मनोरंजक कथाएँ >> चमत्कारी बौने और बूढ़ा मोची चमत्कारी बौने और बूढ़ा मोचीए.एच.डब्यू. सावन
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प्रस्तुत पुस्तक बच्चों की बाल कथाओं पर आधारित है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
चमत्कारी बौने और बूढ़ा मोची
बात काफी पुरानी है। किसी राज्य के एक छोटे से शहर में एक मोची अपनी पत्नी
के साथ रहता था। जैसे-जैसे मोची की आयु बढ़ रही थी वैसे-वैसे उसकी
कार्यक्षमता भी घटती जा रही थी। फिर एक समय ऐसा आया जब उनके पास न तो पैसा
था और न जूते बनाने के लिए जरूरी सामान।
एक दिन मोची की पत्नी अपने पति को जूते गांठते हुए कुछ क्षण देखती रही और फिर बोली, ‘‘क्या तुम जल्दी-जल्दी अपने हाथ नहीं चला सकते ?’’ उसके स्वर में चिंता थी।
मोची फीकी हंसी हंसकर बोला, ‘‘जल्दी हाथ चला तो सकता हूं। जल्दी में आड़ा-तिरछा चमड़ा काट सकता हूं, बड़े-बड़े टांके लगा कर काम निपटा सकता हूं। पर क्या करूं ? मेरा मन अपने ग्राहकों के लिए बढ़िया जूते बनाए बगैर मानता नहीं और उसमें समय लगता है।’’
‘‘मैं जानती हूं, तुम इतनी सफाई और बारीकी से काम करते हो कि एक जोड़ी बनाने में दो दिन लग जाते हैं। और अब हमारे पास चमड़ा खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं।’’
‘‘मजबूरी है, क्या करें, ’’मोची ने दुखी मन से कहा, ‘‘अब बूढ़ा भी तो हो गया हूं। नजर कमजोर हो गई है, हाथ भी कांपने लगे हैं।’’
एक दिन मोची की पत्नी अपने पति को जूते गांठते हुए कुछ क्षण देखती रही और फिर बोली, ‘‘क्या तुम जल्दी-जल्दी अपने हाथ नहीं चला सकते ?’’ उसके स्वर में चिंता थी।
मोची फीकी हंसी हंसकर बोला, ‘‘जल्दी हाथ चला तो सकता हूं। जल्दी में आड़ा-तिरछा चमड़ा काट सकता हूं, बड़े-बड़े टांके लगा कर काम निपटा सकता हूं। पर क्या करूं ? मेरा मन अपने ग्राहकों के लिए बढ़िया जूते बनाए बगैर मानता नहीं और उसमें समय लगता है।’’
‘‘मैं जानती हूं, तुम इतनी सफाई और बारीकी से काम करते हो कि एक जोड़ी बनाने में दो दिन लग जाते हैं। और अब हमारे पास चमड़ा खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं।’’
‘‘मजबूरी है, क्या करें, ’’मोची ने दुखी मन से कहा, ‘‘अब बूढ़ा भी तो हो गया हूं। नजर कमजोर हो गई है, हाथ भी कांपने लगे हैं।’’
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