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अभिलाषा

अखिलेश निगम अखिल

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4631
आईएसबीएन :81-89373-05-6

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आधुनिक कवि ‘अखिलेश निगम अखिल’ की परिपक्व और प्रतिभाशाली कृति

Abhilasha - A Hindi Book by Akhilesh Nigam Akhil

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘मेरे हाथों में श्री अखिलेश निगम ‘अखिल’ की नवीन काव्य-रचना है। पुलिस विभाग में कार्यरत ‘अखिल जी’ संवेदना की पहली संतान काव्य से जुड़े हैं-यही आप में जीवन्त कविता से कम नही है। यूँ उनकी संवेदनशील रचना बहुआयामी है, जहाँ वे ‘स्व’ से मुक्त होते हैं तो लोकोन्मुखी संचेतना से अभिभूत होकर यथासम्भव शब्द-संधान के माध्यम से अपनी बात विभिन्न शैलियों में प्रकट करने का प्रसायस करते हैं और उसमें वे सफल हुए हैं।’’

‘अभिलाषा’ मेरी दृष्टि में

श्री अखिलेश निगम ‘अखिल’ का काव्य संकलन अभिलाषा उनकी प्रथम काव्य कृति है, जिसमें विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत सामयिक, प्रगतिमूलक एवं प्राकृतिक रचनाएँ समाहित हैं, इसमें जहाँ एक ओर मानवीय मूल्यों में हो रहे उत्तरोत्तर क्षरण, समाज में व्याप्त स्वार्थलोलुपता एवं भ्रष्टाचार को रेखांकित करती विविध कविताएँ सम्मिलित हैं, वहीं श्रृंगार रस के भावों का प्रतिनिधित्व करने वाली रचनाओं को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है। इसके अतिरिक्त कवि के संवेदी हृदय की कल्पनाएँ विविध गीतों, ग़ज़लों, मुक्तकों, कविताओं एवं छन्दों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं, जिससे रचनाकार की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय मिलता है।

इस काव्य संग्रह में श्री निगम ने जीवन की विविध स्थितियों का गीत, ग़ज़ल, कविता, छन्द, मुक्तकों आदि के रूप में अत्यन्त सजीव एवं मनोहारी चित्रण कर परिपक्व काव्य सृजनशीलता का परिचय देकर स्वयं को एक प्रतिभाजन्य कवि के रूप में स्थापित किया है। ओजमयी भाषा ने इसमें चार चाँद लगा दिए हैं। काव्य संग्रह कवि के संवेदी हृदय को
प्रतिबिम्बित करता है जिससे पूरे संग्रह में मौलिकता एवं सरसता बनी हुई है। कवि के संवेदनशील हृदय ने कविता संग्रह के माध्यम से सामाजिक परिवेश में व्याप्त अनेकों कुरीतियों की ओर मर्मस्पर्शी ढंग से पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है।
प्रस्तुत संकलन मीत हमारे : गीत तुम्हारे, इन्द्रधनुष, ग़ज़लें न नज़्म शीर्षकों में विभक्त है।

संकलन के प्रथम खण्ड ‘मीत हमारे : गीत तुम्हारे’ में विभिन्न प्रकार के भावों एवं रसों का परिपाक करने वाले विभिन्न गीत सम्मिलित हैं। इन गीतों में जहाँ सरलता, सहजता, गेयता एवं भाव-सम्प्रेषणीयता है, वहीं दूसरी ओर शब्द लालित्य एवं शिल्प सौन्दर्य के भी दर्शन होते हैं।

‘परिवर्तन की पुकार’ नाम गीत में कवि ने एक मानसिक क्रान्ति का आह्वान करते हुए लिखा है :-
राम कथा से काम न होगा
राम तुम्हें अब बनना होगा।
चलो राम के पद चिह्नों पर,
अब इतिहास बदलना होगा।

बहुत सुनी है धर्म कहानी।
पूजा, नमाज व अमृत बानी।
तम छा गया है अन्तर तम में,
खून से मँहगा है अब पानी।
इसी खण्ड के अन्तर्गत प्रकाशित कविता में प्रियतमा के लिए व्यक्त भावों का चित्रण देखिए:

