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श्रंगार-विलास >> अनायास रति

अनायास रति

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 4487
आईएसबीएन :1234567890

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यदि रास्ते में ऐसा कुछ हो जाये जो कि तुम्हें हमेशा के लिए याद रह जाये तो...

जीवन के अनुभव भी बड़े अजीब होते हैं। सबसे पहले जब डिब्बे के पीले प्रकाश में मेरा उस पर ध्यान गया था, तब मेरे ख्याल, पहले-पहल अपनी बेफिक्री की दुनिया से उसकी पहचान में तब्दील हुए, फिर असमंजस, उसके बाद चिंता और बदनामी के डर में और अब वही ख्याल धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए, कुछ ऐसे हो गये थे कि मुझे और कुछ भी न सूझकर इस समय एक विचित्र से हल्केपन का अहसास हो रहा था। बाहर की दुनिया की समस्याएँ अब भी वैसी ही थीं, लेकिन मुझ पर उनका अब कोई असर नहीं हो रहा था। वक्ती तौर पर तो बिलकुल भी नहीं। लेकिन इस सबसे ऊपर शायद अब यह भाव था, कि इस समय मेरी हाथों और ओठों की हरकतों का मजा उसे मस्त कर रहा था। सही अंदाजा तो, मैं शायद कभी-भी नहीं लगा पाऊँगा, लेकिन यह अब तक पक्का हो गया था कि उसको मिलने वाले सुख के कुछ निशान, अब मुझे भी पहचान में आने लगे थे। विचित्र बात तो यह थी कि उसको मस्ती लेते देखकर, मुझे अंदर ही अंदर, एक अलग प्रकार का सुख हो रहा था। आम तौर पर तो इंसान को अपने सुख में ही सुख लगता है। दूसरे के सुख में सुख अनुभव हो, इसका मौका कम ही मिलता है।

नाभि के नीचे उतरते हुए उसकी चड्ढी को थोड़ा और नीचे खिसकाकर मैं जानबूझ कर बालों के झुरमुट को अनदेखा करता हुए, उसकी कमर के बायें हिस्से पर अपनी गर्म साँसों का स्पर्श करते हुए कुछ देर तक रुका रहा। भीषण गर्मी होने के बाद भी, अब मैं जब मैं याद करता हूँ तो पाता हूँ, कि उस समय मुझे किसी प्रकार की गर्मी का अनुभव नहीं हो रहा था। मन उसकी त्वचा के कोनों का रसपान करने में पूरी तरह डूबा हुआ था। उसकी जीन्स भी लगभग घुटनों तक उतरी हुई थी। मैं फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसकी जीन्स उतार कर उसकी जाँघों, घुटनों और पिण्डलियों को भी अपनी गर्म साँसों का शिकार बनाऊँ या नहीं। उसके शरीर के केवल इसी हिस्से का भूगोल अब मेरे लिए अनजान था। अनिश्चितता के भंवर में पड़ा हुआ, मैं उसकी बायीं जाँघ को कभी अपनी गर्म साँसों से ठण्डा करता हुआ और कभी हल्के दाँतों से खेल करते हुए काटता रहा।

मेरा ख्याल था कि जीन्स उतारना हम दोनों को लिए समस्या बन सकता था। खासकर यदि आस-पास का कोई सहयात्री जाग गया और हम लोगों को हड़बड़ी में अपने आपको संभालना पड़ा। यह सोचते हुए मैं चादर के अंदर ही उठा और उसके दोनों घुटनों के ऊपर बैठने के बाद मैंने उसकी जीन्स थोड़ी सी और नीचे खिसकाई। इसके बाद अपनी दोनो हथेलियों को उसकी दोनों जाँघों के बीचों-बीच स्थापित कर दिया। बालों के झुरमुठ के सहारे मैंने प्रवेश द्वार की चिकनी और पतली त्वचा को अनुभव किया। मेरी दोनो हाथों की उंगलियों ने बालों को ऊपर से नीचे रास्ता बनाया। मेरी उंगलियों ऊपर से नीचे एक बार, दो बार, तीन बार और जब तक चौथी बार गुजरीं तब तक मुझे भूगोल का ठीक-ठाक अंदाजा हो गया। मजे लेने के लिए इस बार मैंने अपनी तीनों उंगलियों से बालों को किनारे किया और झुककर अपने ओठ वहाँ की त्वचा पर रख दिए। इस बार मेरी आशा के अनुसार वही हुआ, जो कि मैं चाहता था। उसके मुँह से सीत्कार निकल गई। लेकिन आवाज कुछ जोर की थी, जिससे मैं सकपका गया और तुरंत अपने ओठ हटा लिए। मैं जड़वत् होकर थोड़ी देर के लिए उस पर झुक गया।

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