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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


"नहीं। सिंह कोयल को नहीं खाता। फिर कोयल पेड़ के ऊपर की शाखाओं पर रहती है। सिंह नीचे भूमि पर रहता है।" सुदामा बोले, "कोयल का स्वर बहुत मधुर होता है। कोयल कूकती है तो ऐसा लगता है, जैसे कोई मधुर गीत गा रहा है...। पर कोयल वाले वृक्ष के चारों ओर कौवे ही कौवे रहते थे।"

"फिर क्या हुआ पिताजी?'' ज्ञान बहुत उत्सुक हो उठा था।

"वन में एक बार एक संगीत-सभा हुई।" सुदामा बोले, "यह निश्चित हुआ कि जो सबसे सुन्दर गायेगा, उसे वन के संगीत-सम्राट की उपाधि दी जायेगी।"

"फिर क्या हुआ ?"

"फिर संगीत-सम्मेलन हुआ।" सुदामा ने कहानी आगे बढ़ायी, "उसमें बहुत सारे कौवे भी आये और अन्य पशु-पक्षियों ने भी भाग लिया। कौवों ने कांव-कांव कर बहुत शोर मचाया। अन्त में कोयल की बारी आयी। जब कोयल कूकी तो वन के समस्त पशु-पक्षियों ने एकमत से स्वीकार किया कि कोयल निःसन्देह संगीत-सम्राज्ञी है। किन्तु सभा में कौवों की संख्या बहुत अधिक थी। इसलिए निर्णायक भी एक कौवा ही था। कौवौं ने मिलकर शोर मचाया-'नहीं! नहीं!! कोयल के स्वर में तनिक भी संगीत नहीं है। निर्णायक महोदय से पूछ लो। कोयल से तो बहुत सारे कौवे अच्छा गाते हैं।' इधर कुछ कौवे कोयल के पास पहुंचे। बोले, 'तुम अच्छा गाती हो, हम मानते हैं। पर तुम कोयल हो, और हम कौवे हैं, इसलिए हम तुम्हारी श्रेष्ठता नहीं मानेंगे। हां! तुम भी काली हो, हम भी काले हैं। यदि तुम भी कौवों में मिलकर कौवा हो जाओ, तो तुम्हें संगीत-सम्राज्ञी मान लेंगे।"

"यह कैसे हो सकता है?" ज्ञान बीच में बोला।

"यही बात कोयल ने कही। उसने कहा, 'कौवा, कौवा ही रहेगा और कोयल, कोयल ही।' झगड़ा बढ़ गया और कौवों ने चोंच मार-मारकर कोयल को घायल कर दिया। अन्ततः कोयल अधमरी हो गयी। उसका दुर्बल स्वर कौवों के शोर में डूब गया और कौवे यह कहते हुए उड़ गये कि वन का संगीत-सम्राट् तो कौवा ही हो सकता है। कोयल बेचारी सोचती ही रह गयी-काश! निर्णायक के स्थान पर कोई बाज होता तो इन कौवों को मज़ा चखाता।"

"हां, पिताजी! बाज होता तो कितना मज़ा आता।" ज्ञान उत्साह से बोला, "इन कौवों को मज़ा चखा देता!"

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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