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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


सौदागर ने यह सब बातें इस ढंग से कही थीं कि उसके दिमाग पर इन बातों का सीधा असर पड़ा।
“भईया!” तभी अलादीन की माँ पुनः बोली-“आप इसे पढ़ने-लिखने को कहें, मैं इसे पढ़ाऊँगी, इसके लिये चाहे मुझे कितनी ही मेहनत क्यों न करनी पड़े या फिर यह कोई काम-धन्धा करे। आप इसे किसी धंधे में लगा दें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। आखिर पूरी जिन्दगी गुजारनी है इसको।”
“आप चिन्ती न करें भाभी जान! मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था।” सौदागर बोला--"लेकिन इसे कोई काम-धन्धा करवाने से पहले मैं सोचता हूँ कि ये थोड़ा पढ़-लिख जाये। पढ़ाई-लिखाई के बिना आदमी ठीक तरह से काम भी नहीं कर पाता। जब इसकी पढ़ाई पूरी हो जायेगी, तो मैं इसे गाँव में ही एक दुकान खुलवा दूंगा। दूसरे देशों में मेरा रेशमी कपड़ों का व्यापार है, मैं । इसे नये-नये रेशमी कपड़े भेजूंगा और यह उन्हें यहाँ बेच दिया करेगा। किसी भी काम को करने के लिये इन्सान का पढ़ा-लिखा होना जरूरी है।”
“ठीक है भईया! जैसा तुम ठीक समझो करो। बस मैं तो यह चाहती हूँ। कि मेरे अलादीन की ज़िन्दगी संवर जाये।” अलादीन की माँ खुश होकर बोली।
ये सब बातें करके तीनों अपने-अपने बिस्तर पर सो गये। दूसरे दिन ही सौदागर ने अलादीन को मदरसे में दाखिल करा दिया। उसने अलादीन और उसकी अम्मी को ढेरसारे नये कपड़े दिलवाये । घर में इतना राशन डलवा दिया जो कि कई महीनों के लिए काफी था। उसने उसके पुराने घर की मरम्मत तथा रंग-रोगन आदि भी करवा दिया। अलादीन के अमीर चाची को जो भी फर्ज निभानी चाहिये था, उससे भी बढ़कर उसने कर दिया।
अब वह उनके परिवार का तीसरा सदस्य बन चुका था। आस-पड़ोस तथा मोहल्ले वालों से भी वह अलादीन के चचा के रूप में ही मिला। उसके काम तथा व्यवहार को देखकर किसी को भी नहीं लगता था कि वह कहीं बाहर से आया अजनबी शख्स है।
अब तो अलादीन बाकायदा मदस्से में जाने लगा था तथा उसको पढ़ाई में भी दिल लगने लगा था।
एक दिन!
सुबह का समय था। अलादीन के मदरसे की आज छुट्टी थी। सौदागर उससे बोला-“बेटा अलादीन! आओ आज कहीं घूमने चलते हैं।”
“हाँ चंचा, चलिये चलते हैं। अब तो मैं भी घर से मदरसे और मदरसे से घर के अलावा कहीं नहीं जाता। इसलिये मेरा मन भी ऊब गया है।"
अलादीन की अम्मी ने उसकी बात सुनी तो उसने खुशी-खुशी उन्हें घूमने जाने की इजाजत दे दी।
“मैं चलने का इन्तजाम करके आता हूँ।” इतना कहकर सौदागर कहीं चला गया।
अलादीन जोश में भरकर सफर की तैयारी में लग गया। थोड़ी देर बाद सौदागर वापस लौटकर घर आया, तो उसके साथ बहुत अच्छी नस्ल के दो अरबी घोड़े थे। एक घोड़े पर वह खुद सवार था। घर के बाहर आकर उसने घोड़े पर बैठे-बैठे अलादीन को आवाज लगायी-अलादीन! अलादीन! बाहर आओ। देखो मैं क्या लाया हूँ?”

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