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अनायास रति
अनायास रति
प्रकाशक :
श्रंगार पब्लिशर्स |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 4487
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आईएसबीएन :1234567890 |
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0
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यदि रास्ते में ऐसा कुछ हो जाये जो कि तुम्हें हमेशा के लिए याद रह जाये तो...
जून महीने की गर्मी से त्रस्त आस-पास के सभी यात्री अब तक कुछ तो पस्त होकर और
कुछ चलती ट्रेन में लगती हवा के कारण अब गहरी नींद में पहुँच रहे थे। अभी तक
मैं यह समझने में लगा हुआ था कि वह किस हद तक जाना चाहती है। पहले पहल तो मैं
यही समझा था कि वह मुझसे कुछ बात-चीत करना चाहती है, फिर समझा शायद थोड़ा
शारीरिक संपर्क करना चाहती है, जैसे चुम्मी आदि। लेकिन अब लग रहा था कि मामला
आगे भी जा सकता है। उसका तो मालूम नहीं, लेकिन मेरी स्थिति कुछ ऐसी थी कि, अब
मुझे सर्दी-गर्मी का कुछ भी पता नहीं चल रहा था। शायद इसीलिए, जब मैंने अपने
दायें हाथ को उसके बायें कंधे से होते हुए उसकी पीठ तक पहुँचाया और उसे अपने से
चिपटा लिया, तब मुझे कपड़ों के नीचे से भी शरीर के अंगो का तो अनुभव हो रहा था,
लेकिन गर्मी के कारण कोई उलझन नहीं हो रही थी। साधारण स्थिति में इतनी गर्मी
में कोई किसी के इतने पास नहीं होना चाहेगा। पर यहाँ तो कुछ और ही स्थिति थी!
उसने मेरी इस हरकत का समुचित जवाब दिया और मुझसे कस कर लिपट गई। लड़कियों का
शरीर किस तरह से कोमल और गुदरीला होता है, इसका पता मुझे आज पहली बार लगा था।
मेरे सख्त हाथों और पैरों का अनुभव उसे कैसा लग रहा था, यह सवाल मेरे बुद्धि
में आया, लेकिन यह समय इस तरह के सवालों के लिए नहीं था। वैसे भी हम बोलने का
खतरा नहीं मोल लेना चाहते थे। बिना आवाज के केवल त्वचा के संपर्क से ही सब कुछ
जानना था। आँखें और कानों का काम केवल पहरेदारी करना था, ताकि हम किसी समस्या
में न फँस जायें। ओठ, जीभ और शरीर की त्वचा अपने काम के लिए स्वतंत्र तो थे, पर
उन्हें आँखों और कानों की जिम्मेदारी भी निभानी थी।
कुछ देर तक यूँ ही चिपके रहने के बाद मैंने धीरे से उसे पुनः पीठ के बल सीधा
किया और अपने हथेली और उंगलियों से कुर्ते के ऊपर से ही उसके शरीर का अनुभव
करने लगा। मेरी पूरी हथेली उसके दायें कंथे से से गले के नीचे होती हुई बायें
कंथे तक गई और फिर वापस लौट पड़ी। छाती की जगह जो पहले मुझे मुलायम लग रही थी,
अब कुछ भरी हुई और सख्त लगी। कुर्ते के ऊपर से ही स्त्री शरीर के इस चर्चित और
आकर्षण का केन्द्र वाली जगह का अनुभव करने में बहुत ही अच्छा लग रहा था। मैं
थोड़ी देर बायें वक्ष को अनुभव करता और फिर मेरा ध्यान दायें वक्ष पर चला जाता।
असल में मेरा दिमाग कुर्ते की तह के नीचे हो रहे परिवर्तनों में उलझता जा रहा
था।
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