मेरी प्यारी बहन आपको भेजी राखी आई।
जिस राखी के स्नेह-सूत्र से शोभित हुई कलाई।
स्वर्ण-रजत की मिश्रित आभा-सी दीपित तव राखी।
इस राखी की पावनता का धरती अम्बर साखी।।

राखी के द्वारा तुमने हमको जो मान दिया है।
सच मानो इस भाई पर गुरुत्तर एहसान किया है।
बहन आपके स्नेह और ममता के रस में पागे।
रंग बिरंगी राखी के मन-भावन पावन धागे।।
काव्य संकलन के द्वितीय खण्ड इन्द्रधनुष में राष्ट्र प्रेम, प्राकृतिक आपदाओं एवं राष्ट्र की प्रगति एवं विकास के फलस्वरूप हो रहे निरन्तर परिवर्तनों एवं विदेशी अपसंस्कृति के कारण समाज में व्याप्त विकृतियों एवं विद्रूपताओं को उद्घाटित करने वाली रचनाएँ शामिल की गई हैं। रचनाकार ने अपने कवित्त धर्म के अनुरूप स्वयं को देश सेवा में रत रखते हुए सर्वशक्तिमान प्रभु से याचना करते हुए लिखा है:-
जैसा वर मैं माँगता, दो वैसा ही ईश।
निज स्वदेश उन्नति करे, झुके न इसका शीश।
झुके ने इसका शीश, विश्व सिरमौर कहाए।
हो न मार्ग अवरुद्ध, सदा उन्नति पथ पाए।

इसी खण्ड में भूकम्प महात्रासदी को कवि के संवेदनशील हृदय ने अत्यन्त कारुणिक अभिव्यक्ति दी है:-

संस्कार सामूहिक होते, धू-धू जलती रोज चिताएँ।
कफनमयी यह नगरी है, कितने कफन कहाँ से लाएँ ?
मरघट जैसी शान्ति चतुर्दिक, मृत्यु स्वयं शरमाती।
अट्टहास कर काल-भैरवी, गीत प्रलय के गाती।।

इन्द्रधनुष खण्ड में कवि ने विभिन्न दोहों के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं को इंगित किया है, नशाखोरी जैसी विकराल समस्या के प्रति कवि ने अपनी आवाज उठाई है,

अखिल नशा मत कीजिए, नशा नाश का मूल।
तन, वैभव परिवार सब होता नष्ट समूल।।

काव्य संग्रह का तृतीय खण्ड ग़ज़लें व नज़्म है जिसमें समाज में व्याप्त विषमताओं, कुरीतियों, भेद-भाव एवं साम्प्रदायिकता के विरुद्ध विषवमन करते हुए भाईचारे एवं सर्वधर्म समभाव की महत्ता को रेखांकित किया गया है। साम्प्रदायिक सौहार्द्र और समाज में मधुर सामन्जस्य की आवश्यकता का आह्वान प्रभावी ढंग से करते हुए लिखा गया हैः

सजाएँ ईद खुशियों की, मनाएँ प्यार से होली।
अजाँ हिन्दू पढ़ें, मुस्लिम लगाए माथ पर रोली।

कवि ने जिन्दगी का लक्ष्य शीर्षक के ग़ज़ल में आपसी प्यार एवं भाईचारे की भावना को बल दिया है।
ज़िन्दगी के लक्ष्य को निज ध्यान में रखकर अखिल प्राणियों में प्यार की खुशबू लुटानी चाहिए।।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री अखिलेश निगम की सशक्त लेखनी साहित्य सृजन के क्षेत्र में अनवरत प्रवाहमान बनी रहेगी, जिससे आने वाले समय में उनकी साहित्यिक प्रतिभा और अधिक निखार एवं परिपक्वता के साथ अनेकों उत्कृष्ट कृतियों के सृजन का बायस बनेगी।
महेश चन्द्र द्विवेदी
पूर्व पुलिस महानिदेशक, उ.प्र.
80, रवीन्द्र पल्ली,
लखनऊ

