पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
सुदामा कहने को तो कह गये, किन्तु कहते ही मन-ही-मन डर भी गये, कहीं ज्ञान ने इन बातों को समझा देने का हठ किया तो?
पर ज्ञान का ध्यान उस ओर नहीं था। बोला, "पिताजी! कोई कहानी सुनाइये।"
"कहानी!" सुदामा ने घबराहट प्रकट की, "कहानी! कौन-सी सुनाऊं? मैं तो कहानियां पढ़ता नहीं।"
"मां इतनी अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाती हैं।" ज्ञान बोला, "आप क्यों नहीं सुना सकते। आप तो मां से भी बड़े हैं। बाबा भी उस दिन कह कर चले गये। उन्होंने भी कहानी नहीं सुनायी।"
"तो मां से सुन लेना।" सुदामा हंसे।
"नहीं! आप सुनाइये।" ज्ञान ने हठ किया।
सुदामा ने पुत्र को निहारा...ज्ञान कभी-कभी इस प्रकार के हठ में पिता के प्रति अपनी प्राथमिकता प्रकट किया करता था।
"अच्छा सुनो!'' सुदामा कुछ सोचते हुए बोले, "कौन-सी कहानी सुनाऊं? कोई ऐतिहासिक..."
"कोई तोता-मैना की, चिड़िया और कौवे की...।"
सहसा सुदामा को कुछ सूझ गया, "अच्छा कौवों और कोयल की कहानी सुनाता हूं....।
ज्ञान चुपचाप उनकी ओर देखता रहा।
"एक वन था। बहुत सघन।"
"उसमें सिंह था?"
"सिंह भी था। पर मैं कोयल की कहानी सुना रहा हूं।" सुदामा बोले।
"कोयल थी?"
"हां! वहां एक पेड़ पर एक कोयल रहा करती थी।"
"सिंह, कोयल को खा नहीं गया?" ज्ञान ने पूछा।
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- अभिज्ञान