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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


ऐसे समय उन्हें कांग्रेस के सभापति जवाहरलाल नेहरूकी एक चिट्ठी मिली, जिसमें उन्होंने लिखा था कि भारत में हर जगह व्यक्तिकी आजादी खतरे में है। इस जन्म सिद्ध अधिकार को पाने के लिए संघ का गठनहुआ है। उन लोगों ने रवीन्द्रनाथ को इसका सभापति बनाया है।

कुछ समय से मुस्लिम समाज के एक वर्ग को बांग्ला साहित्य में मूर्ति पूजा काखतरा महसूस होने लगा था। मुसलमानों में इस बात से नाराजगी थी। ''मोहम्मदी'' नामक मासिक पत्रिका ने रवीन्द्रनाथ के ''गांधारीर आवेदन'' और''पुजारिनी'' के विषय पर विरोध जताया। उनके अनुसार यह सब इस्लाम विरोधी था। रवीन्द्रनाथ को मजबूरन इसके विरोध में आगे आना पड़ा। उन्होंने ऐसे हीएक लेख में एक आलोचक की बात का जिक्र करते हुए लिखा कि उन्होंने पाप की प्रवृति के बारे में सावधान करते हुए मुझे काफी नसीहतें दी हैं। मैंउन्हें यह समझाना चाहता हूं कि नाटक-कविता आदि में पात्रों के जरिए जो सव बातें कही जाती हैं, उसमें लेखक की कल्पना ही प्रमुख होती है अक्सर वह उसकवि या लेखक के विचार नहीं होते।''

सन् 1937 में इंग्लैंड से अमियचन्द्र चक्रवर्ती ने एक चिट्ठी में रवीन्द्रनाथ से अफ्रीका पर एककविता भेजने का अनुरोध किया। लंदन में इथोपिया के राजा हाइले सेलासी की यह इच्छा थी। रवीन्द्रनाथ ने ''अफ्रीका'' नाम से एक कविता लिखकर भेज दी।अंग्रेजी में उसका अनुवाद पढ़कर हाइले सेलासी बहुत खुश हुए। उगांडा के राजकुमार नियाबंगो ने उस कविता को बंटू तथा सोहली भाषाओं में अनुवादकरवाया।

19 फरवरी 19२7 को कलकत्ता विश्वविद्यालय का उपाधि वितरणजलसा था। उपाचार्य श्यामाप्रसाद मुखोपाध्याय के कहने पर रवीन्द्रनाथ मुख्य अतिथि बनकर कलकत्ता गए। रवीन्द्रनाथ ने अपना भाषण बांग्ला में पढ़ा।विश्वविद्यालय के इतिहास में यह एक बड़ी बात थी। वहां से वे बंगीय साहित्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए चंदन नगर गए।

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