हार्दिक बधाई

प्रशासनिक सेवा एवं पुलिस सेवा के अनेक अधिकारियों ने साहित्य सेवा के माध्यम से हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सुयोग्य, सहृदय, कर्मठ, कर्तव्य-परायण, साहित्य साधक अधिकारियों में श्री अखिलेश निगम ‘अखिल’ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने पुलिस उपाधीक्षक के दायित्व का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए एक सफल साहित्यकार के रूप में भी ख्याति एवं प्रतिष्ठा अर्जित की है।

कविवर ‘अखिल’ ने ‘अभिलाषा’ नाम से अपनी छन्दबद्ध कविताओं का संग्रह किया है। इस संग्रह में इन्द्रधनुषी छटा के दिग्दर्शन होते हैं क्योंकि अनेक विषयों पर रचित कविताओं का वैविध्य रेखांकित करने योग्य है। व्यापक विषय वस्तु की दृष्टि से कृति सराहनीय है। वाणी वन्दना, भारत गरिमा, स्वदेश महिमा, पर्यावरण संरक्षण की उपयोगिता, राष्ट्रीय एकता, पर्व-महात्म्य, ऋतु-वर्णन, प्रकृति चित्रण, सम-सामयिक-सन्दर्भों की व्याख्या, परिवर्तन का प्रभाव, मानव धर्म आदि विभिन्न विषयों का समावेश इस काव्य संग्रह में किया गया है।

कवि ने अपनी छन्दबद्ध रचनाओं को ‘मीत हमारे : गीत तुम्हारे’ ‘इन्द्रधनुष’ तथा ‘ग़ज़लें व नज़्म’ नामक तीन खण्डों में संग्रहीत किया है।

प्रथम खण्ड ‘मीत हमारे : गीत तुम्हारे’ में जहाँ विभिन्न विषयवस्तु को सँजोए हुए प्रभावी गीत हैं, वहीं ‘इन्द्रधनुष’ खण्ड में विभिन्न प्रकार के छन्द, मुक्तक एवं कविताओं के दिग्दर्शन होते हैं। ‘ग़ज़लें व नज़्म’ खण्ड में कविवर ‘अखिल’ ने वर्तमान परिस्थितियों के परिदृश्य को रेखांकित करनेवाली नज़्म एवं ग़ज़लों को स्थान दिया है।

प्रारम्भ में वाणी वन्दना करते हुए कवि कामना करता हैः

‘‘वीणापाणि बजाओ वीणा।
मधुर स्वरों की स्वर्णिम धारा।
काव्य सुधा का सहज सहारा।

सदा कृपा हो भक्तजनों पर,
कला-कलश हो रसमय सारा।
दूर करो मन बुद्धि तमस माँ,
काव्य रचूँ अमृत रस भीना।’’

कवि ने ‘मीत हमारे : गीत तुम्हारे’ खण्ड में अत्यन्त प्रभावशाली, प्रवाहपूर्ण, सरस, मधुर एवं गेय गीतों को प्रस्तुत किया गया है जो कि विषयवस्तु के दृष्टिकोण से भी वैविध्यपूर्ण हैं। कवि ने अपने प्रथम गीत में ही छन्दबद्ध काव्य का इस प्रकार परचम लहराया हैः

‘‘रोम-रोम पर सरगम बाजे।
बुद्धि हृदय पर अनहद साजे।
धूप-छाँव की आँख मिचौली।
अद्भुत आज दिवाली होली।’’

वर्तमान समाज के विकास में साम्प्रदायिकता एवं धार्मिक कट्टरता बहुत बड़ा अवरोध है, कवि ने उसे हटाने हेतु आह्वान किया है।

‘‘वेद, कुरान, बाइबिल प्यारी।
रंग-बिरंगी धरती न्यारी।
शब्द-जाल में उलझा-मानव,
रक्त सनी बोई है क्यारी।
अब अजान से कम न होगा।
राहे-मुहम्मद चलना होगा।’’

