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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


घर पहुँचकर उसने अपनी अम्मी को अपने चचा जान की सारी बातें बताईं। उसने यह भी बताया कि शाम को चचा जान हमारे घर आयेंगे और खाना भी खायेंगे।
अलादीन की सारी बात सुनकर उसकी अम्मी बहुत खुश हुईं और वे खुशी-खुशी. बढ़िया-बढ़िया पकवान बनाने में जुट गईं। अब उनके पास पैसों की कमी तो थी नहीं, इसलिये उसने खूब बढ़िया-बढ़िया पकवान बनाये। अलादीन भी इस काम में अपनी अम्मी का हाथ बंटाता रहा। जो अलादीन कभी किसी काम को नहीं सुनता था, हर समय काम से जी चुराता था-आज वही अलादीन दौड़-दौड़कर घर-बाहर सब जगह के काम संभाले हुए था।
धीरे-धीरे दिन ढलने लगा और शाम की शीतलता से वातावरण ठण्डा हो चला। माँ-बेटे को अपने आने वाले मेहमान का जरा भी इन्तजार नहीं करना पड़ा। जो समय उस सौदागर ने दिया था, वह ठीक उसी समय उनके घर पहुँच गया। आते ही उसने अपनी भाभी अर्थात् अलादीन की माँ को सलाम किया और उन्हें कई तोहफे दिये। इसके बाद वह अलादीन से उसके मरहूम पिता के बारे में बातें करने लगा। उसकी आँखों में आँसू छलक आये थे।
अब्बू का जिक्र होते ही अलादीन भी रोने लगा। अलादीन को रोता देख उसकी माँ भी खुद को न संभाल सकी और वह भी रोने लगी। सौदागर भी अपने आँसू नहीं रोक सका। थोड़ी देर के लिये वहाँ का माहौल गमगीन हो गया था।
सौदागर ने अल्लाह से भाई की रूह को सकून देने की दुआ की, फिर इधर-उधर की बातें होने लगीं। इसके बाद खाने का समय हो गया। ..
तीनों लोग खाना खाने बैठ गये। अलादीन की अम्मी ने बड़ा ही अच्छा खाना बनाया था। सौदागर ने खाने की खूब तारीफ की तथा खूब पेट भरकर खाना खाया।
रात होने पर तीनों अपने-अपने बिस्तर पर बैठे, तो सौदागर ने अलादीन से कहा-“अलादीन बेटे! मैं देख रहा हूँ कि तुम कोई काम-धंधा नहीं करते, पूरे दिन दोस्तों के साथ कंचेबाजी या गिल्ली- डण्डा खेलते रहते हो और मैंने यह भी सुना है कि पढ़ाई-लिखाई की तरफ भी तुम्हारा कोई ध्यान नहीं है। मुझे तो ये सब बातें जानकर बड़ा ही दुःख पहुँचा हैं। अब तुम बड़े हों, तुम्हारी उम्र के लड़के कितना-कितना काम करते हैं, और अबे तो इस घर के लिये. तुम ही एकमात्र सहारा हो। क्या तुम्हें अपनी इन हरकतों पर जरा भी शर्म नहीं आती? क्या तुमने कभी सोचा है कि इतनी छोटी उम्र में तुम्हारे अब्बू की। मौत क्यों हो गयी? जानते हो क्यों...क्योंकि हर समय उन्हें तुम्हारी फिकं लगी रहती थी। अब यही फिक्र तुम्हारी अम्मी को है कि तुम्हारा क्या होगा? तुम.. अब बड़े हो गये हो और समझदार भी हो गये हो बेटा!”
"आप ठीक कह रहे हैं भईया! इसके अब्बू अभी कहाँ मरने वाले थे। वे रात-दिन इसके बारे में सोचते रहते थे। अब आप ही इसे समझाइये और यह बताइये कि पढ़ाई और हुनर के बिना इसकी जिन्दगी कैसे गुजरेगी?”

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