मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
जेनी ने जब अपनी कहानी खत्म की तो उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे उसमें अब मुसीबतें सहने की ताकत नहीं रह गई है। मैंने उसे धीरज बंधाया और कहा, ''अब तुम्हें कोई फिक्र नहीं करनी चाहिए। हम लोगों ने अब तुम्हें मुसीबत से बाहर निकाल लिया है। जब तुम मेरे यहां चलोगी तो तुम्हें अपने-आप मालूम हो जाएगा कि तुम्हारे लिए हम लोगों ने वहां कितनी सुविधाएं जुटा रखी हैं।''
अगले दिन, जेनी को साथ लेकर हम लोग अपने द्वीप की ओर लौट पड़े।
जेनी को साथ लाने के कारण कई दिन तक हम लोगों के चारों ओर उत्सव और त्यौहार जैसा वातावरण रहा। घोंसला, बन विहार, सब्जियों की बाड़ी, फलों का बगीचा, यानी उस टापू की सभी चीजें हम लोग घूम-घूमकर जेनी को दिखाते रहे। सुबह होती और शाम हो जाती, लेकिन पता ही नहीं चल पाता कि दिन कब और कैसे चुपके से सरक गया।
जेनी के आ जाने से सभी को बेहद खुशी थी। स्वयं जेनी की खुशी का कारण यह था कि वह उस धुएं वाले टापू के दमघोटू वातावरण से मुक्त हो चुकी थी। उसे अब माता-पिता और भाई की निकटता का आभास मिल रहा था। इधर हम सब की खुशी का कारण यह था कि लगातार दस वर्षों तक एक-सी हालत में रहने के बाद हमें एक नया चेहरा देखने को मिला था, जिसके अलग-अलग रूप थे। वह हमारे बीच पुत्री बनकर भी आई थी और बहन-बनकर भी। इसके अलावा जो सबसे बड़ी बात थी वह यह कि हमें किसी की मदद करने का मौका मिला था।
धीरे-धीरे जेनी हमारे परिवार का एक अंग बन गई। सृष्टियों की बाड़ी, फलों के बगीचे और खेतीबाड़ी का काम वह हम लोगों से सीखने लगी। घास तथा टहनियों से टोकरियां बनाने का काम उसने मेरी पत्नी को सिखाया।
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