पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
"तुम दोनों ही अपनी-अपनी जगह ठीक हो।" बाबा बोले, "प्रश्न यह है कि आप भौतिक समृद्धि के बिना सुखी रह सकते हैं या भौतिक समृद्धि के लिए अपनी आत्मा और स्वधर्म का मूल्य चुकाकर सुखी रह सकते हैं।"...बाबा ने रुककर, पति-पत्नी दोनों को देखा, "मैं सुदामा की बात को एक सीमा तक ठीक मान सकता हूं। मैं कल्पना कर सकता हूं कि जब दुर्योधन जैसे राजा के आदेश से किसी ऋषि को अपनी अन्तरात्मा के विरुद्ध कुछ करना पड़ता होगा, तो उसे कितना आत्मदमन करना पड़ता होगा। पर द्रोण को मैं उन लोगों में से मानता हूं, जिनके लिए अन्तरात्मा और आत्मदमन जैसी अवधारणाओं का अस्तित्व ही नहीं है।'
"अच्छा! गुरु द्रोण को छोड़िये। आप अपना ही उदाहरण लीजिये बाबा!" सुदामा कुछ उद्दीप्त स्वर में बोले, "क्या आपको किसी राजदरबार में राजपण्डित या राजपुरोहित का पद नहीं मिल सकता? आप क्या किसी राजकीय गुरुकुल के आचार्य, उपाध्यक्ष अथवा कुलपति नहीं हो सकते?"
"मेरी बात छोड़ रे!'' बाबा की सारी दृढ़ता विलीन हो गयी। वे बालक के से स्वच्छन्द मन से हंसे, "मैं तो जन्म का उच्छृंखल ठहरा। मेरी राह चलेगा, तो अपनी गृहस्थी का भी पालन नहीं कर पायेगा। मुझे कोई राजकीय सम्मान मिलता है, तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती है। मैं सोचने लगता हूं कि मैंने ऐसा कौन-सा पाप किया है कि मुझे उसका यह दण्ड मिल रहा है। मैं तो राजाओं का, शासनों का विरोधी रहकर ही सुखी रह सकता हूं...।"
"संसार में कुछ और लोग भी ऐसे हो सकते हैं बाबा!" सुदामा बोले।
"हो क्यों नहीं सकते। तुझे कहने में संकोच है तो मैं कह दूं कि तू ही उनमें से एक है।" बाबा हंस पड़े, "हम उस बिरादरी के लोग हैं, जो ज्ञान से ऊपर कुछ नहीं मानते, जो सिवा ज्ञान के और किसी शक्ति का आधिपत्य नहीं मानते, जो सिवा ज्ञान के किसी की सत्ता से पराभूत नहीं होते...।" बाबा ने रुककर सुदामा को देखा, "किन्तु फिर भी तुझमें और मुझमें भेद है। थोड़ी देर पहले तू ही स्वधर्म की चर्चा कर रहा था न। तो तेरे और मेरे स्वधर्म में भी अन्तर है। अधिक न सही, पर थोड़ा-बहुत तेरी और मेरी प्रकृति में भेद तो है ही।"
सहसा उन तीनों का ध्यान कुटिया के द्वार पर खड़े विवेक की ओर चला गया। वह ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था।
सुशीला झटपट उसके पास पहुंची, "क्या हुआ?" और तभी उसने पलटकर सुदामा की ओर देखा, "यहां आइये। इसके मुंह से तो खून आ रहा है।"
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- अभिज्ञान