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मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप

अद्भुत द्वीप

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5009
आईएसबीएन :9788174830197

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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...


खाने के बाद बच्चो को नींद आने लगी और वे जल्दी ही सो गए। लेकिन मुझे रात-भर नींद नहीं आई। मैं जागता रहा और आहट लेता रहा। पत्नी भी मेरा साथ देती रही। जब रात बीत गई और सूरज की लाली फूटने लगी तो मुझे लगा, जैसे हम मौत के मुंह में जाते-जाते बच गये हों। तब तक तूफान सचमुच थम चुका था और समुद्र रोज की तरह ही हिलोरें लेने लगा था। मेरा मन खुशी से भर गया। मुसीबत की एक मंजिल हमने पार कर ली थी।

थोड़ी देर बाद बच्चे भी जग गए। सबसे पहले हम लोग जहाज के डेक पर गए और नजर दौड़ाकर समुद्र के पार देखने की कोशिश करने लगे। एकाएक कुछ मील की दूरी पर कुछ किनारा-सा नजर आया। तब मैंने दूरबीन लगाकर देखा। दूरबीन से देखने पर पता चला कि कुछ मील के फासले पर निश्चित ही जमीन है। जब यह बात पक्की हो गई तो पत्नी मारे खुशी के बच्चों से लिपट गई और बच्चे खुश होकर तालियां बजाने लगे। अब यह कठिनाई थी कि किनारे कैसे पहुंचा जाए! जिस जहाज पर हम थे वह तो बिलकुल बेकार ही हो चुका था।

जहाज में छानबीन करने पर हमें कई नई बातों का पता लगा। वहां गाय, गधे, बकरियां, सूअर, मुर्गियां और बत्तखें आदि घरेलू और उपयोगी पशु-पक्षी बड़ी संख्या में थे। एक पालतू कुत्ते और कुतिया का जोड़ा भी था जिनके नाम टर्क और फ्लोरा थे। इसी छानबीन में मेरा नन्हा लड़का फ्रांसिस कहीं से मछली फंसाने वाले कांटों का एक पैकेट भी छू लाया। लेकिन हम यह अभी तक भी नहीं सोच पाए थे कि किनारे पर किस तरीके से पहुंचा जाएगा। सोच-विंचार चल ही रहा था कि जैक बोल उठा, ''पापा, लकड़ी के कुछ हौज रखे हैं। क्या उनसे नाव नहीं बनाई जा सकती?''

उन हौजों को मैं पहले ही देख चुका था, लेकिन नाव बनाने की बात मेरे दिमाग में नहीं आई थी। उसकी सूझ पर मुझे बड़ा अचरज हुआ। मैंने उसे शाबाशी दी और सबको साथ लेकर हथौड़ी, कुल्हाड़ी, कीलें और तख्तों की मदद से नाव बनाने के लिए हौजों को एक-दूसरे से जोड़ने लगे।

हमारे पास आठ हौज थे। धीरे-धीरे उन सबको लकड़ी के तख्तों और कीलों से एक साथ जोड़ दिया गया। कुछ घंटों की मेहनत के बाद आठ खानों वाली एक लंबी नाव बनकर तैयार हो गई। अब यह तय करना था कि किन चीजों को किनारे पर साथ ले जाया जाए और किन्हें दोबारा लेने आना होगा। हमारे पास नाव पर इतनी जगह नहीं थी कि सब सामान और सब लोग एक साथ जा सकते। सबसे पहले हौज में मैंने अपनी पत्नी को बैठाया। उसने अपने साथ बैलों में कुछ जरूरी चीजें ले लीं। दूसरे हौज में मेरा सबसे छोटा लड़का फ्रांसिस और तीसरे में बड़ा लड़का फिट्‌जू बैठे। चौथे और पांचवें हौज में खाने-पीने और रहने की जरूरी चीजें रख ली गई। छठवें और सातवें हौज में मंझले लड़के जैक और अर्नेस्ट बैठे। सबसे आखिरी यानी आठवें हौज में मैं बैठा। हमने दो मुर्गे और मुर्गियों को तो साथ ले लिया लेकिन बत्तखों और कबूतरों को पानी में तैरा दिया। नाव को खेने के लिए हमारे हाथों में डांडू थे। इस तरह हम लोग किनारे के लिए चल पड़े। थोड़ी देर बाद छपाक् की आवाज कानों में पड़ी। मैंने मुड़कर देखा तो पता चला कि टर्क और फ्लोरा भी पानी में कूद पड़े हैं और हमारे साथ-साथ तैर रहे हैं। तैरते-तैरते जब वे थक जाते थे तो हमारे डांडो का सहारा ले लेते थे।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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