नाटक-एकाँकी >> मैकबेथ मैकबेथशेक्सपियर
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Macbeth का हिन्दी रूपान्तर
Macbeth - A Hindi Book by Shakespeare
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेज़ी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हु्आ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। इसके अतिरिक्त शेक्सपियर के बचपन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ। 1587 ई. में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। वहाँ उन्होंने अनेक नाटक लिखे जिनसे उन्होंने धन और यश दोनों कमाए। 1616 ई. में उनका स्वर्गवास हुआ।
प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज में पाठकों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज में पाठकों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
भूमिका
‘मैकबेथ’ शेक्सपियर के दुखान्त नाटकों में अत्यन्त लोकप्रिय है। इनके रचनाकाल के संबंध में यद्यपि मतभेद है, तथापि नाटक के पात्रों और उसकी रचना शैली से पता चलता है कि शेक्सपियर ने इसकी रचना ‘सम्राट लियर’ के पश्चात् की थी। इस प्रकार इसका रचनाकाल सन् 1605-6 में ठहरता है। वस्तुतः यह युग शेक्सपियर जैसे महान मेधावी नाटककार के लिए अपनी दुःखान्त कृतियों के अनुकूल भी था।
शेक्सपियर ने जिस प्रकार अपने अन्य नाटकों के कथानकों के लिए दूसरी पूर्ववर्ती कृतियों से प्रेरणा ली है उसी प्रकार मूल रूप में ‘मैकबेथ’ का कथानक भी उसका अपना नहीं है। यह एक दुःखान्त नाटक है एवं इसके कथानक का आधार विश्वविश्रुत अंग्रेजी लेखक राफेल होलिन्शेड की स्कॉटलैण्ड-संबंधी एक ऐतिहासिक कृति है।
‘मैकबेथ’ में जिन घटनाओं का वर्णन है उन्हें पूर्णतया ऐतिहासिक अथवा काल्पनिक मान लेना भी युक्तियुक्त न होगा। ‘कॉनसाइज डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी’ में ‘मैकबेथ’ के अन्तगर्त लिखा है- ‘‘ ‘मैकबेथ’ (मृ.1057) स्कॉटलैण्ड का बादशाह; स्कॉटलैण्ड के राजा डंकन की फौंजों का कमाण्डर तथा 1040 में उसका कत्ल कर राज्य पर अपना अधिकार करनेवाला, जिसे नॉर्थम्ब्रिया के अर्ल सिवार्ड ने 1054 में हराया तथा 1057 में मैलकॉम तृतीय ने मार डाला।’’
मैकबेथ के संबंध में इतिहास में और अधिक स्पष्ट उल्लेख न मिलने के कारण शेक्सपियर ने होलिन्शेड द्वारा कथित मैकबेथ के कथा-तत्त्व को अपने मनोनुकूल ढालने में पूरी स्वतंत्रता से काम लिया। उसका उद्देश्य जितना एक दु:खान्त नाटक लिखने का था उतना ऐतिहासिक नाटक लिखने का नहीं। अपनी अप्रतिम प्रतिभा से पात्रों का चयन कर, उन्हें नईं साज-सज्जा में प्रस्तुत कर, एवं घटनाओं का प्रभावोत्पादक वर्गीकरण करने के पश्चात्, शेक्सपियर मुख्य ऐतिहासिक घटना से कहीं अधिक अपनी इस कृति में रोचकता उत्पन्न करने में सफल हुआ है।
‘मैकबेथ’ का प्रकाशन शेक्सपियर की मृत्यु के पश्चात् हुआ। इसमें आरम्भ से अन्त तक जीवन और मृत्यु का रोमांचक संघर्ष वर्णित है। भयानक अमानुषीय घात-प्रतिघातों से दर्शक द्रवित एवं उद्वेलित हो उठते हैं। ‘मैकबेथ’ में जीवन के प्रति व्यंग्य भी प्रभूत मात्रा में मुखरित है। इसमें शेक्सपियर ने अपनी असाधारण एवं रहस्यपूर्ण मनःशक्ति को सन्तुष्ट करने के लिए दो हत्यारों की अवतारणा की है और जैसा कि साधारणतया उसकी सभी कृतियों में होता है, इन दोनों हत्यारों में विवेकपूर्ण स्पष्ट अंतर भी दर्शाया है। हत्यारा होते हुए भी एक के प्रति दर्शक की सहानुभूति उमड़ पड़ती है और दूसरे के प्रति घृणा का उद्रेक।
