथन से अंत:ऊर्जा का संवर्धन, कुंडलिनी जागरण।
द्वितीय चरण-ऊर्ध्वगमन
(ग) सविता सहयोग से जागृत शक्ति का ऊर्ध्वगमन, जीवनीशक्ति का ऊर्ध्वगमन, कुंडलिनी का ऊर्ध्वगमन। ऊर्ध्वगमन-मूलाधार से सहस्रार तक-मेरुदंड मार्ग से। भू-लोक से ब्रह्मलोक तक-देवयान मार्ग से। जीवनी-शक्ति का ऊर्ध्वगमन, उत्थान, उत्कर्ष, अभ्युदय, कुंडलिनी जागरण।
तृतीय चरण-वेधन-
(घ) सविता सहयोग से षट्चक्रों का वेधन-प्राण विद्युत से शक्ति स्रोतों का उत्खनन, चक्रवेध-शब्दवेध-लक्ष्यवेध। वेधनउत्खनन-जागरण, षट्चक्र जागरण, मूलाधार चक्र जागरण, स्वाधिष्ठान चक्र जागरण, मणिपूर चक्र जागरण, अनाहत चक्र जागरण, विशुद्धि चक्र जागरण, आज्ञा चक्र जागरण-कुंडलिनी जागरण।
चतुर्थ चरण-विस्तरण-
(ङ) सविता सहयोग से योगाग्नि का विस्तार, आत्मसत्ता का ब्रह्मसत्ता में विस्तार, चिनगारी का दावानल में विस्तार, ज्योति का ज्वाला में विस्तार। आत्मसत्ता का विस्तरण, प्रस्सरण, जागरण, कुंडलिनी जागरण।
पंचम चरण-परिवर्तन-
(च) सविता सहयोग से आत्म-ज्योति का ब्रह्म-ज्योति में परिवर्तन, क्षुद्रता का महानता में परिवर्तन, कामना का भावना में परिवर्तन, वियोग का संयोग में परिवर्तन, नर का नारायण में परिवर्तन।
(छ) कुंडलिनी महाशक्ति का समग्र, संस्थान पर आधिपत्य बंधन-मुक्ति, ईश्वर दर्शन, कुंडलिनी जागरण-महान जागरण।
समापन शांति-पाठ-
(क) ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सदगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय, तमसो मा, तमसो मा, तमसो मा ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
(ख) पंच ॐकार, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ।
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- ब्रह्मवर्चस् साधना का उपक्रम
- पंचमुखी गायत्री की उच्चस्तरीय साधना का स्वरूप
- गायत्री और सावित्री की समन्वित साधना
- साधना की क्रम व्यवस्था
- पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा
- कुंडलिनी जागरण की ध्यान धारणा
- ध्यान-धारणा का आधार और प्रतिफल
- दिव्य-दर्शन का उपाय-अभ्यास
- ध्यान भूमिका में प्रवेश
- पंचकोशों का स्वरूप
- (क) अन्नमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ख) प्राणमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ग) मनोमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (घ) विज्ञानमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- (ङ) आनन्दमय कोश
- सविता अवतरण का ध्यान
- कुंडलिनी के पाँच नाम पाँच स्तर
- कुंडलिनी ध्यान-धारणा के पाँच चरण
- जागृत जीवन-ज्योति का ऊर्ध्वगमन
- चक्र श्रृंखला का वेधन जागरण
- आत्मीयता का विस्तार आत्मिक प्रगति का आधार
- अंतिम चरण-परिवर्तन
- समापन शांति पाठ