मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
हमने वही तरीका अपनाया। शुरू में तो कुछ देर तक जानवर डूबते-उतराते रहे, लेकिन बाद में आसानी से तैरने लगे।
जब हम किनारे पर पहुंचे तो अपने चारों ओर का वातावरण मुझे बहुत ही अच्छा लगा। हम यह भूल-से गए कि हम एक निर्जन और जंगली टापू पर हैं। हमारे पास जरूरत की लगभग हर चीज मौजूद थी।
जब मैं जहाज से सामान और जानवर लाने गया था तो इधर पत्नी ने भी एक नई खोज कर डाली थी। जहां हमारा तंबू था वहां बालू से, दिन की धूप में, बड़ी तपन रहती थी। एक-एक पल काटना मुश्किल हो जाता था। इसलिए नदी के दूसरी ओर उसने एक हरी-भरी और छायादार जगह खोज निकाली। मैं भी वह जगह देखने गया। देखते ही मेरा मन प्रसन्न हो उठा। वहां झुण्ड के झुण्ड ऊंचे-ऊंचे और हरे-भरे पेड़ थे। पास ही एक सरोवर बह रहा था। चारों ओर बड़ी ठंडक थी। जब मुझे भी वह जगह पसंद आ गई तो पत्नी ने कहा, ''कितना अच्छा होता अगर हम लोग इन्हीं पेड़ों पर मचान बनाकर रहते !''
लेकिन यह काम आसान नहीं था। पहली अडूचन तो यह थी कि सारा सामान ढोकर नदी के पार कैसे लाया जाए। दूसरे, मचान बनाने के लिए उतनी ही ऊंची सीढ़ी की जुरूरत थी, जो हमारे पास नहीं थी। इसलिए मैंने फिलहाल इस योजना को टालना चाहा। लेकिन पत्नी नहीं मानी। उसने कहा, ''अगर हम यह तय कर लें कि मचान बनानी ही है तो एक-एक कर सारी अड़चनें अपने-आप दूर हो जाएंगी।''
अन्त में पत्नी के सुझाव पर गहराई के साथ सोचना ही पड़ा। मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि रहने की व्यवस्था तो वहां
कर ली जाए, लेकिन भंडारघर हम तम्बू में ही बनाए रखें। खतरा आने पर यह जगह एक मजबूत किले का काम दे सकती है।
मचान बनाने की बात तय कर लेने पर यह भी जरूरी हो गया कि नटी पर पुल बनाया जाए।
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