प्रत्येक मनुष्य में जब दानवता जागरित होती है, उसकी मनुष्यता लुप्त हो जाती है; किन्तु जीवन में ऐसे भी स्थल आते हैं जहाँ वह परम क्रूर होते हुए भी अपनी मानवोचित भावनाओं से संचालित होने लगता है।
मानव-मन की गहराइयों का व्यंग्यपूर्ण अंकन ‘मैकबेथ’ की विशेषता है। शेक्सपियर एक महान नाटककार है और ‘मैकबेथ’ उसकी अन्य महान कृतियों में अपना प्रमुख स्थान रखता है।
शेक्सपियर ने जिस प्रकार अपने अन्य नाटकों के कथानकों के लिए दूसरी पूर्ववर्ती कृतियों से प्रेरणा ली है उसी प्रकार मूल रूप में ‘मैकबेथ’ का कथानक भी उसका अपना नहीं है। यह एक दुःखान्त नाटक है एवं इसके कथानक का आधार विश्वविश्रुत अंग्रेजी लेखक राफेल होलिन्शेड की स्कॉटलैण्ड-संबंधी एक ऐतिहासिक कृति है।
‘मैकबेथ’ में जिन घटनाओं का वर्णन है उन्हें पूर्णतया ऐतिहासिक अथवा काल्पनिक मान लेना भी युक्तियुक्त न होगा। ‘कॉनसाइज डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी’ में ‘मैकबेथ’ के अन्तगर्त लिखा है- ‘‘ ‘मैकबेथ’ (मृ.1057) स्कॉटलैण्ड का बादशाह; स्कॉटलैण्ड के राजा डंकन की फौंजों का कमाण्डर तथा 1040 में उसका कत्ल कर राज्य पर अपना अधिकार करनेवाला, जिसे नॉर्थम्ब्रिया के अर्ल सिवार्ड ने 1054 में हराया तथा 1057 में मैलकॉम तृतीय ने मार डाला।’’
मैकबेथ के संबंध में इतिहास में और अधिक स्पष्ट उल्लेख न मिलने के कारण शेक्सपियर ने होलिन्शेड द्वारा कथित मैकबेथ के कथा-तत्त्व को अपने मनोनुकूल ढालने में पूरी स्वतंत्रता से काम लिया। उसका उद्देश्य जितना एक दु:खान्त नाटक लिखने का था उतना ऐतिहासिक नाटक लिखने का नहीं। अपनी अप्रतिम प्रतिभा से पात्रों का चयन कर, उन्हें नईं साज-सज्जा में प्रस्तुत कर, एवं घटनाओं का प्रभावोत्पादक वर्गीकरण करने के पश्चात्, शेक्सपियर मुख्य ऐतिहासिक घटना से कहीं अधिक अपनी इस कृति में रोचकता उत्पन्न करने में सफल हुआ है।
‘मैकबेथ’ का प्रकाशन शेक्सपियर की मृत्यु के पश्चात् हुआ। इसमें आरम्भ से अन्त तक जीवन और मृत्यु का रोमांचक संघर्ष वर्णित है। भयानक अमानुषीय घात-प्रतिघातों से दर्शक द्रवित एवं उद्वेलित हो उठते हैं। ‘मैकबेथ’ में जीवन के प्रति व्यंग्य भी प्रभूत मात्रा में मुखरित है। इसमें शेक्सपियर ने अपनी असाधारण एवं रहस्यपूर्ण मनःशक्ति को सन्तुष्ट करने के लिए दो हत्यारों की अवतारणा की है और जैसा कि साधारणतया उसकी सभी कृतियों में होता है, इन दोनों हत्यारों में विवेकपूर्ण स्पष्ट अंतर भी दर्शाया है। हत्यारा होते हुए भी एक के प्रति दर्शक की सहानुभूति उमड़ पड़ती है और दूसरे के प्रति घृणा का उद्रेक।
प्रत्येक मनुष्य में जब दानवता जागरित होती है, उसकी मनुष्यता लुप्त हो जाती है; किन्तु जीवन में ऐसे भी स्थल आते हैं जहाँ वह परम क्रूर होते हुए भी अपनी मानवोचित भावनाओं से संचालित होने लगता है।
मानव-मन की गहराइयों का व्यंग्यपूर्ण अंकन ‘मैकबेथ’ की विशेषता है। शेक्सपियर एक महान नाटककार है और ‘मैकबेथ’ उसकी अन्य महान कृतियों में अपना प्रमुख स्थान रखता है।
- रांगेय राघव
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