प्रदूषण की विकरालता आज की एक प्रमुख समस्या है। अतः जनहित में जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण एवं मृदा-प्रदूषण पर विजय प्राप्त करने की परम आवश्यकता है। कवि पर्यावरण संरक्षण हेतु जागृति उत्पन्न करने के लिए भी अपनी लेखनी चलाता है। नव जीवन ज्योति जगाने के लिए उसने अपने विचार इस प्रकार प्रकट किए हैं:

‘‘वायु प्रदूषित, जल भी दूषित, धरा स्वयं घबड़ाती।
धूल, धुआँ, कोलाहल से मानवता, पिसती जाती।
वन-विनाश से है अकाल की आती काली छाया।
वृक्ष हमारे मित्र सदा से, ऋषि मुनियों ने गाया।
रोक पलायन गाँवों का, हम उनको स्वर्ग बनाएँ।
अधिकाधिक वृक्षारोपण कर पर्यावरण बचाएँ।’’

समय-समय पर कवि के हृदय में जो भी श्रृंगारिक भाव उठे हैं अथवा अपने आस-पास के वातावरण में उसने जो नयनाभिराम दृश्य देखे हैं उसको भी प्रभावशाली ढंग से गीतों में अभिव्यक्त किया है।

‘‘मधुर मिलन की मधुमय आशा।
मूक नयन की चंचल भाषा।
मिलन-विरह को अपना स्वर दो,
आज रचो मिल नव परिभाषा।
उर से उर की ज्योति जगाओ।
आज प्रिये तुम गीत सुनाओ।’’

जीवन और समाज में पर्वों और त्योहारों का अपना विशेष महत्व है। मानव ऐसे अवसरों पर उत्सवमग्न हो जाता है। कवि ने होली और रक्षाबन्धन जैसे त्यौहारों के सम्बन्ध में काव्य-रचना की है। होली को प्रेम एवं मिलन के त्यौहार के रूप में वर्णित किया गया हैः

‘‘होली-मिलन पर्व अति उत्तम,
छाई भू पर प्रीति बहार।
लोगों को सन्देश सुनाती,
नफरत हारी, जीता प्यार।
‘अखिल’ कहें कविता शुचि सार।
झमाझम होली में.................।’’

रक्षाबन्धन के त्यौहार को कवि ने भाई-बहन के प्यार के रूप में प्रस्तुत किया है और इसके लिए उसने ‘पत्र गीत शैली’ को अपनाया है जो उसकी मौलिक सूझ-बूझ का परिचायक है। कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं।

‘‘प्यारी बहना,
भगिनी तेरा नित अभिनन्दन,
पावन पर्व है रक्षाबन्धन।
भाई लिखे क्या पत्र में,
बहन को निज प्यार।
जब-जब बैठूँ तब लगे,
शब्द कोश बेकार।
अमर प्रेम की गाथा में,
वाणी होती मूक।
स्तब्ध होते शब्द, सिर्फ,
शेष हृदय की कूक।।’’

स्त्री और पुरुष समाज के प्रमुख अंग हैं। कवि श्री अखिलेश निगम ‘अखिल’ ने नारी को एक पहेली बताते हुए उसे वर्तमान युग के संदर्भ में उद्बबोधित करने का प्रयास किया हैः

‘‘मत भटको अब भौतिकता में,
मत छिटको निज भावुकता में,
देह प्रदर्शन से शरमाओ।
भारत माँ की लाज बचाओ।
भारत दर्शन जग में गूँजे,
सकल-विश्व नारी को पूजे।
महके तू बन पुष्प चमेली।
नारी तू है एक पहेली।।’’

कवि ने सरस, मधुर एवं प्रवाहपूर्ण गीतों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के छन्दों की भी रचना की है जिसे ‘इन्द्रधनुष’ शीर्षक में समाहित किया है। घनाक्षरी छन्दों में भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों का प्रभावशाली वर्णन दृष्टव्य हैः

