लोगों की राय
पौराणिक >>
अभिज्ञान
अभिज्ञान
प्रकाशक :
राजपाल एंड सन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2010 |
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
|
पुस्तक क्रमांक : 4429
|
आईएसबीएन :9788170282358 |
|
4 पाठकों को प्रिय
10 पाठक हैं
|
कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
आजीविका तो अर्जित करनी ही होगी। ब्राह्मण के लिए तो सरल उपाय यही है कि वह द्वार-द्वार भीख मांगे। पर गृहस्थ होकर कोई भीख क्यों मांगे? ब्राह्मण यदि समाज के लिए चिन्तन-मनन का कार्य करता है तो उसके भरण-पोषण का दायित्व समाज पर है। यह सत्य है। किन्तु सुदामा का आत्मसम्मान आज तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया था। भीख पर पलने वाले व्यक्ति का कोई भी सम्मान नहीं करता। सुदामा ने जितना जीवन देखा है, और जितने लोगों को जाना है, उन सबका निष्कर्ष यही है कि जीवन में स्वतन्त्र वही है, जो आत्मनिर्भर है। सबसे बड़ी आत्मनिर्भरता तो आर्थिक आत्मनिर्भरता है। स्वतन्त्रता के लिए, चिन्तन की स्वतन्त्रता के लिए ही तो उन्होंने कभी कोई चाकरी नहीं की। उन्होंने स्वतन्त्र बुद्धि-कर्म को स्वीकार किया। पर जब बुद्धि-कर्म से आर्थिक उपार्जन की बात उठती है; तो उन्होंने सदा यही पाया है कि अपनी इच्छा से, स्वतन्त्र रूप से रची गयी कृतियों पर उन्हें या तो थोड़ी बहुत ख्याति मिली है, या वह नहीं मिली। धन तो कभी नहीं मिला। हां! यदि वे दूसरों के आदेश पर उनकी आवश्यकतानुसार, उनकी रुचि के ग्रन्थ तैयार कर दें तो उन्हें कुछ धन मिल सकता है। पर अपनी लेखनी का व्यापार तो चाकरी से भी अधम कार्य हुआ। उसमें न चिन्तन की स्वतन्त्रता है, न रचनाकार का सम्मान। फिर, वे यदि करते रहेंगे तो कभी किसी स्तरीय कृति की रचना नहीं कर पायेंगे। लोगों के आदेश पर घटिया कृतियों की रचना क्या घटिया प्रकार की चाकरी नहीं है।
तो क्या वे सम्मानजनक चाकरी खोज लें? कौन-सी चाकरी? अध्यापन से अच्छी चाकरी और क्या हो सकती है...सुदामा का मस्तिष्क थम गया।
...अध्यापन तो अध्यापन है...गुरु कर्म! वह चाकरी कैसे हो सकती है? गुरु क्या चाकर होता है?
गुरु तो चाकर नहीं होता...वे मन-ही-मन मुस्कराये...पर अध्यापन यदि इसलिए किया जाये कि छात्रों के अभिभावकों से उसके प्रतिदान में आजीविका अर्जित की जायेगी, तो वह अपने-आप ही चाकरी हो गयी...पर यह चाकरी ऐसी है कि जिसमें अपने सम्मान तथा स्वतन्त्रता की रक्षा की जा सकती है। चार-छह बटुकों को इकट्ठा कर उन्हें शिक्षा देना और फिर राह ताकना कि वे कुछ ला दें...ग्राम के बालक हैं...क्या लायेंगे! कोई थोड़ा अन्न ले आता है, कोई शाक-भाजी, कोई फल। किसी के घर में कोई उत्सव हो तो कोई पकवान या मिठाई ले आता है...इन चीजों की मात्रा निश्चित नहीं है; और फिर इनके अतिरिक्त भी कुछ चीजों की आवश्यकता होती है जीवन में।
यदि वे चाकरी कर लें और उन्हें प्रतिमास, एक निश्चित वृत्ति मिल जाया करे तो वे इन चिन्ताओं से मुक्त होकर, अपना शेष समय अपने चिन्तन-मनन और लेखन-अध्ययन में लगाया करेंगे।
सहसा ही सुदामा का मन हल्का हो आया। यह बात उन्हें पहले क्यों नहीं सूझी?
...Prev | Next...
अनुक्रम
- अभिज्ञान
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai