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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


आठ

सन्ध्या होते-होते सुदामा द्वारका में प्रवेश कर गये थे।

द्वारका बहुत सुन्दर नगर था। बहुत कुछ मथुरा का ही परिष्कृत रूप, किन्तु मथुरा से बहुत खुला और विस्तृत। मथुरा को भी कदाचित आरम्भ में एक खुले नगर के रूप में ही बसाया गया होगा; किन्तु जनसंख्या बढ़ने के कारण वह जन-संकुल हो गयी थी। सुदामा ने गुरु सांदीपनि के साथ ही मथुरा की यात्रा की थी। अधिकांश समय तक तो वे लोग नगर के बाहर, यमुना-तट पर ही रहे थे; पर मथुरा का कुछ थोड़ा भाग उन्होंने देखा था।...समृद्ध तो मथुरा भी थी, पर द्वारका उससे कहीं अधिक समृद्ध दिखाई पड़ रही थी। बाबा ने ठीक ही कहा था : बड़े-बड़े प्रासाद, महल, अटटालिकाएं, खुले चौराहे और बडे-बडे उद्यान। सुदामा ने बड़े नगरों में से अवन्ती और प्रभास को भी देखा था; किन्तु वहां यह सब कुछ नहीं था।

मार्गों पर अनेक प्रकार के वाहन आ-जा रहे थे। प्रसन्न-मुख नागरिक स्वच्छ और मूल्यवान् वस्त्र पहने हुए थे... सहसा सुदामा का ध्यान अपने वस्त्रों की ओर चला गया। उनके वस्त्र-धोती और उत्तरीय-मूल्यवान तो नहीं थे . अब स्वच्छ भी नहीं रह गये थे।

तीन दिनों की अपनी इस यात्रा में उन्होंने स्नान करके भी वस्त्र नहीं बदले थे। वैसे तो वस्त्रों का एक और जोड़ा उनके पास था; किन्तु यात्रा में तो वे चाहे कितनी बार वस्त्र बदलते उन्हें मैला होना ही था। मार्ग में यदि वे एक बार भी वस्त्र बदल लेते तो उनके दोनों जोड़े मैले हो जाते ...तब द्वारका में क्या पहनते वे? क्या जाते ही कृष्ण से वस्त्र मांगते? कहते कि मेरे पास पहनने को कपड़ा भी नहीं है...

उन्होंने अपने वस्त्रों पर एक दृष्टि डाली...पर इन वस्त्रों में कृष्ण को मिलने जाना ...और यह कहना कि वे कृष्ण के मित्र हैं...इससे तो अच्छा है कि वे थोड़ी देर कहीं और टिककर स्नान आदि कर वस्त्र बदल लें...पर क्या कृष्ण नहीं जानते कि वे तीन दिनों की पैदल यात्रा करके आये हैं? मार्ग में धूल-धक्कड़ है, आँधी और कीचड़ है...वे पिछली तीन रातों से धरती पर सोते हुए आये हैं...यात्रा से आया व्यक्ति, यात्रा से आया जैसा ही लगेगा, प्रसाधन-भवन से बाहर निकला तो नहीं लगेगा...

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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