‘‘मल्लिकार्जुन विराजते शैल पर्वत पर,
रामेश्वर मुख मंडित सूरज की लाली है।
गोदावरी तट पर शोभित त्रयम्बकेश्वर,
केदारनाथ सेवा में हिमाद्रि बना माली है।
महाकालेश्वर को पुष्प नित चढ़ाता काल,
भीमशंकर पग धोती भीमा मतवाली है।
अनाथों के नाथ विश्वनाथ काशी में विराजें।
शिव के ज्योर्तिलिंगों की तो महिमा निराली है।’’

कवि ने राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्मान के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के सम्मान एवं भाषाई एकता पर बल देते हुए लिखा है जो कि आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त प्रासंगिक हैं:

‘‘शुभ ज्योति जगे सदा लिपि देवनागरी की,
हिन्दी का सुपन्थ शूलहीन हो, अभय हो।
सिन्धी, गुजराती, बंगला, तेलगू व तमिल,
कन्नड़, मराठी परिवार सुखमय हो।
मातृभाषा उन्नति की भावना हो अन्तर में,
सदा पक्की लगन और दृढ़ निश्चय हो।
फूले-फले भारतीय भाषा परिवार सदा,
राष्ट्रभाषा हिन्दी की ‘अखिल’ जय-जय हो।।’’

कवि ने प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावी घनाक्षरी के साथ-साथ दोहा एवं कुण्डलिया आदि छन्दों की भी सार्थक प्रस्तुति की है। उदाहरणार्थः

‘‘चंचल चितवन चंचला, चतुर चन्द्र चितचोर।
मेरे मन मन्दिर बसो, राधा नन्द किशोर।
खेमों में हैं बँट गए, राम और रहमान।
हिन्दू-मुस्लिम हम हुए, बन न सके इन्सान।।’’

समय परिवर्तनशील है। समय की परिवर्तनशीलता का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र पर पड़ता है। परिवर्तन-चक्र के सम्बन्ध में कवि अपनी भावना इस प्रकार व्यक्त करता हैः

‘‘यदि सूरज देखा है चढ़ते, ढलते भी तो देखा है।
नित उत्थान पतन परिवर्तन की शाश्वत, बनती रेखा है।।’’

संवेदनशील कवि ने अपनी अनेक रचनाओं में करुणा, दया, मानवीयता एवं सहृदयता का परिचय दिया है। अनेक समीक्षक कविता का जन्म करुणा से मानते हैं। अतः कविवर ‘अखिल’ ने भूकम्प त्रासदी पर एक करुण काव्य-धारा प्रवाहित की हैः

‘‘गाँव, शहर श्मशान हुए सब, आया प्रलय बहुत भारी।
क्रन्दन करुण चतुर्दिक फैला, सिहर उठी दुनिया सारी।।
कुटिल क्रूरता काल-केतु की, जन-जन को तड़पाती।
अट्टहास कर काल-भैरवी गीत प्रलय के है गाती।।’’

श्री अखिलेश निगम ‘अखिल’ स्वयं पुलिस उपाधीक्षक हैं। अतः सच्चे पुलिस जवान की व्याख्या उनके द्वारा सर्वथा स्वभाविक है। प्रस्तुत पंक्तियाँ अवलोकनीय हैं:

‘‘कर्मठ, कर्मवीर बन त्यागी।
रोम-रोम सक्रियता जागी।।
पुलिस से पहले जो इन्सान।
वही है सच्चा पुलिस जवान।।’’

भारत-माता के प्रति कवि के मन में अगाध श्रद्धा है। भारत के पुनरुत्थान के लिए वह चिन्तित है। अतः नव सृजन के लिए रचनाकार सभी नौजवानों और भारतवासियों का आह्वान सशक्त शब्दों में करता हैः

‘‘उठो क्रान्ति की पुनः जरूरत।
बाकी बची न कोई सूरत।।
उठो क्रान्ति का बिगुल बजाओ।
सिंहनाद कर तुमुल सजाओ।।’’


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