मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
|
4 पाठकों को प्रिय 161 पाठक हैं |
जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
पुल बनाने की खबर से बच्चों में एक अजीब-सी खुशी फैल गई। वे दौड़-दौड़कर मेरी सहायता करने लगे। फल यह हुआ कि काम आसान होता गया और दिन-भर में ही हमने नदी पर तख्तों का पुल बनाकर तैयार कर दिया।
जब हम लौटकर अपने तम्बू पर पहुंचे तो पत्नी ने खाने के लिए कई अच्छी-अच्छी चीजें बनाकर तैयार कर ली थीं। पुल बन जाने की खबर से उसे भी बड़ी खुशी हुई प्रसन्न मन से हम लोग खाना खाने बैठे। खाना खाने के दौरान पत्नी बोली, ''देखो, मैंने कहा था न, कि जहां चाह है वहीं राह है! हमने कोशिश की और पुल बनकर तैयार !''
अगले दिन सुबह हम जल्दी उठ गए और जुरूरी सामान बांधने लगे। पत्नी ने सामान ले जाने के लिए, फटे-पुराने खाकी कोटों को मछली के कांटों से सीकर कुछ बोरे बना लिए थे। बोझा ढोने के लिए हमने जानवरों का उपयोग किया और नई जगह के लिए चल दिए।
पुल पार करते समय अचानक हमारे कुत्ते टर्क और फ्लोरा न जाने कहां गायब हो गए। अभी हम इधर-उधर देख ही रहे थे कि अचानक घास के अंदर से भौंकने की आवाज सुनाई दी। वे ऐसे भौंक रहे थे मानो उनकी किसी जंगली जानवर से टक्कर हो रही हो। आवाज सुनते ही फ्रिट्ज और जैक उस ओर भागे। मैंने चिल्लाकर उन्हे सावधान करना चाहा, लेकिन जल्दबाजी में उन्होंने मेरा चिल्लाना सुना नही। क्षण भर के ही बाद जैक चिल्लाया, "पापा! पापा!! दौड़ी! जल्दी आओ! !"
आवाज सुनकर मेरा पसीना छूट गया। मैंने आव देखा न ताव, बस उसी ओर दौड़ पड़ा। वहां टर्क और फ्लोरा एक जंगली साही के साथ भिड़े हुए थे। लेकिन साही के शरीर पर इतने कड़े कांटे थे कि उनकी एक भी चाल कारगर नहीं हो पा रही थी। तभी एकाएक जैक ने अपने कंधे से बंदूक उतारी और निशाना साधकर घोड़ा दबा दिया। 'ठाय' की आवाज हुई और देखते-ही-देखते साही वहीं ढेर हो गई।
इसके बाद हम चल पड़े।
|