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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


इसके बाद उसने कुछ देर और बादशाह से इधर-उधर की बातें कीं, फिर वह घर वापस लौट आया। उसने चिराग के जिन्न को बुलाया और कहने लगा-“कल मेरी शादी है, इसलिये तुम कल के लिये एक शानदार बारात का इन्तजाम करो। बारात ऐसी होनी चाहिये जिसे देखकर लोग दांतों तले उंगलियां दबा लें।”
"जैसा आपका हुक्म मेरे आका।” इतना कहकर वह जिन्न वहाँ से गायब हो गया।
अगले दिन सुबह-सुबह वह फिर से अलादीन के पास लौट आया। उसके साथ बहुत-से आदमी थे। वह अपने साथ शहनाई बजाने वाले, बैंड बाजा बजाने वाले, शानदार घोड़े, हाथी, जो कि हजारों की तादात में थे-और सभी उम्दा किस्म के कपड़े और जेवरात पहने हुए थे, लेकर आया।
उनकी शानो-शौकत देखकर ऐसा मालूम होता था जैसे वे इस जमीन के बाशिन्दे न होकर सीधे आसमान से उतरकर आ रहे हों। सबसे आगे जो हाथी चल रहा था वह अपनी सूंड में से हीरे उगल रहा था। हीरे उगलने का दृश्य देखने लायक था। बारातियों के साथ पालकी वाले भी थे, जो बहुत शानदार पोशाक में थे तथा अपने साथ सोने की हीरे जड़ी हुई पालेकी लिये हुए थे। ऐसी बारात इस जमीन पर किसी की भी नहीं हो सकती थी।
अलादीन हीरे उगलने वाले हाथी पर बैठा। उस पर हीरे जड़ा हुआ सोने का दम लगा हुआ था। अलादीन को जिन्नं ने दूल्हा बनाया, तो ऐसा दूल्हा भी जमीन पर आज तक किसी ने न देखा होगा। उसका चेहरा सूरज की तरह दमक रहा था। उसने हीरे जड़ी पोशाक पहन रखी थी, उसका सेहरा भी फूलों का न होकर मोतियों तथा माणिकों का था। वह बारात जब सड़कों पर निकली तो उसे देखकर लोग जहाँ-हो-तहाँ खड़े-के-खड़े रह गये। लोगों को लगा कि वे ख्वाब देख रहे हैं। उन्होंने ऐसी बारात अपने सपने में भी नहीं देखी थी।
बारात जब महल के दरवाजे पर पहुंची तो उसके आगे महल की शानो-शौकत भी कमजोर पंड़ गयी। हालांकि बादशाह ने काफी अच्छा इन्तजाम करवाया था, पूरे महल को दुल्हन की तरह सजाया गया था। बादशाह ने दिल खोलकर बारात की आवभगत की। वह खुद दौड़-दौड़कर बारातियों का इस्तकबाल कर रहा था। सभी बारातियों को खूब बढ़िया खाना तथा उम्दा किस्म का बादाम का शरबत पेश किया गया।
जब सभी बारातीं खा-पी चुके तो शहर काजी ने शहजादी और अलादीन का निकाह पढ़वा दिया।
अब उसकी रुखसती होनी बाकी थी।

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